Thursday 31 December 2015

सिलहट ----
भारत पाक विभाजन के समय सिलहट एकमात्र जिला ऐसा था जिसका निर्णय वोटों से हुआ की वह भारत में रहे या पाकिस्तान में | विभाजन पूर्व ये असम का एक जिला हुआ करता था | यहाँ हिन्दू मुस्लिम आबादी लगभग बराबर थी | इसीलिए हिन्दू नेता इसे भारत में और मुस्लिम नेता इसे पाकिस्तान में मिलाने की पैरोकारी कर रहे थे | पर विभाजन की चर्चा से आस पास के जिलों के बहुत बड़ी संख्या में हिन्दू सिलहट में आ बसे थे जिससे सिलहट स्पष्ट हिन्दू बहुमत वाला जिला बन गया | कोई निर्णय न होता देख अंतत:  मतदान कराने का निर्णय लिया गया | मतदान हुआ और हिन्दू भारी बहुमत होते हुए भी ५०००० मतों से हार गए | क्यों ? क्योकि हिन्दू मत डालने ही नहीं गए | मतदान वाले दिन हिन्दू ताश, शतरंज और उस प्रकार के अन्य खेलों में व्यस्त रहे | और जनमत हार गए | फिर सिलहट को पाक में जाना था सो चला गया | उसके बाद हिन्दुओं पर मुस्लिमों ने जमकर कहर बरपाया | लूट, हत्या, बलात्कार, धर्मांतरण आखिर हिन्दू के साथ क्या नहीं हुआ | जो उन्होंने झेला | अपनी जरासी गलती, मुर्खता और नासमझी के कारण हिन्दू सिलहट में अपने विनाश का कारण स्वयम बना |

ऐसे ही विभाजन से पूर्व कश्मीर में परावर्तित मुस्लिमो ने महाराजा गुलाब सिंह से घरवापसी के लिए कहा था | गुलाब सिंह ने कश्मीरी पंडितों से पूछा कि ये मुस्लिम जो किन्ही कारणों से इस्लाम कबूल कर चुके थे अब वापस अपने घर हिन्दू धर्म में आना चाहते है | तो पंडितों ने कहा था की हम सतलुज में कूद कर जान दे देगे पर इनकी घर वापसी स्वीकार नहीं करेंगें | और आप पर ब्राहमण हत्या का पाप लगेगा | क्योकि हिन्दू से जाने के बाद वापसी नहीं है और ये गोमांस खा चुके है | महाराजा गुलाबसिंह आने वाली परिस्थितियों से परिचित थे अत: वे काशी के ब्राह्मणों तक भी समाधान के लिए गए | पर काशी के ब्राहमणों ने भी वही कश्मीरी पंडितों वाला जवाब दिया कि हम गंगा में कूद कर जान दे देंगे | अंतत: गुलाब सिंह को हार मननी पड़ी और आज वही कश्मीरी पंडित ४-५ लाख की संख्या में कश्मीर छोड़ जम्मू दिल्ली की सडकों पर है और वे ही परावर्तित मुस्लिम आज कश्मीर के मालिक है |    

