Monday 17 February 2014



                                     “संस्कृतम्”
नासा के वरिष्ठ वैज्ञानिक रिक ब्रिग्स ने १९९० में ही कह दिया था कि इस गृह यानि धरती कि एकमात्र वैज्ञानिक भाषा संस्कृत ही है | ब्रिग्स सहित तत्कालीन कम्पूटरविदो ने संस्कृत को कम्पूटर के लिए सर्वोत्तम भाषा  घोषित किया | नासा छठी और सातवीं पीढ़ी के सुपर कम्पूटर संस्कृत के आधार पर ही बना रहा है जिनके  २०२५ से २०३५ में बाजार में आने कि संभावना है | देववाणी आधारित सामान्य कम्पूटर तो जल्दी ही बाजार में आ जायेगें तब संस्कृत सीखने कि ललक दुनिया में और बढ़ेगी | यूनेस्को के अनुसार विश्व कि सभी ९७ भाषाए प्रत्यक्ष या परोक्ष संस्कृत से जुडी है, विश्व के ५२ देशों  के २५० विश्व विद्यालयों में संस्कृत पढाई जाती है |  महानतम वैज्ञानिक आइंस्टीन ने स्वीकार किया है कि अपनी वैज्ञानिक खोजों और सिद्धांतों के निर्माण में वे गीता और अन्य संस्कृत ग्रंथों को प्रेरक व मार्गदर्शक मानते है |  संस्कृत ग्रंथों में वैज्ञानिक ज्ञान का भंडार मानने वालो में नोबेल पुरुष्कार विजेता वैज्ञानिक रदरफोर्ड, श्रोडीन्जर, हाइजनबर्ग तथा परमाणु बम्ब के आविष्कारक राबर्ट ओपनहाइमर ही नहीं है ये लोग संस्कृत के गहन अध्येता भी थे | भारत के नोबेल पुरुष्कृत वैज्ञानिक डा. सी वी रमण संस्कृत को राष्ट्र भाषा बनाने के पक्षधर थे |  और  संविधान प्रारूप समिति के अध्यक्ष डा. भीमराव आंबेडकर ने तो दो कदम आगे बढकर संस्कृत को राजभाषा बनाने के लिए प्रस्ताव भी रखा था तथा लक्ष्मीकान्त मैत्रे के साथ सदन के अंदर संस्कृत में वार्ता भी कर के दिखाई थी | विश्वविद्यालय आयोग ( १९४८ – १९४९) जिसके सदस्य डा. एस राधाकृष्णन और वैज्ञानिक मेघनाद साहा जैसे प्रबुद्ध लोग शामिल थे, ने कहा था कि डिग्री स्तर पर संस्कृत कि पढाई विद्यार्थियों में आध्यात्मिकता का संचार करेगी | माध्यमिक शिक्षा आयोग (१९५२ – १९५३) ने भी हाई स्कूल व इंटरमिडीएट स्तर पर संस्कृत कि पढाई कि वकालत कि थी | संस्कृत आयोग (१९५६ – १९५७) इस अमूल्य भारतीय धरोहर को जन जन तक पहुचाने कि बात कि थी साथ ही कोठारी आयोग ने कक्षा ८ तक तीसरी  भाषा के रूप में आधुनिक भारतीय भाषाओँ (जिनमे संवैधानिक मान्यता प्राप्त संस्कृत सहित २२ भाषाए है) को रखने कि बात की थी | इस विषय पर माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी ४ अक्टूबर १९९४ को दिए अपने एक अहम फैसले में कहा था कि “यदि संस्कृत के अध्ययन को निरुत्साहित किया गया तो हमारी संस्कृति का श्रोत ही सूख जायेगा” | इन सब बातों को धता बताते हुए केन्द्रीय विद्यालय संगठन ने कक्षा ६ से ८ के पाठ्यक्रम में संस्कृत के विकल्प