Thursday 28 September 2023

“राय प्रवीण”

 

                        “राय प्रवीण”

कांग्रेस के आशीर्वाद, कम्युनिस्टों के प्रभाव और सेकुलर की कुटिल चालों से अकबर की महानता के चर्चे भारत के हर बच्चे की जुबान पर अभी तक भी है । अकबर की उस तथाकथित महानता की पुराण में एक किस्सा आज मैं भी जोड़ता हूं । ओरछा साम्राज्य जो वर्तमान में उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड का एक हिस्सा  है | ये ओरछा मुगलकाल में स्वतंत्र स्वाभिमानी, गौरवशाली क्षत्रिय इतिहास का एक अभिन्न अंग था । अकबर के कालखंड में वहां के राजा की एक राजदासी “राय प्रवीण” थी । जो अनिंद्य सुंदरी, हिंदी काव्य में जिसे असुर्यम्पश्या (जिसे सूर्य ने भी न देखा हो) कहा गया है । हालांकि सौंदर्य के रूप में रानी पद्मिनी के उदहारण और उपमा आज भी दिए जाते हैं | पर ओरछा की ये राज गणिका भी अत्यंत सुन्दर थी | जो देखे देखता ही रह जाय । ओरछा की इस राजसुंदरी के सौंदर्य के चर्चे ओरछा राजमहल के परकोटे को फांदकर अकबर के आगरा स्थित महल तक पहुंच गए । मुगलों के दरबार में किसी महिला के सौंदर्य के चर्चे पहुंचे और वह दरबार में उपस्थित ना हो ऐसा संभव ही नहीं था । राज्यादेश जारी हुआ कि “ओरछा  की उस सुंदरी को मुग़ल दरबार में पेश किया जाय | हम भी तो देखे, उसके सौंदर्य को ।“ और एक दिन वह राज दासी अकबर के दरबार में प्रस्तुत थी । ओरछा की उस निरीह परंतु राजपूती स्वाभिमान में पली बढ़ी दासी को अकबर के दरबार में प्रस्तुत किया गया । अकबर के सामने प्रस्तुत हो इस दासी ने सिर्फ 2 पंक्तियां पढ़ी । सिर्फ उन दो पंक्तियों के सरल और सहज भाव से राय प्रवीण ने अकबर को उसी के भरे दरबार में जनता, सभासदों, और उसी के नवरत्नों, के सामने जलील कर नंगा का दिया | पंक्तियाँ निम्न प्रकार से हैं |

विनती राय प्रवीन की, सुनिए साहि सुजान।

जूठी पातरि भखत हैं, बारी वायस, स्वान॥

राय प्रवीण कहती है कि (हे शाही सुजान राय प्रवीण की विनती सुनिए, झूठी पत्तल तो कुत्ता, सूअर और कोआ खाता है |) राय प्रवीण का भाव था, कि हे शाही सुजान झूठी पत्तल तो सिर्फ कोआ, सूअर और कुत्ता ही खता है | आप इनमे से कौन है ? इतना सुनते ही अकबर पर घड़ों पानी पड गया | अपने ही दरबार में अपने ही लोगों के बीच अकबर जलील और निष्शब्द था | तुरंत आदेश दिया की दासी को ससम्मान ओरछा छोड़कर आओ | एक अदनी सी दासी ने तथाकथित महान अकबर को उसके ही भरे दरबार में अपमानित कर दिया | राय प्रवीण ने उसे दरबार में सर उठने के योग्य भी नहीं छोड़ा |

लेखक :- शीलेन्द्र कुमार चौहान |

 

Monday 22 May 2023

 

             “तात्या टोपे (महान स्वतंत्रता सेनानी)

