Wednesday 28 March 2012

“भक्ति और शक्ति की देवी तनोट माता”





             (जिस पर पाक कमांडर ने क्षत्र चढ़ाया था  )
     नवरात्रों में भक्ति और शक्ति कि देवी माता तनोट राय नमोस्तुते | नवरात्रों में वैसे तो हम माता के नो रूपों कि अराधाना ,अर्चना करते है पर माता के अगणित रूप है | माँ दुर्गा को शक्ति कि देवी माना जाता है | माता के इस रूप को देखना हो तो जिला जैसलमेर (राजस्थान) किशनगढ़ क्षेत्र के गांव तनोट में तनोट माता के मंदिर के दर्शन करे | जैसलमेर से थार रेगिस्तान में १२० किमी. दूर सीमा के पास स्थित है तनोट माता का पवित्र व सिद्ध मंदिर , गर्मियों में यहाँ का तापमान ४९ डी.तक चला जाता है  | इसे ८४७ ई. में भाटी राजपूत राजा तनु राव ने बनवाया था | इस देवी का अवतार लास्वेला बलूचिस्तान (पकिस्तान) में हिंगलाज के रूप में भी माना जाता है | १९६५ के भारत –पाक युद्ध से माता की कीर्ति और बढ़ी | जब पाक सेना ने चोकी न. ६१५ रहीमयार खान से हमारी सीमा के अंदर किशंगढ़ क्षेत्र में भयानक बमबारी करके लगभग ३००० हवाई और जमीनी गोले दागे | पर यहाँ तनोट माता की कृपा से किसी का भी बाल बांका नहीं हुआ | पाक सेना ४ किमि. अंदर तक हमारी सीमा में घुस आई थी | पर युद्ध देवी के नाम से प्रसिद्ध माता के प्रकोप से पाक सेना को न केवल उलटे पांव लोटना पड़ा बल्कि अपने १०० सैनिको के शवो को भी छोड़कर भागना पड़ा |
      १९७१ के युद्ध में भी पाक सेना ने किशंगढ़ पर कब्जे के लिये भयानक हमला किया था | परन्तु १९६५ की तरह मुह की खायी | भारत की सेना (३ राजपुताना राइफल्स और २३ पंजाब रेजिमेंट ) रहीमयार खान पर कब्जे के लिये इस्लाम गढ़ तक पहुच गयी थी कि युद्ध विराम कि घोषणा हो गई | रहीमयार खान पाकिस्तान के लिये बड़े ही सामरिक महत्त्व का है | यहाँ का रेलवे स्टेशन पाकिस्तान का अंतिम छोर है और यहीं से सिंध प्रान्त शुरू होता है | १९७१ के युद्ध के बाद पाक सैन्य कमांडर शाहनवाज खान ने माता तनोट राय कि शक्ति से अभिभूत हो कर भारत सरकार से दर्शन कि इजाजत मांगी |  २.५ वर्ष बाद इजाजत मिलने पर ,शाहनवाज खान ने माता के दर्शन किये और क्षत्र चढ़ाया | एक बार अकबर को भी माता ज्वाला जी कि शक्ति का लोहा मानकर क्षत्र चढाना पड़ा था | यहाँ युद्ध का एक विजय स्तंभ भी बनाया | गया | और पाक सेना द्वारा दागे गये गोले भी मंदिर परिसर में दर्शन हेतू रखे गये है                                  

