“राम जन्म भूमि विवाद”
राम जन्म भूमि में करोड़ों
हिन्दुओं की आस्था और आत्मा दोनों बसती है | पर देश आजाद होने के ७० साल बाद भी
भारत की सेकुलर सरकारें हिन्दुओं की आस्था से खिलवाड़ करती रही | नई पीढ़ी तो आज इस
विषय को जानती भी नहीं है | देश की सेकुलर सरकारों ने इस विषय को विस्मृति के गर्त
में डुबो देना चाहा | पर अब ऐसा नहीं होगा सरकारें भी हिन्दू वादी हैं और हिन्दू
भी सजग और जाग्रत हुआ है | इस विषय को शुरू से प्रकाश डालने का प्रयास करते हैं |
अयोध्या हिन्दुओं की
एतिहासिक, पौराणिक और सांस्कृतिक पवित्रतम और पूज्य मोक्षदायी सप्त पुरियों में से
एक नगरी है | दरअसल अयोध्या का एक नाम अ योध्या भी है | अ योध्या
माने जहाँ कोई युद्ध न हुआ हो | और दूसरा अवध माने अ वध जहाँ कोई वध (हत्या) न हुआ
हो | लम्बे काल खंड माने सतयुग, त्रेता और द्वापर तक ये तथ्य सत्य भी बना रहा | पर
१५२८ ई. में एक उजबेक आक्रान्ता बाबर और उसके सेनापति मीर बाकि ने अयोध्या पर
सम्राट विक्रमादित्य द्वारा बनाए भव्य राम मंदिर को तोड़कर हिन्दुओं को गहरा घाव
दिया | तब ही १.७४ लाख हिन्दुओं के बलिदान
के उपरांत ही आक्रान्ता मंदिर तक पहुँच सके थे | तब से निरंतर संघर्ष जारी है | लेकिन
अब समय बदला है क्योंकि केंद्र और उत्तर प्रदेश में अब स्पष्ट बहुमत की भाजपा की
हार्ड कोर हिंदुत्ववादी सरकारें है | अब और हिन्दुओं की सहन शक्ति की परीक्षा नहीं
ली जा सकती है |
६
दिसंबर १९९२ ई. को विवादित ढांचा ढहाए हुए २५ वर्ष बीत गए है माने एक नई पीढ़ी आ गई
जिसे राममंदिर के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी नहीं है | दरअसल बाबरी ढांचा किसी
भी भारतीय का आस्था केंद्र नहीं हो सकता | मुसलमान और सेकुलर इस पर सिर्फ राजनीती
करते रहे | राम भारत की आस्था और आत्मा है | इस पर अब तक ७७ युद्धों में ३.५ लाख
हिन्दू बलिदान दे चुके है | अब विश्व का १०० करोड़ हिन्दू वहां शीघ्र भव्य राम
मंदिर देखना चाहता है | बाबर उज्बेकिस्तान में पैदा हुआ और अफगान (काबुल) में १५३०
ई. में मरा | हिन्दुओं को चिढाने के लिए ये बाबर से नाता जोड़ते है | वरना काबुल में
जर्जर मजार को क्यों नहीं दुरुस्त कर लेते बाबरी के पक्षधर | जन्म भूमि पर १८५३ ई.
में पहला हिन्दू मुस्लिम विवाद हुआ था | तब कोर्ट ने दोनों पक्षों को दो अलग स्थान
दे दिए थे | १९४९ ई. २२ दिसंबर में मध्य गुम्बद में अचानक रामलला मध्य रात्रि को
प्रकट हो विराजमान हो गए | तब से वहां निरंतर पूजा अर्चना चल रही है | इस स्थान पर
५० मीटर तक मुस्लिम का प्रवेश निषेध हुआ | परन्तु तनाव बढ़ने से मंदिर को १९५० ई.
में ताला लगा दिया गया | १९८६ ई. में कोर्ट के आदेश से ही फिर ताला खुला भी | वैसे
१९८४ ई. में १० लाख के खर्चे का अन्यत्र उठा कर ले जाने का भी प्रस्ताव आया था |
राजीव गाँधी, वी. पी. सिंह और चन्द्र शेखर के प्रधानमंत्रित्व काल में वार्ता के
प्रयास हुए जिनमे चंद्रशेखर का प्रयास सबसे सार्थक था पर उनकी सरकार शीघ्र गिर गई
| एक वर्ष वार्ता चली परन्तु अपने को असफल पाकर इस वार्ता में मुसलमानों ने आना
बंद कर दिया | अंत में कहा की यदि ये सिद्ध हो जाता है की वहां कोई मंदिर था तो हम
स्वेच्छा से अपना दावा छोड़ देंगे | सितम्बर १९९४ ई. में प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव
ने भी कोर्ट को शपथपत्र देकर कहा की मंदिर सिद्ध होने पर हम हिन्दू भावनाओं की
कद्र करेंगे | पर कोर्ट को तो सबूत और गवाह चाहियें थे तब साइंस की तकनिकी का
सहारा ले खुदाई का निर्णय हुआ | २००३ ई. में ASI ने ६ महीने खुदाई कराई | ६० – ४० के अनुपात में हिन्दू मुस्लिम मजदुर
और दोनों पक्षों के प्रतिनिधि तथा हिन्दू मुस्लिम दो न्यायाधीशों की देख - रेख में
खुदाई चली | १६ फुट चौड़ी २७ दीवारें निकली | इसके आलावा २ पंक्तियों में ५२ रचनाएँ
और मिली है | बराबर दुरी पर खम्बे मिलें हैं | इशान कोण में सीढ़ी सहित तालाब मिला
है, ४ स्तरों पर पक्के चमकदार फर्श मिले है | खुदाई ४० फुट गहरे तक की गई | खुदाई
से स्पष्ट होता है की वहां एक उत्तर भारतीय शैली का विशाल मंदिर था | गुलामी के
चिहों को संजोंकर रखना अपमानजनक है जो हटाये जाते रहे है हटाये जाने चाहियें |
१९६२ में गोआ सैन्य कार्यवाही से लिया | इस सन्दर्भ में हिन्दू ३ बातों के लिए भी
कटिबद्ध है – (१) - विहिप द्वारा हिन्दू समाज से एकत्र धनराशि और उन्ही एकत्रित
शिलाओं से ही मंदिर बने | (२) - अयोध्या की संस्कृतिक परिधि में कोई मस्जिद नहीं
बने | (३) – आक्रान्ता लुटेरे बाबर के नाम पर भारत में कहीं भी मस्जिद नहीं बने |