तात्या टोपे का नाम भारत के १८५७ ई. के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के नायकों में सम्मान से लिया जाता है | वे इस संग्राम में न केवल सेनानायक व रणनीतिकार थे बल्कि उनकी भूमिका महत्वपूर्ण प्रेरणादायी और बेजोड़ थी | उनका जन्म १८१४ ई. में महाराष्ट्र के नासिक के समीप पटोदा जिले के येवला नामक ग्राम में ‘पांडुरंग राव भट्ट’ के घर ८ संतानो में सबसे बड़े पुत्र के रूप में हुआ था |  इनके पिता बाजीराव पेशवा द्वितीय के यहाँ घरेलू नोकर थे | इनका वास्तविक नाम ‘रामचंद्र पांडुरंग राव’ था | वे बाजीराव के करीब आ गए और उनके विस्वसनीय  बन गए | तथा उनके साथ बिठुर आ गए और यही लक्ष्मीबाई और नाना साहेब के साथ शिक्षा पाई | तभी निर्धारित समय से पूर्व १० मई को क्रांति की ज्वाला भड़क उठी | तब ये सभी लोग कानपूर में थे | 1857 की क्रांति के इतिहास की रक्त रंजित गौरव गाथा सेनानियों ने अपने खून से लिखी | जब नाना साहेब, लक्ष्मी बाई आदि बड़े चहरे अंग्रेजों की तलवार की भेंट चढ़ गए तो तात्या टोपे अपने को बचाते और अंग्रेजों को छकाते अंतिम सांस तक लम्बी लडाई लडते रहे | क्रांतिकारियों ने 4 जून 1857 को कानपुर ७ जून को झाँसी १४ जून को ग्वालियर पर कब्ज़ा कर लिया | अंग्रेज संभले और इलाहबाद से सेना बुला १७ जोलाई को पुन: कानपूर पर कब्ज़ा कर लिया | कानपूर का पतन होने पर गुप्त मार्ग से निकल तात्या ग्वालियर पहुंचे और वहां से सेना लेकर कालपी पहुंचे | यहाँ से जनरल विन्डहम को कानपूर के पास घेर लिया | तथा दो दिन की कड़ी मशक्कत के बाद कानपूर पर पुन: कब्ज़ा कर लिया | लखनऊ में क्रांतिकारियों को हराता हुआ केम्बेल अपनी सेना ले विन्ढम की मदद को चल पड़ा | तात्या ने अयोध्या में गंगा का पुल उडा केम्बेल का गंगा पर करना रोक दिया | फिर भी केम्बेल तोपों की मार करता हुआ २० नवम्बर को कानपूर आ पहुंचा | तथा १ व २ दिसंबर को तात्या की सेना पर हमला बोल दिया | अंग्रेजों की घेरेबंदी तोड़ तात्या को पीछे हटना पडा और कालपी पहुँच गए | यहाँ से २२ हजार की सेना ले लक्ष्मीबाई की सहायता को झाँसी के लिए बेतवा नदी के पास पहुंचे पर यहां पर भी  अंग्रेजों से सामना हो गया | अप्रेल १९५८ के इस युद्ध में भी तात्य को पीछे हटाना पडा | ग्वालियर पहुंचे तथा सेना एकत्र की | मई के अंत में गोपालपुर जाकर राव साहेब, रानी लक्ष्मी  बाई, नवाब बांदा आदि को ग्वालियर पर चढ़ा लाये कालपी के पतन के बाद ये लोग यहाँ एकत्र थे | सिंधिया की पूरी सेना इन के साथ आ गई पर राजा सिंधिया को भागकर आगरा शरण लेनी पड़ी | ग्वालियर के किले पर क्रांतिकारी विजय जश्न मना ही रहे थे की अंग्रेज सेना ने सिंधिया को साथ लेकर ग्वालियर पर चढ़ाई कर दी | क्रांतिकारीयों को पराजय हाथ लगी | रानी लक्ष्मीबाई युद्ध में खेत रही | तात्या वहां से बची सेना और राव साहब के साथ मथुरा पहुंचने में सफल हुए | बार बार की पराजय के कारणों