Tuesday 31 January 2017

                   “जंगल का कानून”

जब जब बिगड़ी हुई कानून व्यवस्था और निरंकुश अपराध से जनता त्रस्त हो जाती है तथा सत्ता जनता की सुनने के बजाय अपराधियों का ही संरक्षण करने लगती है | चारों तरफ अराजकता की स्थिति हो जाय अपराधी और सत्ता में सांठ गाँठ हो जाय | सामान्य मानवी का जीना दूभर हो जाय | तब अनायास ही मुख से निकल पड़ता है की जंगल राज आ गया | ‘जंगल का कानून’ है | कोई सुनने वाला नहीं है | लेकिन ‘जंगल का कानून’ क्या भारत के धार्मिक, संस्कृतिक, आध्यात्मिक, परिपेक्ष्य में उचित है | क्योंकि भारत का तो सारा वांग्मय, सारा ज्ञान सारे दर्शन, स्मृति, वेद, उपनिषद, आरण्यक, ब्राह्मण और ब्रहम सूत्र आदि जंगल में ही लिखे गए | अदालत में शपथ ली जाने वाली पुस्तक ‘गीता’ कुरुक्षेत्र के जंगल में ही कही गई और लिखी गई | अधुनिक वेद कही जाने वाली रामायण भी महर्षि बाल्मीकि ने दंडकारण्य में लिखी थी | ‘कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास’ ने ‘महाभारत’ खांडववन में लिखा | वो बात अलग है की खांडव
वन एक दिन इंदप्रस्थ बन युधिष्ठिर कि राजधानी बना | वनों की इसी श्रंखला में नैमिषारण्य में सूतजी के नेतृत्व में शौनक आदि सहस्त्रों ऋषि मुनियों ने एक लम्बा एतिहासिक संवाद किया था | मजे की बात तो ये है की पाश्चात्य दर्शन ने जंगल को असभ्यता की निशानी माना और ‘जंगल का कानून’ बर्बरता का पर्याय माना गया | उसके उलट भारतीय दर्शन में सारा ज्ञान सारा दर्शन यहाँ तक के सभ्यता और संस्कृति का प्रस्फुटन ही जंगल में हुआ घाटी और गिरी कंदराओं  में हुआ | पुरातन कानून माने स्मृति ग्रन्थों का प्रबोधन भी जंगल में हुआ | भारत में तो वन, अरण्य, तपोवन, गुरुकुल, विद्याकुल, ऋषिकुल और आश्रमों में सभ्यता और समाज के गूढ़तर रहस्य सब जंगलों में ही सुलझाये गए और रचे गए | राजा जनक के समकालीन याज्यवल्क्य अपनी दोनों पत्नी कात्यायनी और मैत्रेयी के साथ अपने आश्रम में रहते थे | राजा जनक ने सींगो पर स्वर्ण जडित एक हजार गाय इन्ही ऋषि को दान में दी थी | मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने १४ वर्ष वन में ही जीकर निसाचरी संस्कृति का समूल नाश कर अधर्म पर फतह का मार्ग प्रशस्त किया | धर्मराज युधिष्ठिर ने भी भाईयों के साथ १२ वर्ष वनवास व १ वर्ष अज्ञातवास जंगल में जीकर हस्तिनापुर से अधर्म राज को समूल नाश किया | एक उपनिषदीय कथा में धौम्य ऋषि के शिष्य आरुणि ने खेतों से बह रहे पानी को न रोक पाकर भारी ठण्ड में स्वयं लेटकर बहते पानी को रोका था | वनवास काल में अत्री ऋषि की पत्नी अनसुइया ने माता सीता को उपहार स्वरूप सोने के गहने दिये थे | हस्तिनापुर नरेश महाराजा दुष्यंत का ऋषि कन्या शकुंतला से प्रेम प्रसंग जंगल मे ही हुआ और चक्रवर्ती सम्राट महाराजा भरत का जन्म हुआ और वंश आगे बढा | पांडू की मृत्यु के बाद माता सत्यवती ने अपनी बहुओं अम्बिका और अम्बालिका के साथ जीवन के अंतिम सोपान पर वन को जाना ही श्रेयस्कर समझा | और महाभारत के बाद गांधारी धृतराष्ट्र के साथ माता कुंती ने जो अब राजमाता थी पर राजमहल छोड़ गांधारी के साथ स्वेच्छा से ही वन्य जीवन स्वीकार किया | तर्कशास्त्र कि एक शाखा अरण्य में लिखे जाने के कारण ‘आरण्यक’ कहलाई | जंगली जीवन (आश्रमीय जीवन) शांत और सादगी पूर्ण था | जबकि शहरी जीवन शोर, व्यस्त, तनाव और आप धापी के साथ विलासितापूर्ण होता है | तपोवनो में जंगल होने के कारण भी सम्पूर्ण आत्मनिर्भर पारिवारिक व्यवस्था होती थी | ये जंगली पारिवारिक जीवन तमाम मानवीय मूल्यों के उच्च आदर्शों को प्रस्तुत करते हुए अनुकरणीय होते थे | इसी कारण आश्रम सन्यासियों, त्यागियों, विरक्तों, योगियों, व्यापारिक और धार्मिक यात्रियों को अपनी और आकर्षित कर उनके शरणस्थली बनते थे | जैसे जैसे भारतीय जन मानस आश्रम संस्कृति से हटता गया | भारत का वैभव भी क्षीण होता गया | इसी लिए जीवन का एक कालखंड वानप्रस्थ रहकर जंगल में गुजारने की परंपरा पड़ी | कभी समाज को सुधारने के सुखमय और समृद्ध बनाने के कानून जंगल में बनते थे | अब जंगलों को स्वस्थ्य, समृद्ध और संरक्षण के कानून समाज में बनते है | अब जरा चिंता करें की भारत मे तो जंगल के कानून के आलावा कुछ बचता ही नहीं है | अत: ध्यान रहे हमारे ‘जंगल के कानून’ अति सम्मान योग्य है ||