Wednesday 9 December 2015

             “रामपुर तिराहा कांड”
१ अक्तूबर १९९४ -- मुजफ्फर नगर का रामपुर तिराहा भी कभी मुज्जफर नगर के कवाल कांड की तरह सुर्ख़ियों में था | और आज कवाल की तरह प्रशिद्ध एतिहासिक घटना के रूप में दर्ज है | दोनों घटनाओं के मैनेजर मुलायम सिंह है क्योंकि मुलायम सिंह लाशों की राजनीति में ही लाभ हानि देखते है | उत्तराखंड में एम वाई समीकरण नहीं चलता अत: उसमे कोई हानि नही थी इसलिए गोली चलवाने में देर नहीं की | स्थान भी दोनों घटनाओं का मुजफ्फर नगर है और समय भी लगभग सामान है तिराहा कांड १ अक्तूबर को व कवाल ७ सितम्बर को हुआ | हम रामपुर तिराहा कांड का पोस्ट मार्टम करके देखते है |
    १९९३ में मुलायम सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने | स्वतन्त्र राज्य की मांग के चलते उत्तराखंडी २ अक्तूबर १९९४ को राजघाट गाँधी की समाधि पर धरना देने जा रहे थे | मुलायम ने उन्हें दिल्ली न पहुचने देने की कसम खा रखी थी | अत: गेम रामपुर तिराहा (मुजफ्फर नगर) पर सजाया गया था | निर्दोष निहत्थे उत्तराखंडियों पर बिना किसी उत्तेजना के अंधाधुंध गोली बरसा दी गई | सैंकड़ो लोग घायल हुए और ७ लोग मारे गए महिलाओं के साथ बलात्कार, छेड़छाड़ और अश्लील हरकते हुई नंगी ओरतों को भाग कर गन्ने के खेतो में जान बचानी पड़ी | सरकार ने छपार थाने में उत्तराखंडियों पर फर्जी मुक़दमें दायर कर दिए |

    इलाहबाद हाईकोर्ट सख्त हुआ जनवरी १९९५ में सीबीआई को जांच दी गई | इस मामले में ५ वरिष्ठ अधिकारी सहित छपार, खतौली, झिंझाना व मुजफ्फर नगर के थानाध्यक्षो सहित १५ -२० अन्य पुलिसकर्मीयों पर सीबीआई ने मुक़दमे दायर हुए | इनको लाश छिपाने, शस्त्र बरामदगी और हेराफेरी जैसे संगीन फर्जी मुकदमे दायर करने का दोषी पाया गया था | जिला चिकित्सा अधिकारी ने उत्तराखंडीयों की और से फायरिंग दिखाने के लिए पुलिसकर्मीयों के शारीर में ओपरेशन कर छर्रे घुसा दिए थे |  उस समय मुलायम सिंह ने कहा था सब फर्जी है यदि एक भी बलात्कार साबित हो गया तो राजनीती से सन्यास ले लूँगा | बाद में ३८ महिलाओं के साथ पुलिसकर्मियों के द्वारा बलात्कार के मामले सामने आये और मुक़दमे दायर हुए | ये मुलायम सिंह डाला सिमेंट फैक्ट्री में अपने चहेते उद्धोगपति को कब्ज़ा दिलाने के लिए फैक्ट्री घेरे बैठे निर्दोष मजदूरो पर भी महोदय गोली चलवा चुके है | अयोध्या गोलीकांड से कौन परिचित नहीं है | १९९९ में बाजपेयी सरकार ने नए उत्तराखंड राज्य का गठन किया |

                   “पद्मनाभं मंदिर का खजाना खतरे में”
ये तो आप जानते है कि केरल के तिरुअन्तपुरम स्थित भगवान पद्मनाभ स्वामी (विष्णु भगवान) का मंदिर अकूत सम्पदा जो लगभग एक लाख करोड के आस पास मानी जाती है, का स्वामी है | इस पर केरल सरकार कि गिद्ध दृष्टि है | ये वो संपत्ति है जिसे हिन्दू सदियों से अपने इष्ट भगवन विष्णु को श्रधा पूर्वक चढ़ाता आ रहा है | जिसका हाल ही में खुलादा हुआ था | सुप्रीम कोर्ट ने अपनी देख रेख में इस संपत्ति की जांच और मूल्याङ्कन करने का कार्य शुरू किया | सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा की ये संपत्ति मंदिर और उस राजपरिवार की है जिसने इसे बनवाया था | इस सम्पदा के मंदिर से गायब होने कि आशंका प्रबल हो गयी है | ये आशंका न्यायालय कि सहायता हेतु नियुक्त अधिवक्ता गोपाल सुब्रह्मण्यम ने अपनी ३५ दिनी जांच के बाद उच्चतम न्यायालय को दी रिपोर्ट में कि है |

