Thursday 30 November 2017

                “राम जन्म भूमि विवाद”
राम जन्म भूमि में करोड़ों हिन्दुओं की आस्था और आत्मा दोनों बसती है | पर देश आजाद होने के ७० साल बाद भी भारत की सेकुलर सरकारें हिन्दुओं की आस्था से खिलवाड़ करती रही | नई पीढ़ी तो आज इस विषय को जानती भी नहीं है | देश की सेकुलर सरकारों ने इस विषय को विस्मृति के गर्त में डुबो देना चाहा | पर अब ऐसा नहीं होगा सरकारें भी हिन्दू वादी हैं और हिन्दू भी सजग और जाग्रत हुआ है | इस विषय को शुरू से प्रकाश डालने का प्रयास करते हैं |
अयोध्या हिन्दुओं की एतिहासिक, पौराणिक और सांस्कृतिक पवित्रतम और पूज्य मोक्षदायी सप्त पुरियों में से एक नगरी है |  दरअसल अयोध्या का एक नाम अ योध्या भी है | अ योध्या माने जहाँ कोई युद्ध न हुआ हो | और दूसरा अवध माने अ वध जहाँ कोई वध (हत्या) न हुआ हो | लम्बे काल खंड माने सतयुग, त्रेता और द्वापर तक ये तथ्य सत्य भी बना रहा | पर १५२८ ई. में एक उजबेक आक्रान्ता बाबर और उसके सेनापति मीर बाकि ने अयोध्या पर सम्राट विक्रमादित्य द्वारा बनाए भव्य राम मंदिर को तोड़कर हिन्दुओं को गहरा घाव दिया | तब ही  १.७४ लाख हिन्दुओं के बलिदान के उपरांत ही आक्रान्ता मंदिर तक पहुँच सके थे | तब से निरंतर संघर्ष जारी है | लेकिन अब समय बदला है क्योंकि केंद्र और उत्तर प्रदेश में अब स्पष्ट बहुमत की भाजपा की हार्ड कोर हिंदुत्ववादी सरकारें है | अब और हिन्दुओं की सहन शक्ति की परीक्षा नहीं ली जा सकती है |
    ६ दिसंबर १९९२ ई. को विवादित ढांचा ढहाए हुए २५ वर्ष बीत गए है माने एक नई पीढ़ी आ गई जिसे राममंदिर के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी नहीं है | दरअसल बाबरी ढांचा किसी भी भारतीय का आस्था केंद्र नहीं हो सकता | मुसलमान और सेकुलर इस पर सिर्फ राजनीती करते रहे | राम भारत की आस्था और आत्मा है | इस पर अब तक ७७ युद्धों में ३.५ लाख हिन्दू बलिदान दे चुके है | अब विश्व का १०० करोड़ हिन्दू वहां शीघ्र भव्य राम मंदिर देखना चाहता है | बाबर उज्बेकिस्तान में पैदा हुआ और अफगान (काबुल) में १५३० ई. में मरा | हिन्दुओं को चिढाने के लिए ये बाबर से नाता जोड़ते है | वरना काबुल में जर्जर मजार को क्यों नहीं दुरुस्त कर लेते बाबरी के पक्षधर | जन्म भूमि पर १८५३ ई. में पहला हिन्दू मुस्लिम विवाद हुआ था | तब कोर्ट ने दोनों पक्षों को दो अलग स्थान दे दिए थे | १९४९ ई. २२ दिसंबर में मध्य गुम्बद में अचानक रामलला मध्य रात्रि को प्रकट हो विराजमान हो गए | तब से वहां निरंतर पूजा अर्चना चल रही है | इस स्थान पर ५० मीटर तक मुस्लिम का प्रवेश निषेध हुआ | परन्तु तनाव बढ़ने से मंदिर को १९५० ई. में ताला लगा दिया गया | १९८६ ई. में कोर्ट के आदेश से ही फिर ताला खुला भी | वैसे १९८४ ई. में १० लाख के खर्चे का अन्यत्र उठा कर ले जाने का भी प्रस्ताव आया था | राजीव गाँधी, वी. पी. सिंह और चन्द्र शेखर के प्रधानमंत्रित्व काल में वार्ता के प्रयास हुए जिनमे चंद्रशेखर का प्रयास सबसे सार्थक था पर उनकी सरकार शीघ्र गिर गई | एक वर्ष वार्ता चली परन्तु अपने को असफल पाकर इस वार्ता में मुसलमानों ने आना बंद कर दिया | अंत में कहा की यदि ये सिद्ध हो जाता है की वहां कोई मंदिर था तो हम स्वेच्छा से अपना दावा छोड़ देंगे | सितम्बर १९९४ ई. में प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने भी कोर्ट को शपथपत्र देकर कहा की मंदिर सिद्ध होने पर हम हिन्दू भावनाओं की कद्र करेंगे | पर कोर्ट को तो सबूत और गवाह चाहियें थे तब साइंस की तकनिकी का सहारा ले खुदाई का निर्णय हुआ | २००३ ई. में ASI ने ६ महीने खुदाई कराई | ६० – ४० के अनुपात में हिन्दू मुस्लिम मजदुर और दोनों पक्षों के प्रतिनिधि तथा हिन्दू मुस्लिम दो न्यायाधीशों की देख - रेख में खुदाई चली | १६ फुट चौड़ी २७ दीवारें निकली | इसके आलावा २ पंक्तियों में ५२ रचनाएँ और मिली है | बराबर दुरी पर खम्बे मिलें हैं | इशान कोण में सीढ़ी सहित तालाब मिला है, ४ स्तरों पर पक्के चमकदार फर्श मिले है | खुदाई ४० फुट गहरे तक की गई | खुदाई से स्पष्ट होता है की वहां एक उत्तर भारतीय शैली का विशाल मंदिर था | गुलामी के चिहों को संजोंकर रखना अपमानजनक है जो हटाये जाते रहे है हटाये जाने चाहियें | १९६२ में गोआ सैन्य कार्यवाही से लिया | इस सन्दर्भ में हिन्दू ३ बातों के लिए भी कटिबद्ध है – (१) - विहिप द्वारा हिन्दू समाज से एकत्र धनराशि और उन्ही एकत्रित शिलाओं से ही मंदिर बने | (२) - अयोध्या की संस्कृतिक परिधि में कोई मस्जिद नहीं बने | (३) – आक्रान्ता लुटेरे बाबर के नाम पर भारत में कहीं भी मस्जिद नहीं बने |