के तौर पर ४ विदेशी भाषाए जर्मन, चीनी, स्पेनिश और फ्रेंच को शामिल कर लिया | इस मूर्खतापूर्ण निर्णय को संस्कृत शिक्षक संघ दिल्ली ने हाई कोर्ट में चुनौती दी है | सी बी एस ई ने भी संस्कृत के विकल्प के तौर पर तकनिकी और रोजगार कोर्स पेश कर दिए | राजग शासन काल में मानव संसाधन मंत्री मुरली मनोहर जोशी द्वारा ‘राष्ट्रिय संस्कृत संसथान’ के माध्यम से प्रारंभ संस्कृत शिक्षकों को ५ हजार मासिक मानदेय वाली योजना ने भी दम तोड़ दिया | देश के २३ राज्यों में माध्यमिक स्तर पर संस्कृत पढाने कि व्यवस्था है पर शिक्षक अहर्ता परीक्षा (TET) में केवल ८ राज्यों में ही संस्कृत शामिल है | स्वयम को बाबासाहेब का अनुयायी बताने वाली मायावती ने अपने शासनकाल में UPTET में संस्कृत को समाप्त कर दिया था जो बाद में बहाल हुई | भारत कि आत्मा और विवेक कि वाणी – देववाणी संस्कृत पर ये आघात सीधे - सीधे भारतीयता एवं भारत के शैक्षिक – वैज्ञानिक विकास कि जड पर प्रहार है |   

Sunday 16 February 2014



                                           “संत रविदास”
विदेशी और विधर्मियों के निरंतर आक्रमण से जब भारत कि धर्मप्राण जनता कि आस्था और विश्वास अपनी संस्कृति से डगमगा रहा था उस समय संत रविदास राष्ट्र रक्षा हेतु आगे आये और संघर्ष किया तथा जन मन को संजीवनी प्रदान करने हेतु संत परम्परा में अपना अति उच्चा स्थान प्राप्त किया | सतगुरु रविदास ने निम्न वर्ग में जन्म लेकर प्रमाणित किया कि परमात्मा के सम्मुख कोई वर्ग या वर्ण भेद नहीं होता, छोटा-बड़ा नहीं होता उन्होंने शाश्वत हिंदू जीवन मूल्यों को जनता कि भाषा में उजागर कर पुनर्प्रतिष्ठा दिलाई | उनका जन्म १४३३ वि स में काशी के निकट मान्दुर ग्राम में पिता रग्घू और माता घुर्बिनिया के घर अछूत और उपेक्षित जाती में जन्म हुआ था | समाज में व्याप्त रूधियों, अन्धविश्वास सामजिक अन्याय और विषमता के विरुध्द समता और समभाव का जीवंत सन्देश दिया साथ ही इस्लामी कट्टरवाद का मुहतोड जवाब भी दिया --
  ||”चौदह सौ तैतीस कि, माघ सुधि पन्द्रास, दुखियों के कल्याण हित प्रगटे श्री रैदास”||               
  ||“पराधीन को दींन क्या पराधीन बेदीन, रविदास दास पराधीन को सब कोई समझे हीन”||  
  ||“पराधीनता पाप है जान लहू रे मीत, रविदास दास पराधीन सों कौन करे है प्रीत” ||
  ||“रामानंद मोहे गुरु मिल्यो पायो ब्रह्म विसास,राम नाम अमी रस पियो रैदास ही भयो पलास”||  
  ||“ऐसा चाहो राज मैं जहाँ मिले सबन को अन्न, छोटो बडो सम सम बसें रविदास रहे प्रसन्न”|| 
  ||”जात जात में जात है ज्यों केलन में पात रविदास न मानुष जुड सके जो लौंजात न जात”||