Tuesday 27 March 2012

          नववर्ष १ जनवरी कितना पुराणिक कितना वैज्ञानिक”          
रोमन साम्राज्य में जूलियस सीजर ने ईसा पूर्ब ९६ में प्रचलित कैलेंडरो का एकीकरण एवं संशो -धन कर जूलियस कैलेंडर बनाया था | उस समय तक कैलेंडर में १० मास होते थे तथा हिन्दू नवबर्ष (चैत्र शुक्ल प्रतिपदा) के साथ २५ मार्च से नया वर्ष प्रारम्भ होता था | मार्च (पहला) , अप्रैल (दूसरा) , मई (तीसरा) , जून (चोथा) , जोलाई (पांचवा) , अगस्त (छटा) , सितम्बर (सातवा) , अक्टूबर (आठवां) , नवम्बर (नवां) , दिसम्बर (दसवां) , पूर्णतया भारतीय पद्धति पर आधारित थे | बाद में जूलियस सीजर के नाम पर जनवरी और फैब्रुअस देवी के नाम पर फरवरी जोड़कर १२ मास किये गये | दरसल एक सौर वर्ष का वास्तविक मान ३६५.२४२२ दिन होता है | लेकिन जूलियस कैलेंडर में इसे ३६५.२५ मानकर चलते है | अत .००७८ दिन का समय बचता चला जाता है | जिसे चोथे वर्ष फरवरी को २९ दिन की बनाकर ३६६ दिन का साल कर दिया जाता है | परन्तु फिर भी समय बच जाता है , तो हर ४०० वां वर्ष पुनः ३६६ दिन का मनाया जाता है | इस कैलेण्डर में दिन भी रवि, सोम , मंगल , आदि संडे , मंडे , थर्सडे भारतीय पद्धति पर रखे गये | सीजर ने ही कहा की ४४५ ई० सन १/४ दिन का होगा | इतिहास में सम्भ्रम वर्ष ( कन्फ्यूजन वर्ष )  के रूप में जाना जाता है | यह कैलेंडर १५८२ ई० तक चला |
         १५८२ में ईस्टर पर १० दिन का अंतर आ गया | अत: १५८२ में तेरहवें पोप ग्रेगरी ने जूलियस कैलेंडर में पुनः संशोधन किया | उन्होंने आदेश दिया कि ५ अक्टूबर शुक्रवार को १० अक्टूबर शुक्रवार माना जाये | यह ग्रेगेरियन पंचाग के नाम से जाना गया | इसमें भी ३३०० वर्ष बाद यानि ५३१२ ई. में पुनः १ दिन का अंतर आ जायेगा तब फिर १ अक्टूबर को २ अक्टूबर माना जायेगा |
         ग्रेट ब्रिटेन में तो ग्रेगेरियन कैलेंडर १७५२ में मान्य हुआ | तब वहाँ २ सितम्बर बुधवार को १४ सितम्बर गुरुवार माना गया | क्योंकि वहाँ ११ दिन का अंतर चल रहा था | १७५२ में ही २५ मार्च के स्थान पर १ जनवरी से नये साल कि शुरुआत हुई | कुछ पश्चमी देशो ने तो बीसबीं शताब्दी के अंत में जाकर यह ग्रेगेरियन कैलेंडर स्वीकार किया ये है उलझाऊ , अटपटी ,अवैज्ञानिक १ जनवरी कि कहानी जिसका हम पागल होकर अन्धानुकरण कर रहे है | जिसे पश्चिम वालो ने ही कल परसों स्वीकार किया | इसका किसी के राज्याभिषेक , जन्म –मरण , हर्ष , विजय , प्रकृति , मोसम , पर्यावरण , भोगोलिक स्थिति से कोई लेना देना नहीं है |

