Saturday 20 October 2012

इस्लाम का असली चेहरा--मलाला युसुफजई



          “इस्लाम का असली चेहरा----मलाला युसूफजई”
तालिबान ने नारी शिक्षा का निषेध किया, तो मलाला ने चोरी छुपे पढ़ना जारी रखा इस पर तालिबानियों ने गोलीबारी कर उसे जान से मारने का प्रयास किया | आज ब्रिटेन में जिंदगी और मौत के बीच संघर्षमय इलाज चल रहा है |
  मलाला युसुफजई का जन्म १९९८ में स्वात घटी (पाकिस्तान) के खैबर खैरख्वांह जिले के  छोटे से क़स्बे मिंगोरा में हुआ था | कल तक जिस इलाके को कोई जानता तक नहीं था आज वह मलाला के कारण विश्व पटल पर छाया है | बता दे कि पुरातन काल में स्वात घाटी स्वास्थ्य घाटी के नाम से जानी जाती थी, और लोग यहाँ गंभीर रोगों के स्वास्थ्य लाभ यानि चिकित्सा हेतु आते थे, क्योकि यहाँ का वातावरण अति शुद्ध हुआ करता था परन्तु अब तालिबान ने इसे अति दूषित कर दिया है | २००७ से ख़ूबसूरत स्वात घाटी पूरी तरह तालिबान के कब्जे में है | २००९ तक आते--आते अनेको शरई प्रतिबंधो के आलावा नारी शिक्षा को भी पूरी तरह प्रतिबंधित कर १५ जनवरी २००९ से लडकियों के स्कूल जाने पर पूरी तरह पाबंदी लगा दिया गयी | शिक्षा के लिए लालायित ये मासूम सी बालिका मलाला ने ११ साल कि उम्र से ही तालिबानी अत्याचारों के खिलाफ ‘गुल मकई’ छद्म नाम से बीबीसी के लिए डायरी लिखना शुरू कर दिया | २००९ में न्यूयार्क टाइम्स ने इस विषय पर मलाला को लेकर फिल्म भी बनाई थी | ‘विश्व किड्स राईट फ़ौंडेशन” ने बाल शांति पुरुष्कार के लिए मलाला को भी नामित किया था पर यह पुरुष्कार एक अफ़्रीकी लडकी के खाते में चला गया | अक्टूबर में प्रतिबंधो और धमकियों के बाद भी जब मलाला ने घर के कपड़ो में किताबे छिपाकर स्कूल जाना जारी रखा तो एक दिन स्कूल से लोटते समय उस पर जान से मारने की नीयत से  गोली चला दी | गोली सर में लगी पर वह बच गयी और इस समय ब्रिटेन में जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष रत है | मलाला के २०० लडकियों के स्कूल को भी तालिबानियों ने ध्वस्त कर दिया | इस्लाम की इससे वीभत्स तस्वीर कोई और हो सकती है क्या ?

Sunday 14 October 2012

“गोहत्या पर ज्वलंत प्रश्न”



