“गंगा जमनी संस्कृति”
उत्तर प्रदेश के एक
गाँव में मुस्लिमों को अपना एक पूजा स्थल बनना था, पर
उपयुक्त स्थान नहीं मिल पा रहा था | मिली जुली आबादी के इस गाँव के उदार हिन्दू
भाइयों को मुस्लिमों का दर्द समझ में आया और पूजा स्थल (मस्जिद) निर्माण हेतु अपना एक
उपयुक्त भूखंड दे दिया | तो निर्माण कार्य शुरू हुआ और निर्माण की पहली ईंट भी
पंडित जी से रखवाई गई | इस कार्य की सर्वत्र सराहना हुई और इसे गंगा ‘जमुनी - तहजीब’
की मिसाल बताया | भारत में अक्सर कहीं हिन्दू - मुस्लिम सद्भाव पाए जाने पर इसे तुरंत
बिना देर किये ‘गंगा जमुनी तहजीब’ की मिसाल बता दिया जाता है | लेकिन क्या है ये गंगा
और यमुना की तहजीब, इससे तो
ऐसा लगता है कि मानो गंगा - यमुना की संस्कृति अलग अलग है | पर क्या ऐसा है ?
भारत में ये एक परंपरा सी हो गई है कि हिन्दू –
मुस्लिम एकता की मिसाल मिलने पर तुरंत ‘गंगा जमुनी तहजीब’ का बिल्ला ठोंक दिया
जाता है | इसका तात्पर्य यह है की गंगा की तहजीब अलग है, और जमुना की तहजीब अलग है
| और दोनों एकदम विपरीत ध्रुव वाली | गंगा भारत की एतिहासिक, संस्कृतिक और
भावनात्मक आस्था का आधार है | जो गोमुख से निलकर 2500 किलोमीटर मैदानी क्षेत्र में
चलकर सुन्दरवन के डेल्टा में गंगा सागर तीर्थ पर बंगाल की खाड़ी में गिरती है | यमुना
यमुनोत्री (हिमालय) से निकलकर गंगा की सहायक नदी के रूप में 1350 किलोमीटर चलती
हुई इलाहाबाद में गंगा में मिल जाती है | लेकिन गंगा और यमुना एक ही संस्कृति की
दोनों सगी बहने लगभग १०० किलोमीटर के फासले से देर तक दूर तक बिना एक दुसरे की
भावना को ठेस पहुंचाए श्रोत से समागम तक साथ साथ बहती चली जाती है | जबकि हिन्दू -
मुस्लिम संस्कृति का साथ कैसा है सब जानते है ? साथ साथ आरती और अजान नहीं हो सकती
| मेरठ, मुजफ्फर नगर, सहारनपुर, बुलंदशहर आदि कई जिलों का पश्चिमी किनारा यमुना तो
पूर्वी किनारा गंगा बनाये हुए है | एक जिले में भला दो संस्कृतियाँ कहाँ से हो गई
| बागपत और गढ़मुक्तेश्वर एक भाषा खड़ी बोली, एक खानपान, एक रहन सहन, एक ही पहनावा
तो है, फसल से लेकर मौसम तक सब एक है | ये सब सैकुलरवादियों की रणनीति का एक
हिस्सा है | एक नदी भारत की और एक अरब, अफगान या ईरान, इराक की होती तो बात बन
सकती थी | हमारी दोनों नदियाँ पवित्र और पुरातन है इनकी कोख में इतिहास जन्मा है,
पला और बढ़ा है | स्वामी कल्याण देव का जन्म कोताना (बागपत) यमुना की कोख में हुआ,
और उनका व्यक्तित्व को शुक्रताल में गंगा किनारे विस्तार मिला | ऐसे अनेक संत ॠषि
मुनि हमारी परंपरा में देखे जा सकते है | जन्म यहाँ तो कर्म वहां और कर्म वहां तो
जन्म यहाँ | फिर गंगा यमुना की संस्कृतियाँ अलग अलग और वो भी विपरीत कैसे हो गई ?
ये सैकुलरवादियों की घिनोनी चाल है | राष्ट्रवादियों को उनकी इस चाल का शिकार नहीं
होना चाहिए | हिन्दू – मुस्लिम सद्भाव को कोई और नाम दिया जा सकता है पर गंगा
जमुनी तहजीब कतई स्वीकार नहीं | दोनों नदिया अपने में पुरातन अमूल्य संस्कृति
संजोये है |