Friday 29 December 2017

                  “हस्तिनापुर”
पवित्र नदी गंगा के तट पर बसा हस्तिनापुर भारत के इतिहासिक गौरव तथा आर्थिक और संस्कृतिक समृद्धि का देदीप्यमान नक्षत्र है | हस्तिनापुर चन्द्रवंशीय क्षत्रिय चक्रवर्ती सम्राटों की राजधानी रहा है | आज भले ही इतिहास की कालगति और राजनैतिक उपेक्षा का शिकार होकर हस्तिनापुर विस्मृति के गर्त में समा गया हो | पर फिर भी अपनी तात्कालिक समृधि, गौरव और वैभव के कारण हस्तिनापुर की थाती आज भी अक्षुण्ण है | चन्द्रवंशीय सम्राट महाराजा हस्ती द्वारा बसाया गया यह महाजनपद कुरु, भरत और शांतनु व पांडू से होता हुआ धृतराष्ट्र के हाथों हाथों में पहुंचा | महाभारत युद्ध के बाद चक्रवर्ती सम्राट महाराजा धर्मराज युधिष्ठिर के कुशल हाथों में पहुंचकर पुन: अपनी कीर्ति के चरमोत्कर्ष पर पहुचा | महाभारत के कारण हस्तिनापुर से अनेक भाग्य - दुर्भाग्य इससे जुड़ते चले गए तो महाराजा परीक्षत ने हस्तिनापुर से 25 किलोमीटर दूर दक्षिण में परिक्षतगढ बसाकर उसे अपनी राजधानी बनाया | तभी से उपेक्षा का शिकार हो हस्तिनापुर का पतन शुरू हो गया | और आज भी इस गौरवमई थाती की कोई सुध लेने वाला नहीं है |
  1952 ई. में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने A S I के अधिकारी बी. बी. लाल के नेतृत्व में हस्तिनापुर की खुदाई कराई थी | कहते है 30 फुट तक तो मुग़लकालीन अवशेष मिले और इसके बाद 40 तक पांडव कालीन अवशेष मिले | अवशेष आगरा संग्राहलय में रखवा दिए गए | लेकिन बाद में खुदाई अधूरी छोड़कर काम समाप्त करा दिया गया | खुदाई बंद करने के पीछे क्या कारण रहे राम जाने | दरसल नेहरू परिवार और कांग्रेस को भारतीय संस्कृति और गौरव से एलर्जी थी | उन्होंने कभी भारतीय संस्कृति का सम्मन नहीं किया | उलटे अपमान किया | इसी परिपेक्ष्य में ये खुदाई बंद कराई गई | ताकि भारत का कोई गौरवमई एतिहासिक प्रष्ठ विश्वपटल पर न आ जाय | इसी के चलते रामयणकालीन किसी स्थान की खुदाई नहीं की गई | महाभारत का कोई पन्ना नहीं उखेडा गया | मेरठ, बरनावा, बागपत, आलमगीरपुर सनौली और न जाने कितने ऐसे स्थान है जो चीख चीख कर कह रहे हैं हमारे सीने में न जाने कितने राज दफ़न है खोलकर देखो | सरस्वती सभ्यता, सिन्धु सभ्यता, हड़प्पा सभ्यता. इनकी तह तक जाना चाहिए था | पर कुछ नहीं हुआ | अटलजी ने अपने कार्यकाल में ‘सरस्वती नदी शोध संसथान’ स्थापित किया था | सरस्वती नदी के प्रवाह मार्ग की शोध करनी थी हरियाणा में बहुत बड़ा काम हो चूका था | अटलजी की सरकार गई तो ये विभाग भी बंद | अटल जी ने ‘सिन्धु दर्शन’ का एक कार्यक्रम शुरू किया था | कांग्रेस ने उसे भी बंद कर दिया | अभी 10 सालों में मेरठ, बागपत, शामली के क्षेत्र में अनेकों पुराने स्थल और टीले मिले है | हरियाणा में सरस्वती का भूमिगत प्रवाह मिला है | पर कहीं कोई कार्य नहीं हुआ | कहने का तात्पर्य यह है की कांग्रेस ने इस दिशा में कोई कार्य करने इच्छाशक्ति नहीं दिखाई | इसे हम कांग्रेस के सेकुलर स्वरूप के कारण भी मान सकते है | हम विश्व की सर्व श्रेष्ठ सभ्यता हैं | हमें इस पर गर्व है | पर विश्व को दिखने के लिए हमारे पास है क्या ? हुमायूं का मकबरा ? यदि उस दिशा में काम हुआ होता तो आजादी के 70 सालों बाद भी अब तक रामायण और महाभारत मिथक बनकर ही न खड़े रहते हमारे सामने | विश्व को दिखाने के लिए उनसे जुडी अब तक हमारे पास सैंकड़ों साइटे होती | 

     हस्तिनापुर पर्यटक का बड़ा केंद्र होता | शोधार्थियों के लिये बड़ा आकर्षण होता | पर सब शून्य है | भला हो जैनियों का कि उन्होंने हस्तिनापुर को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया | हस्तिनापुर तो द्वापर और कलियुग के संधिकाल की सभ्यता है | पर चलो वर्तमान मोदी और योगी की सरकारें कुछ करेंगी | रामायण और महाभारत सर्किट विकसित होंगे | और खुदाई होगी तथा कुछ समय बाद हमारे पास रामायण, महाभारत पुस्तकों के आलावा उनके तथ्यात्मक साक्ष्य भी होंगे ||