         “गोहत्या पर ज्वलंत प्रश्न”
गोवंश का कटान आज भारत और विशेष रूप से उत्तर प्रदेश में प्रमुख वृहद् लाभकारी उद्योग का रूप धारण कर चूका है | परन्तु इस कटान के बचाव में अक्सर मुसलमान व सैकुलरवादियो के अलावा आम निष्क्रिय हिन्दू को भी ये कहते सुना जा सकता है की “गोवंस को कटान के लिए बेचता तो हिन्दू ही है” | ये बेहूदा कुतर्क है | ऐसा कहने वाले परोक्ष रूप से गोकशो का समर्थन कर रहे है | उनसे कुछ प्रश्न है --(१) सीधे हिन्दू से अब कोई कसाई गोवंश नहीं खरीदता है | गोवंश के खरीदने से लेकर कतलखाने तक ले जाने तक का काम ये हिन्दुओ के माध्यम से करते है, हाँ यातायात के समय हथियारबंद कसाइयो का गिरोह पशु ले जाते वाहनो को सुरक्षा अवश्य प्रदान करता है | चलो मान ले कि हिन्दू गाय न बेचे पर बैलो का व्यापर तो पहले से होता रह है और होता रहेगा इससे कैसे बचा जायेगा, और मुसलमान भी बहुत बड़ी संख्या में गोवंश का पालन करता है, इसके अलावा चोरी कर के और जंगल से घुमते गोवंश को भी पकड़ कर काट दिया जाता है | (२) गोवंश का कटान, और किसी की (हिन्दुओ की) धार्मिक भावनाओ को ठेस पहुचाना कानूनन अपराध है क्या इन कानूनो की कोई कीमत नहीं ? (३) जहाँ तक हिन्दुओ के बेचने की बात है तो हिन्दू तो सूअर भी बेचता है ये जानवर तो बना ही मांस के लिए है इसे कसाई क्यों नहीं खरीदते ? (४) हाल ही में मुस्लिम बबालिओ ने मसूरी थाना (गाजियाबाद) जला दिया विवाद का कारण बना कुरान का पन्ना | कभी रद्दी में कभी लिफाफे में कभी सड़क पर कुरान के पन्ने को लेकर ऐसी घटना का होना आम बात है | आखिर ये पन्ना आता कहाँ से है ? हिन्दू को क्या पता कि ये क्या है ? आखिर ये मुसलमान के घर से ही तो आया न फिर भी बबाल हिन्दुओ के साथ | इस पर सेकुलर क्यों नहीं कहते कि कुरान का पन्ना मुस्लमान घर से बहार डालते ही क्यूँ है ? (५) व्यापारियों कि नकदी लूट पर कल कहा जायेगा कि व्यापारी मोटी नकदी लेकर चलते ही क्यों है ? (६) अब एक अंतिम- प्रश्न बढती हिन्दू लड़कियों कि छेड़छाड़ पर कल मुसलमान और सेकुलर कहेंगे कि हिन्दू लडकियों को बहार निकलते ही क्यों है ? तब मेरे निष्क्रिय हिन्दू भाइयो क्या कहोगे ?
 वैसे १९४६ में जिन्ना की सीधी ‘कार्यवाही’ के आह्वान पर हुए नोआखाले में हिन्दुओ के कत्लेआम पर मुसलमान एक बार ऐसा कह चुके है कि “जब हिन्दू लडकिया है ही इतनी सुन्दर कि मुसलमान लड़के अपने को रोक नहीं पाते तो हम क्या कर सकते है” ||

“शिवाजी और उनके वंशज सदा सचेष्ट रहे मन्बिन्दुओ के लिए"



  “शिवाजी और उनके वंशज सदा सचेष्ट रहे मन्बिन्दुओ के लिए"
क्षत्रपति शिवाजी और उनके वंशज अपने मानबिन्दुओ और देवस्थानो कि रक्षा के लिए सदा प्राणपन से सचेष्ट रहे | तथा मुश्लिम आक्रान्ताओ द्वारा तोड़े गए दक्षिण के मंदिरों को मौका मिलते ही वापस प्राण प्रतिष्ठित कर पूर्व स्वरूप प्रदान किया व उत्तर के तोड़े गए मंदिरों के लिए भी सदैव सचेष्ट रहे | १७१९ में बाजीराव पेशवा ने दिल्ली की मुगलिया सल्तनत को हिला कर अपनी ताकत का अहसास करा दिया था, तथा दक्षिण के ६ सूबो की सरदेशमुखी (चौथ) वसूली का अधिकार ले लिया था | 
   औरंगजेब का पडपोता सैयद बंधुओ की कठपुतली रोशन अख्तर दिल्ली की गद्दी पर बैठा | मालवा के सूबेदार संवाई जयसिंह ने बादशाह और बाजीराव में संधि कराई जिसके तहत मालवा की भी सुबेदारी बाजीराव के पास आ गई | पर बादशाह को ये बात खलती रही और मालवा की सुबेदारी अपने पास लाने के लिए षड्यंत्र करता रहा |  १७३६ में बाजीराव ने बादशाह के सामने एक ९ सूत्रीय मांग पत्र पेश किया, जिसमे आठवीं  मांग में प्रयाग, बनारस, गया, और मथुरा के तीर्थ अपनी पेशवाई में देने को कहा | बादशाह ने उनकी एक भी मांग तो नहीं मानी पर इससे ये पता चलता है की मराठे उत्तर भारत के मंदिरों की सुरक्षा और उनकी पुनर्प्रतिष्ठा को कितना लालायित थे | 
     उज्जयनी के प्राचीनतम स्वयम्भू महाकालेश्वर मंदिर को बुरी तरह लूट कर १२३५ मे गुलामवंशीय दिल्ली शासक अल्तमश ने ध्वस्त कर शिवलिंग को पास के ही कोटितीर्थ कुंड में फैंक दिया था, तथा उस स्थान पर मस्जिद बना दी | बाजीराव पेशवा के नेतृत्व में दीवान रामचंद्र बाबा ने १७३४ से १७४५ तक ११ साल में पुनः ५०० साल पुराने इस कलंक, मस्जिद को तोड़ कर महाकालेश्वर मंदिर औरंगजेब ने अपने दक्खन अभियान के दोरान न सिर्फ तोडा बल्कि उस स्थान पर पुनर्स्थापित किया | ५२ पीठो में से एक त्रयम्बकेश्वर महादेव (नासिक) को मस्जिद भी तामीर कर दी | बाजीराव पेशवा के बेटे नानाजी पेशवा ने उस मस्जिद को गिराकर शिवलिंग की पुन: प्राणप्रतिष्ठा करायी, तथा अवंतिका के श्री महाकालेश्वर मंदिर का जीर्णोधार भी कराया |
१६७४ में शिवाजी महाराज के विधिवत क्षत्रपति सुशोभित होने पर ४ मार्च १६७७ को भाग्यनगर (हैदराबाद) के तानाशाह सुल्तान ने अपनी रियासत में शिवाजी महाराज को स्वागत भोज में आमंत्रित किया | भोजन के उपरांत सुल्तान ने शिवाजी को पानबीड़ा पेश किया तो शिवाजी महाराज ने ये कहते हुए बीड़ा अस्वीकार कर दिया कि “जब तक काशी जाकर काशी विश्वनाथ मंदिर, जिसे १८ अप्रेल १६६९ के ओरंगजेब के शाही फरमान से तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद बना दी गई थी, को पुन: पूर्व स्वरूप में ना लोटा लूँगा तब तक बीड़ा ग्रहण नहीं करूँगा |” शिवाजी कि इस संकल्पशीलता देखकर सुल्तान अवाक् रह गया |
 अपने विजय प्रयाण में शिवाजी हैदराबाद से आगे कर्णाटक कि ओर बढे और जिंजी का किला जीत लिया | जिंजी से वे तिरुवन्नामाले गए | वहाँ समातिरपेरुमल के दो मंदिरों को पूर्व मुस्लिम शासको द्वारा गिरा कर मस्जिद में परिवर्तित कर दिया गया था | उन दोनों मस्जिदों को शिवाजी ने १६७७ में गिरा कर मंदिरों में धार्मिक विधान से देव प्रतिमाये स्थापित कर पूजा अर्चना प्रारम्भ करायी |

