Friday 4 August 2017

                 “मेरी संस्कृत महान”
संस्कृत विश्व की महानतम और श्रेष्ठ वैज्ञानिक भाषा है | मुझे गर्व है मै संस्कृत के देश में पैदा हुआ और मैंने संस्कृत पढ़ी | पर आज के सेकुलर वादियों ने संस्कृत को मृत भाषा बना छोड़ा है | जबकि आज के वैज्ञानिक सुपर कम्पूटर के निर्माण हेतु संस्कृत को ही सर्वथा उपपुक्त पाते है | आज के पाश्चात्य प्रेमी संस्कृतद्रोही संस्कृत को वैश्विक भाषा ही नहीं मानते | भारत की भाषा भी नहीं मानते | ये लोग अपने तर्क में कहते है की संस्कृत एक प्रबुद्ध वर्ग की भाषा रही है कभी जनभाषा या आम भाषा नहीं रही | ब्राहमणों और सवर्णों तक सीमित रही | जब कोई संस्कृत की अवहेलना करता है तब लगता है की मानो वह अपनी माँ की अवहेलना कर रहा है |
   लेकिन संस्कृत जनभाषा थी आम से आम नागरिक संस्कृत में ही बातें करता था | यहाँ तक के बाणभट्ट रचित कादंबरी में एक नागरिक जो शुद्र था के पास संस्कृत बोलने वाले तोते का भी वर्णन है | उसके पास एक अनिन्ध सुन्दर कन्या भी थी | अपने मित्रों के कहने पर वह व्यक्ति अपनी बेटी और वह तोता अपने राजा को भेंट करता है | क्योकि मित्रों ने कहा था कि अमूल्य वस्तुए राजा के पास ही शोभा देती है | इसी सन्दर्भ में एक घटना की चर्चा करते है जिससे पता चलता है की संस्कृत व्यापक जनभाषा थी और राजा से लेकर रंक तक सब की भाषा थी |           घटना राजा भोज के काल की है |

     एक बार राजा भोज घूमते हुए नगर के बाहर की और आते हैं तो क्या देखते हैं कि एक लकडहारा भारी लकड़ी का गट्ठर सर पर रखे पसीने पसीने होता हुआ अपने घर की और बढा चला जा रहा है | राजा को तनिक कष्ट हुआ और लकड़हारे से पूछ बैठे कि लकडहारे --- किम ते भारं बाधति || उत्तर में लकडहारा कहता है जो बहुत महत्वपूर्ण है – भारं न बाधते राजन यथा बाधति बाधते || राजा लकडहारे से कहता है कि ‘क्या ये भार आपको कष्ट पहुंचा रहा है’ | इस पर लकडहारा राजा को उत्तर देता है वह बात ध्यान देने योग्य है ‘राजन ये भार मुझे कष्ट नहीं दे रहा पर आपके द्वारा बाधते के स्थान पर बाधति शब्द का अशुद्ध उच्चारण मुझे कष्ट पंहुचा रहा है’ | एक लकडहारा और संस्कृत के व्याकरण की इतनी व्यापक पकड़ | और ये लोग कहते है की संस्कृत कभी जनभाषा नहीं रही | दरअसल संस्कृत में धातुएं परस्मैपदि और आत्मनेपदि के 2 रूपों में चलती है | परस्मैपदि बाधति बाधते बाधंती के रूप में चलती है | और आत्मनेपदि में बाध धातु बाधते बाधेते बाधन्ते के रूप में चलती है और बाध धातु आत्मनेपदि है | बाध धातु में आत्मनेपदि का प्रयोग होना चाहिए था | जबकि राजा ने परस्मेपदि का प्रयोग किया था | ऐसी महान मेरी संस्कृत भाषा है | जब एक लकडहारा भी भाषा की अशुद्धता पर राजा को भी टोक देता है |