Friday 24 June 2016

                        “नकली किला पर असली लड़ाई”
 आज से लगभग ५०० वर्ष पूर्व राजस्थान की घटना है तब बूंदी पर हाडा राजा हामा का राज था | बूंदी पहले चित्तोड़ रियासत के अधीन रही | परन्तु अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के बाद चित्तोड़ के पराक्रमी राणा शक्तिहीन हो गए तो बूंदी ने चित्तोड़ की अधीनता अस्वीकार कर दी | कुछ वर्षों बाद राणा फिर शक्तिशाली हो गए तो उन्हें बूंदी की याद आई और बूंदी कहला भेजा कि चित्तोड़ की अधीनता स्वीकार कर लो | बूंदी नरेश हामा ने दूत के हाथो वापस कहला भेजा की अब पहले वाले दिन नहीं रहे और बूंदी स्वतंत्र है और रहेगी | हाँ हम चित्तोड़ को बड़ा भाई मानते है इससे ज्यादा आशा चित्तोड़ ना करे | चित्तोड़ के राणा ये सुनने को थोड़े ही बैठे थे उन्होंने तुरंत सेनापति को बुलाया और बूंदी पर युद्ध का आदेश दे दिया | पर अब वो पहले वाली बूंदी नहीं थी राणाओं की बड़ी सेना बूंदी के ५०० सौ हाडाओं के हाथो हार गई |
   राणा अपमानित हुए और हार का बदला लेने को तत्पर रहने लगे | राणा ने क्रुद्ध हो शपथ ली की जब तक बूंदी नहीं जीत लूँगा अन्न जल ग्रहण नहीं करूँगा | सेनापति सोच मे पड गए की इतनी जल्दी ये संभव ही नहीं है वैसे भी बूंदी चित्तोड से ४० मील दूर थी | सेना एकत्र करना और युद्ध जीतना एक दो दिन का काम नहीं तब तक राणा तो भूखो मर जायेंगे | अत: सभी दरबारी और मंत्रियों और बंधू बांधव ने मिल सर्व सम्मति से एक ही युक्ति सबको उचित लगी जिसमें दोनों बातों का समाधान था | और सभी एकत्र होकर राणा के पास जाकर कहने लगे की महाराज एक ही युक्ति है कि एक नकली किला बना कर फतह कर लिया जाय तो बात बने | सभी के एकमत होने पर राणा को भी प्रस्ताव स्वीकार करना पड़ा |
    अब चित्तोड़ के पास ही एक मैदान में नकली किले का निर्माण शुरू हुआ | फाटक, गेट, बुर्ज दीवार सब बूंदी की तरह | बूंदी के हाडा राजाओं की ही एक हाडा खाप की सैन्य टुकड़ी चित्तोड़ सेना में भी थी | कुम्भा वैरसी इस टुकड़ी का सरदार था | शिकार से लोटते समय उसने मैदान में नकली बूंदी का किला बनते देखा तो निर्माणकर्ताओं से पूछा की क्या हो रहा है ? कर्मचारियों ने बता दिया कि राणा के प्रण को पूरा करने के लिए ये सब हो रहा है | कुम्भा वैरसी ने साथियों सहित मात्रभूमि की रक्षा का प्राण लिया | अस्त्र शस्त्र से लैस हो वहां पहुचे कुछ समय बाद राणा भी अपनी छोटी सी सेना लेकर किला फतह करने पंहुचा | राणा ने एक टुकड़ी को कृत्रिम युद्ध के लिए किले में भेज दिया | कुम्भा भी साथियों के साथ किले में छुप गया था | गोली चलनी शुरू हुई तो अन्दर से असली गोली आती देख राणा का माथा ठनका | पता लगाया तो राणा दंग रह गया की कुम्भा तो पूरी तय्यारी से मुख्य द्वार पर ही पहरा दे रहा है | राणा ने पूछा की ‘कुम्भा क्या बात है तुम यहाँ क्या कर रहे हो’ तो कुम्भा ने क्रोधित हो कहा की “महाराज मै तो अपनी मात्रभूमि की रक्षा कर रहा हूँ | बूंदी मेरी मात्रभूमि है किला असली हो या नकली इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता |” कुम्भा की बात सुन राणा अवाक रह गया और कहने लगा कि कुम्भा तुम मेरे सैनिक हो | यह नकली किला है इसके लिए अपने प्राणों की बाजी क्यों लगा रहे हो |” कुम्भा ने उसी लहजे में राणा को जवाब दिया कि “महाराज निसंदेह मैं आपका चाकर हूँ आपका हर हुक्म मेरे सर माथे पर परन्तु मात्रभूमि के साथ ये बेहूदा मजाक मुझे सहन नहीं | मेरे जीते जी कोई बूंदी की और आँख भी नहीं उठा सकता |” कुम्भा ने आगे कहा “महाराज मेरी पगड़ी बिछी है उसी पर पैर रख कर चले आइये और नकली किला तोड़ दीजिये पर किला तोड़ने से पहले आपको युद्ध तो लड़ना ही होगा | आपके स्वागत को हाडी जाती का आपका ये तुच्छ सेवक  कुम्भा तैयार खड़ा है |” देखते ही देखते घमासान युद्ध शुरू हो गया | कुम्भा और साथियों ने अपने जीते जी किसी को नकली किले में नहीं घुसने दिया | ये वीरगति को प्राप्त हुए इनकी लाशों से गुजरकर ही राणा को किले में प्रवेश मिला |

     इस सबसे राणा का प्रतिज्ञा पालना तो हो गया | राणा ने पानी भी लिया | पर राणा कुम्भा और उसके दल वीरता और मात्रभूमि प्रेम तथा मान मर्यादा की रक्षा के लिए प्राणों की बाजी लगा देने की भावना देखकर सहम गया | साथ ही चित्तोड़गढ़ ने बूंदी पर आगे कभी हमले के बारे में सोचा भी नहीं ||