Monday 20 August 2012


                 “ईसाईत ओर महिला”
क्रिश्चियन स्त्रियों में भी आत्मा होती है, यह 17वीं शताब्दी के आरंभ तक चर्च द्वारा मान्य नहीं था स्त्री का स्वतंत्र व्यक्त्तिव तो 20वीं सदी में ही मान्य हुआ। 1929 ई. में इग्लैंड की अदालत ने माना कि स्त्री भी परसनहै। स्त्रियों में आत्मा होती है, यह यूरोप के विभिन्न देशों में 20वीं शताब्दी में ही मान्य हुआ। 20वीं शताब्दी में ही स्त्रियों को वयस्क मताधिकार वहां पहली बार प्राप्त हुआ। 18वीं शताब्दी तक स्त्रियों को बाइबिल पढ़ने का अधिकार तक मान्य नहीं था। स्त्री को डायन कहकर लाखों की संख्या में 14वीं से 18वीं शताब्दी तक जिन्दा जलाया और यातना देकर मारा गया स्पेन, इटली, पुर्तगाल, हालैंड, इंग्लैंड, फांस, जर्मनी, स्विट्जरलैंड आदि देशों में ये कुकृत्य हुए| बाइबिल के अनुसार स्त्री का जन्म एडम की पसली से हुआ। मर्द के फल खाने से मना करने पर उसे स्त्री ने उकसाया इसलिए सेक्स का जन्म हुआ जो पाप है| फिर सब सेक्स या पाप से जन्मे है अत: पापी है| तथा अपने पाप समाप्त करने के लिए ईसा मसीह की शरण में आओ वर्ना जहन्नुम में जाओगे | योरोप के कई युद्धों में आदमी की कमी के चलते स्त्रियों ने भाग लिया तब जाकर उन्हें विश्वास हुआ स्त्री ओर आदमी बराबर है बाईबिल झूठी है| इसीलिए लड़किया चर्च को भेंट कर नन बना दी जाति थी | इन सब भयंकर मान्यताओं के विरोध में यूरोप में नारी मुक्ति आंदोलन चला जिसमें उन्होंने स्वयं को पुरुषों के समतुल्य माना, अपने भीतर वैसी ही आत्मा और बुध्दि मानी और ननबनने से ज्यादा महत्व पत्नी, प्रेमिका और मां बनने को दिया | जब स्त्री को बाइबिल तक नहीं पढ़ने दिया जाता था तो उसके विरोध में जाग्रत स्त्रियां प्रमुख बौध्दिक और विदुषी बन कर उभरीं तथा विद्या के हर क्षेत्र में अग्रणी बनीं। क्रिश्चियन स्त्री को पुरुषों को लुभाने वाली कहा जाता था, इसीलिए नारी मुक्ति का एक महत्वपूर्ण अंग हो गया- श्रंगारहीनता या सज्जाहीनता। काम कोमूल पापमाना जाता था इसलिए उसकी प्रतिक्रिया में काम संबंध को स्वतंत्र व्यक्तित्व का लक्षण माना गया। स्त्रियां स्वयं यह सुख न ले सकें इसके लिए एक विशेष अंगच्छेदन का प्रावधान किया गया था। अत: उसके विरोध में जाग्रत स्त्रियों ने समलिंगी सम्बन्धों की स्वतंत्रता की मांग की। इन सब संदर्भों से अनजान भारतीय लोग, यूरोपीय स्त्री मुक्ति आंदोलन के कतिपय ऊपरी रूपों की नकल करते हैं। यहां उसी क्रिश्चियनिटी का महिमामंडन किया जाता है जिसने यूरोप की स्त्रियों का उत्पीड़न  सैकड़ों सालों तक किया |