                                    “नेहरू वंश बनाम मुग़ल खानदान”
      स्वातंत्रोत्तर भारत में दिल्ली की सत्ता पर अधिकांश नेहरू खानदान का ही राज रहा है | इस वंश या खानदान को काफी लोग मुग़ल खानदान से जोड़कर देखते है | ऐसा कहने का उनके पास अपना तर्क भी है, और वे लोग तर्क का आधार है बताते है नेहरू के सेक्रेटरी एम ओ मथाई की पुस्तक रेमेनिसेंसेस ऑफ़ नेहरू एज (जो  भारत में प्रतिबंधित है) तथा के एन राव की पुस्तक “द नेहरू डायनेस्टी” | ये पुस्तके नेहरू के करीबियों ने लिखी है,  और इन में नेहरू परिवार के बारे में विस्तार से लिखा गया है | जो भी है पर हमारे पास नेहरू वंश को मुग़ल खानदान से जुडा मानने के अलग तर्क है |
(१)- मुग़ल खानदान को भारत के इतिहास में इतना महत्वपूर्ण और विस्तृत रूप से क्यों पढाया जाता है ? मुग़ल कक्षा 6 से शुरू होकर बीए, एमए और फिर पीसीएस आईएएस की सर्वोच्च परीक्षाओ तक छात्रो और अभ्यर्थियों का पीछा नहीं छोड़ते है | यदि हम ज्यादा पीछे भी न जाएँ तो भी महाराजा परिक्षत से लेकर सम्राट पृथवीराज चौहान तक पढ़ने योग्य हमारा गौरवशाली इतिहास नहीं रहा क्या ? इस कालखंड में हम सोने की चिड़िया, जगतगुरु और परम वैभव शाली नहीं रहे क्या ? पर पाठ्यक्रमो से सब गायब है | 
(२)- 8 नवम्बर 2010 में भारत दौरे पर आये अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा को क्या हुमायूँ का मकबरा ही मिला था दिखाने के लिए ? दिल्ली में तो पुराना किला जैसी एक से एक हजारो वर्ष पुरानी एतिहासिक और दर्शनीय इमारते है |
(३)- अफगानिस्तान स्थित बाबर की जर्जर मजार पर बार- बार नेहरू खानदान के लोग क्यों जाते है ? अफगानियों के लिए वो महत्वहीन है | वे अपने को मुग़ल वंश से अलग करके देखते हैं | 2004 में राहुल और प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह गए | इंदिरा गाँधी भी सन 1968 ई. में अपने आई ऍफ़ एस अधिकारी नटवर सिंह (बाद में केन्द्रीय मंत्री) के साथ अपने कार्यकाल में जिद करके वहां गई | ये लोग प्रोटोकोल तोड़ कर गए, अफगान सरकार के मना करने पर गए, वह क्षेत्र तालिबानी आतंकवाद ग्रसित है तब भी ये लोग गए क्यों ? तब वहां पहुंचकर इंदिरा गाँधी ने कहा था की “आज मैंने अपने को अपने इतिहास से जोड़कर अपना इतिहास ताजा कर लिया |”
(४)– विश्व संस्था यूनेस्को ने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया है की “भारत में एक से बढ़ कर एक गैर मुगलकालीन बेहतरीन ऐतिहासिक स्मारक स्थित हैं | पर न जाने क्यों यहाँ की सरकार मुगलकालीन स्मारकों की ही सिफारिश विश्व धरोहर की सूचि के लिए करती हैं ? यहाँ की सरकारों को अपना नजरिया बदलना चाहिए | और गैर मुग़ल स्मारकों को भी सूचि के लिए भेजना चाहिए | फ़िलहाल भारत की २७ स्मारक विश्व धरोहर सूचि में शामिल है लालकिला इनमे सबसे अंत में शामिल हुआ |” ये विचार एक कार्यक्रम के दौरे पर 2009 ई. में भारत आयी यूनेस्को की संस्कृति कार्यक्रम विशेषज्ञ मोइचिबा ने कहे | अब प्रश्न ये उठता है की मुग़ल स्मारकों से ही इतना मोह क्यों ? वो भी ये विश्व संस्था कह रही है |

आखिर नेहरू व नेहरू के वंशजों का मुग़ल खानदान से इतना प्रेम क्यों है ? मुगलों का इतिहास पढाया जाना, नेहरू के वंशजों का बार बार बाबर की जर्जर मजार पर जाना, मुग़ल स्मारकों से बेहद लगाव का आखिर क्या कारण है ? ये सब तथ्य नेहरू वंश को मुग़ल वंश से जोड़कर देखने को मजबूर करते हैं ||