दरअसल इस भारी खजाने का पता जुलाई २०११ में लगा था | तब इसकी जांच को उच्चतम न्यायालय ने ही मूल्यांकन का काम अधिवक्ता गोपाल सुब्रह्मण्यम को सौंपा था | मंदिर प्रांगण में गोल्ड प्लेटिंग मशीन के मिलने से खजाना गायब होने कि शंका को और बल मिलता है | मशीन के माध्यम से असली स्वर्ण आभूषणों को या तो गायब कर दिया या नकली में बदल दिया गया | अभी तक ६ तहखानो ‘ए’ से ‘एफ’ तक के खजानों कि जांच कि जा चुकी है | गोपाल सुब्रह्मण्यम के अनुसार दो तहखाने ‘जी’ और ‘एच’ के भी होने और उनके खोलने कि भी मांग अधिवक्ता ने कि है, जिसका काफी विरोध हुआ | गोपाल सुब्रह्मण्यम ने मंदिर के खातों में भी गडबडियाँ पायीं जिनकी जांच पूर्व नियंत्रक एवं रक्षा लेखा परीक्षक से कराने कि मांग कि है | इनके आलावा ३० साल से दानदाताओं के दिए पैसे कि भी गिनती नहीं हुयी है | महत्वपूर्ण बात ये है कि केरल सरकार को मंदिर अपने हाथ में लेने वाले केरल उच्च न्यायालय के निर्णय पर सर्वोच्च न्यायालय ने रोक लगा रखी है | यहाँ ये बताना भी आवश्यक है कि मंदिर त्रावनकोर राजपरिवार के कुल देवता पद्मनाभ स्वामी का है तथा राजपरिवार ने अपना पूरा साम्राज्य भगवान को समर्पित कर दिया था ||