Wednesday 15 August 2012


गुरुकुल डोरली
१९२४ में रक्षा बंधन के दिन स्थापित, भारत के स्वतंत्रता समर में गुरुकुल डोरली (मेरठ) का बड़ा महत्वपूर्ण योगदान है इस संस्था ने २५ से भी अधिक स्वतंत्रता सेनानी दिए | एक समय ऐसा भी आया जब छात्र ,प्रबंधक ओर आचार्य सभी क्रन्तिकारी गतिविधियों में संलिप्त हों गए ,संस्था अंग्रेजो ने प्रतिबंधित कर दी | ये संस्था क्षेत्र के लिए ऐतिहासिक ओर सांस्कृतिक धरोहर है | महान क्रांति कारी चन्द्र शेखर आजाद के भी पवित्र चरण  एक रात्रि के लिए यहाँ पड़े |

Saturday 11 August 2012

"काकोरी कांड ९ अगस्त "


               “काकोरी कांड” ९ अगस्त
भारत के इतिहास में काकोरी कांड एक परिवर्तनकारी घटना के रूप में सदा याद किया जाता रहेगा | इसमे क्रांतिकारियों ने दुस्साहसिक ढंग से रेल लूट कर अपने आर्थिक खर्चो को पुरा  करने के लिए सरकारी खजाना लूटा था | इस घटना का एक अविस्मरणीय पक्ष भी है |
लखनऊ – हरदोई रेलवे लाइन के बीच एक छोटा सा अनाम सा स्टेशन है काकोरी, इसी स्टेशन पर क्रांतिकारियो ने ८ डाउन पैसेंजर ट्रेन को ९ अगस्त १९२५ को लूटा था | इस ट्रेन के गार्ड का नाम था जगन्नाथ प्रसाद था | लूट के समय गार्ड को जान से मारने ओर न मारने की बहस के बीच इस शर्त पर छोड़ दिया गया था कि बाद में पकडे जाने की स्थिति में पहचानेगा नहीं | घटना के कुछ समय बाद सभी क्रांतिकारी पकड़ लिए गए ओर सजाएं हुईं | शचीन्द्र बख्शी सबसे बाद में पकडे गए तो उनकी जेल में पहचान परेड कराई गयी | गार्ड ने शचीन्द्र बख्शी को पहचानने से मना कर दिया | जबकि बैटरी ओर गार्ड के डिब्बे की रोशनी में ही खजाने की तिजोरी को तोडते हुए गार्ड ने सबको तसल्ली से देखा था | बख्शी ने ही ईश्वर का वास्ता देकर गार्ड को जिन्दा छोडने की ज्यादा वकालत की थी |
   सन १९३८ यानि १३ वर्ष बाद ७ साल की सजा से छुट कर एक दिन शचीन्द्र बख्शी  रायबरेली स्टेशन पर समाचार पत्र पढ़ रहे थे कि पीछे से किसी ने उनकी पीठ पर हल्का सा हाथ मारते हुए पूछा कि “कहो शचीन्द्र कैसे हो नमस्ते“ शचीन्द्र ने पीछे मुड कर देखा तो काकोरी कांड वाली ट्रेन का गार्ड जगन्नाथ है | देखते ही बख्शी कि आँखे भर आई जेल की पहचान परेड में नहीं पहचानने वाले ने १३ वर्ष बाद पहचान लिया | भारत के स्वतंत्रता समर में काकोरी कांड का ओर काकोरी कांड में गार्ड जगन्नाथ का अपने किस्म का अनुपमेय योगदान सदा याद रहेगा |
 काकोरी कांड में (१) रामप्रसाद बिस्मिल, (२) ठा. रोशनसिंह, (३) अशफ़ाकुल्ला खां को फांसी,  (१) शचीन्द्र सान्याल, (२) शचीन्द्र बख्शी को आजन्म कारावास (काला पानी) तथा मन्मथ नाथ को १४ साल की सजा हुई थी |