अपना धर्म परिवर्तन को कहने पर बादशाह सिकंदर लोदी स्पष्ट कह दिया कि --
  ||”वेद धर्म सबसे बड़ा अनुपम सच्चा ज्ञान फिर मैं क्यों छोडूँ इसे पढ़ लूँ झूठ कुरान,
  वेद धरम छोडूँ नहीं कोशिश करो हजार तिल तिल काटो देहि चाहे गोदो अंग कटार”|| -(रैदास रामायण)
||”प्रभु भक्ति श्रम साधना जग मह जिन्हहि पास, तिन्हहि जीवन सफल भयो सत् भाषे रविदास”||
||”अब मेरी बूडी रे भाई ताते चढ़ी लोक बड़ाई, अति अहंकार उर मा सत रज तम तामे रह्यो उरझाई”||    
 उन्होंने अपने सन्देश में कहा है कि हिंदू जीवन पद्यति जन्म और जाती नहीं कर्म प्रधान है --
||”जन्म जात को छोडकर करनी जान प्रधान इहो वेद को धरम है कहे रविदास बखान,
रविदास जनम के कारने होत न कोई नीच नर को नीच कर डारो है ओछे करम की कीच”||
वैदिक ऋषियों कि भांति उन्होंने वर्ण व्यवस्था कि भी पुनर्व्याख्या कि –
ब्राह्मण –||“काम क्रोध मद लोभ तजि करत धरम का कार, सोई ब्राहमण जनहि कहि रविदास विचार”||
क्षत्रिय – ||“दींन दुखी के हेत जो वारे अपने प्राण, रविदास उस नर सूर को सच्चा क्षत्री जान” ||
वैश्य-- ||”साँची हाटी पैठकर सौदा सांचा देय, तकरी तोले सांच की रविदास वैस है सोय”|| 
शुद्र-- ||”रविदास जो अति पवित्र है सोई सूदर जान, जड कुकर्मी असुध जन तिन्ही न सूदर जान”||
मन चंगा तो कटौती में गंगा” जैसी उनके जीवन कि कुछ अद्भुत और चमत्कारिक बातें  
१ अपने धर्म परिवर्तन को भेजे सदना कसाईं को ही प्रभावित कर रामदास हिंदू बना देना |
२ जल में ही शालिग्राम कि मूर्ति तैरा कर भक्तों को अभिभूत कर देना |
३ सिंहासन पर बैठी देव मूर्ति का रविदास के बुलाने पर रविदास के गोद में आ बैठना |
४ ब्राहमणों द्वारा साथ भोजन न करने पर प्रत्येक ब्राहमण को अपने दायें बाएं रविदास ही दिखाई देना |
५ माँ गंगा द्वारा रविदास कि भेंट स्वीकार कर बदले में हाथ बढ़ाकर दिव्य स्वर्ण कंगन देना |
६ स्वयं भगवान द्वारा साधू रूप में आकार पारस पथरी प्रदान करना पर रविदास ने प्रयोग न कर यूँ ही वापस कर दी |
रविदास जी अपने सम्पूर्ण जीवन काल में आत्मा कि अमरता, कर्म की शुचिता, पुनर्जन्म में आस्था, वेद, गीता, गंगा, गौ, राम, कृष्ण माने हिंदू धर्म की कसौटी से जरा भी नहीं डिगे | उन्हें धर्म प्ररिवर्तन के लिए जेल में भी डाला तथा भयंकर यातनाये भी दी गयी पर धर्म मार्ग से हटे नहीं | धर्म परिवर्तित न कर उन्होंने हिंदू धर्म पर बहूत बडा उपकार किया वरना आज इतना बडा हिंदू समाज नहीं बचता | उनकी महानता के चलते काशी नरेश,चित्तोड की महारानी झाली भक्तिन मीरा बाई जैसे उनके शिष्य बने चित्तोड में ही उनकी समाधी बनी |
            (ऐसे महान संत को उनके जन्म जयंती माघ पूर्णिमा १४ फरवरी को कोटि कोटि बधाई)