Friday 23 March 2012


                                     “नव वर्ष गीत”
सुनो सुनाते है तुमको हम महिमा ये नव वर्ष की ,
हर  हिंदू  के  हर्ष  की  भारत के  उत्कर्ष  की |
                  सूरज ने आ  सबसे पहले भारत माँ को परणाम किया ,
 छिटका कर यहाँ धवलचन्द्रिका चंदा ने गुणगान किया ||
                         इसी भुवि  पर ब्रहमदेव ने  रची सृष्टि  प्यारी प्यारी |
                         देह धारण  कर इसी धरा  पर देव हुए थे  बलिहारी ||
                          बलवती  रहे कामना  उर में माँ के चरण स्पर्श की |
                          सुनो सुनाते है तुमको हम .............................|| १ ||
चैत्र सुदी  प्रतिपदा  को इस  सृष्टि  ने जन्म लिया |
काल नियन्ता ब्रह्मा ने भी गणना को आरम्भ किया ||
समय चक्र को महाकाल ने इसी दिवस गतिमान किया |
गगन धरा जड़ ओ चेतन ने इसी दिवस का मान किया ||
हाय ! भुला दी  बाते  हमने  क्यों  बीते  आदर्श  की |
सुनो सुनाते है तुमको ........................................|| २ ||
                        इसी दिवस को दयानंद ने आर्य धर्म का सृजन किया |
                        वैदिक संस्कृति फैली जग में आडम्बर का दहन किया ||
                        सत्य ,स्वराज, दलित, नारी का भारत में सत्कार किया |
                        खोया वैभव पाया फिर से ज्ञान ध्वजा ले प्रचार किया ||
देकर विष ऋषि प्राण हर लिये कथा बड़े अपकर्ष की |
सुनो सुनाते है तुमको हम ...............................|| ३ ||
चैत्र मास में ही दशरथ घर अवतारी  श्रीराम  हुए |
भुवनभास्कर दक्षिणपथ से उत्तरायण गतिमान हुए ||
सिंह वाहिनी माँ शक्ति ने नव दुर्गे अवतार  लिये |
विश्व विजेता पुनः बने  हम बातें  है विमर्श की |
सुनो सुनाते है तुमको हम .........................|| ४ ||
                        शीत त्याग कर प्रकृति भी मदमाती  इठलाती है |
                        सकल धरा भी भीनी भीनी षोडषी सी शरमाती है ||
                        देदे लोरी मलय पवन भी तन मन सुख उपजाती है|
                        गंगा यमुना सरस्वती की ये संस्कृति कहलाती है ||
                        सदा  रही  है विजय  यात्रा  गोरव के संघर्ष की |
 सुनो सुनाते है तुमको .............................|| ५ ||
त्रेता युग में दैत्य राज ने मानवता का हरण किया |
मर्यादा पुरुषोत्तम ने तब दानवता का दलन किया ||
इसी दिवस पर दशरथसुत ने सिहासन का वरण किया |
जनजन के अराध्य राम को देवो ने भी नमन किया ||
भूल  गए क्यों इस  महिमा को बाते है  आमर्ष  की |
सुनो सुनाते है तुमको हम ...............................|| ६ ||
                        बढ़ा अधर्म द्वापर युग में तब श्री कृष्ण अवतार हुआ |
छल-प्रपंच अन्याय  अनीति का भारत पर प्रहार हुआ ||
बीच सभा में शील  हरण को  दु:शासन  तैयार  हुआ |
विजय धर्म की हुई अधर्म पर धर्मराज स्वीकार हुआ ||
विजय पताका  फैली  जग में  घटना  है आकर्ष की |
सुनो सुनाते है तुमको हम .............................|| ७ ||
सिन्धी भाई  इसी दिवस को चैती चांद मनाते है |
झूलेलाल जन्म धारण कर मानव रूप में आते है ||
चैत सुदी में ही युग दृष्टा केशव राव भी आते है |
हिन्दू के हित चिन्ता में संगठन का पाठ पढाते है ||
पश्चिम संस्कृति विषय हो गई चिन्तन के निष्कर्ष की |
सुनो सुनाते है तुमको हम ................................|| ८ ||
                        द्विशताब्दी पूर्व  शको ने भारत  को पदकान्त किया |
भारत ही क्या पूर्ण एशिया को भी तो दिग्भ्रांत किया ||
उज्जैयनी के विक्रम ने तब शको हुणों को शान्त किया |
विजयदिवस में राजतिलक ले भारत को अक्लांत  किया ||
वैभवशाली  सदा  रहे  छवि  अखण्ड   भारत  वर्ष की |
सुनो सुनाते है तुमको हम ..................................|| ९ ||
सुनो सुनाते है तुमको हम महिमा ये नव वर्ष की ,
हर  हिंदू  के हर्ष  की  भारत  के  उत्कर्ष की ||