                       “काली नदी-प्रागैतिहासिक भागीरथी”
सभी प्राचीन सभ्यताए नदियों के ही किनारे पुष्पित पल्लवित हुई है | इसका प्रमुख कारण है की उस समय जल मार्ग ही आवागमन के प्रमुख साधन हुआ करते थे | सरस्वती, सिन्धु, नील नदी की सभ्यताए इसका उदहारण है | लन्दन टेम्स और मास्को मस्कवा नदी के तट पर बसे है |  मोहन्जोंदाडो,लोथल, हड़प्पा सभ्यता सरस्वती नदी के किनारे विकसित हुईं ओर नदी के साथ ही समाप्त हो गयी | त्रेता युग में मेरठ को मय दानव द्वारा मयराष्ट्र के रूप में हेमा के कारण इंद्र से छुपकर मायावी नगरी के रूप में बसाया गया था | जो उस समय की पूर्ण विस्तृत काली नदी के पश्चिम मुहाने पर बसा था | तब ये नगर से सट कर बहती थी यहाँ अब वर्तमान में कचहरी है | काली नदी की बार बार की बाढ़ की तबाही से बचने के लिए अंग्रेजो ने इसे खुदवाकर नगर से  १० किलोमीटर दूर पूरब में वर्तमान स्थान पर पहुचाया था | अब भी यदि कभी बाढ़ की स्थिति आती है जैसा की १९६२ व १९७८ में देखने को मिली, तो ये नदी अपने पूर्व मूल मार्ग पर ही नगर से सटकर बहने लगती है और १ से दो किमी का विस्तार कर लेती है | जो उपरोक्त बात की पुष्टि करता है | मेरठ के उत्तर में व रुड़की रोड के १-१.५ किमी पूरब में  सोफिपुर, गुरुकुल डोरली, पल्हैडा के पूरब के जंगल को आज भी ग्रामवासी नदी कहकर पुकारते हैं | इस क्षेत्र में आज भी ६ से १० फूट नीचे बालुका पट्टी मिलती है | गत दिनों कचहरी परिसर में भी “तेरह न्यायालय कोर्ट” के निर्माण के समय भी १० फिट मोटी बालुका पट्टी मिली थी | लावड मार्ग पर काली नदी के पुल के ऊपर खड़े होकर मेरठ की और देखने से साफ़ दिखता है की नदी को पूरब की और खोदकर मोड़ा गया है | इसी क्षेत्र के गांव खानोदा के एक बुजुर्ग शाहबुद्दीन का कहना है की “हमारे दादा परदादा ने काली नदी की खुदाई में दो पैसा रोज पर मजदूरी की थी |”
काली नदी की प्राचीनता का प्रमाण हमें ‘बाल्मीकि रामायण’ के अयोध्या कांड के सर्ग ७१ में भी देखने को मिलाता है | जिसके अनुसार महाराजा दसरथ के मरणोपरांत जब भरत अपने ननिहाल कैकेय देश की राजधानी गिरिव्रज से अयोध्या लौट रहे थे तो मार्ग में पड़ने वाले नदी और प्रदेशो का जिक्र रामायण में आया है |  इस यात्रा में यमुना के पूरब में भागीरथी और फिर गंगा का जिक्र है, यानि यमुना –गंगा के बीच एक विशाल भागीरथी नदी (काली नदी) थी ­–
    “यमुना प्राप्य संतिर्नोबलम माश्वास यत्तदा, भागीरथीम दुश्प्रतराम सोशुधाने महानदीम | ७१\६
      उपायाद्राघव स्तुर्नम प्राग्वटे विश्रुते पुरे, स गंगा प्राग्वटे तीर्त्वा समायात कुटि कोष्ठिकाम | ७१\९
 (यमुना पार करके सेना को विश्राम दिलाया, फिर दुश्प्रतरा (कठिनाई से पार करने योग्य) भागीरथी महानदी को पार करके प्राग्वट में गंगा नदी को पार किया) | उत्तरीय मत्स्य देश को पार करके भरत यमुना किनारे पहुंचे थे |
   प्राग्वट की स्थिति फतेहगढ़ के समीप बताई जाती है | इस प्रकार रामायण कालीन भागीरथी ही वर्तमान काली नदी है | मानचित्र में भागीरथी गंगोत्री से निकलकर कुछ दूर पश्चिम को चलकर दक्षिण को बहती है | टिहरी जनपद में अपना प्रवाह पूर्व को लेकर रूद्र प्रयाग में अलकनंदा से संगम करती हुई तथा मार्ग में पड़ने वाली पहाड़ी नदियों को अपने में आत्मसात करती हुई गंगा का रूप लेती है | मानचित्र पर ध्यान देने से प्रतीत होता है की भागीराथी का सीधा प्रवाह दक्षिण भारत की और था | किसी भोगोलिक विक्षोभ के कारन यह पूर्व को मुड कर अलकनंदा में जा मिली | और बीच में ये प्रवाह लुप्त होकर मुजफ्फरनगर जिले की जानसठ तहसील के गाँव अन्तवाडा में यह श्रोत पुन: फूट पड़ा, और आगे बढ़ता हुआ मेरठ, बुलंदशहर में बड़ी काली नदी का रूप  ले ले लिया | मेरठ नगर के पास काली नदी का प्रवाह गुरुकुल डोरली के पास से होता हुआ, कचहरी और फिर पुरानी तहसील के पूर्व की और से था | १९६७ में पल्हैडा के जंगल में एक ट्युबैल के बोरिंग के समय ८०-१०० फूट नीचे नाव की लकड़ी के टूकडे,जो कोयले का रूप धारण कर रहे थे, मिले थे | लकड़ी को इस स्थिति में आने में लाखों साल लगते है |

          (स्वतंत्रता सेनानी रत्नाकर शास्त्री का काली नदी पर शोध परक लेख, ये मेरठ के पल्हैडा निवासी और        रामायण के विद्वान् थे)