और परिस्थितियों पर विचार कर तात्या ने रणनीति बदलने का निश्चय किया | जिसमे अंग्रेजों से आमने सामने के युद्ध के बजाय गुरिल्ला युद्ध करने की नीति बनी | अंग्रेजों पर अंतिम और निर्णायक प्रहार के लिए तात्या स्वतंत्रता सेनानियों को संगठित कर नर्मदा पार कर दक्षिणा दिशा में जाना चाहते थे | जबकि अंग्रेज सेना उन्हें नर्मदा से पहले ही दबोचने की फ़िराक में थी | तात्या ने जयपुर जाते जाते टोंक पर चढ़ाई कर दी | जहाँ से उन्हें टोंक की सेना मिल गई | अंग्रेजी सेना दो तरफ से इनकी सेना का पीछा कर रही थी | वह इंद्रगढ (कोटा), बूंदी, नीमच, नसीराबाद, होते हुए ७ अगस्त १९५८ को भीलवाडा पहुंचे | यहाँ अंग्रेजी सेना से फिर उनका मुकाबला हुआ | पर तात्या उसे चकमा देकर नाथद्वारा जा पहुंचे | यहाँ फिर १४ अगस्त को अंग्रेज सेना ने इन्हें आ घेरा | इस युद्ध में भी इन्हें अपार क्षति उठानी पड़ी पर हार नहीं मानी | इस समय अंग्रेज सेना इनका तीन ओर से पीछा कर रही थी | पर तात्या तीनों की आँख में धूल झोंक कर चम्बल पार करने में सफल रहे | और अब ये झालरपाटन पहुंचे तो अंग्रेजों के पिट्ठू राजा ने इनपर हमला कर दिया | पर उसकी सारी सेना तात्या से मिल गई | तब उस राजा को ३२ तोपें, रसद, १५ लाख रुपये और अन्य युद्ध सामग्री  देकर तात्या से संधि करनी पड़ी | तात्या की ५ दिन यहाँ रुक कर दक्षिण दिशा में आगे बढ़ने की योजना थी | तात्या टोपे की विशेषता और प्रतिभा थी कि एक दिन उनके पास सेना और  रसद शून्य हो जाती थी और अगले दिन उनके नाम के जादू से राजाओं रजवाड़ों की सेना अपने पूरे साजों सामन के साथ उनके नत मस्तक किये खड़ी मिलती थी | इनकी गिरफ़्तारी के मनसूबे बांधे इनके पीछे पड़ी अंग्रेज सेना हाथ मालती रह जाती थी | झालारपाटन से तात्या रामगढ़ पहुंचे और महू इंदौर होते हुए ईसागढ़ (ग्वालियर रियासत) पहुंचे | इन दस महीनो में अंग्रेजों की ५ सेनाएं हाथ धोकर उनके पीछे पड़ी रही और हारती रही | ईसागढ़ में तात्या ने अपनी सेना दो भागों में बाँट दी | एक की कमान राव साहब पेशवा दूसरी की कमान स्वयम तात्या ने संभाली | दोनों अलग अलग मार्ग से होते हुए ललितपुर पहुंचकर पुन: मिले | यहाँ से पहाड़ जंगल नदी घाटियों के रास्ते चलकर आखिर तात्या सेना सहित नर्मदा पार करने में सफल हो गए | होसंगाबाद से तात्या के नागपुर पहुँचने पर न केवल भारत स्थित अंग्रेज सेनानायक आश्चर्य चकित हुए वरन इंग्लैण्ड और योरोप में भी तात्या के सैन्य चातुर्य की भूरी भूरी प्रशंसा हुई | इधर तात्या अपना पीछा करने वाली अंग्रेजी सेनाओं की रोकथाम के लिए उनकी डाक लूटने, तारों की लाइन काटने और उनकी चोकियों को नष्ट करने की व्यवस्था करते हुए नर्मदा के उद्गम स्थल तक पहुँच गए |  करजन गाँव के पास अंग्रेज सेना से घिर जाने पर वे नर्मदा नदी में कूद पड़े और तैरकर नदी पारकर बांसवाडा पहुंह गए | यहाँ शहजादा फिरोजशाह भी अपनी सेना के साथ इनसे आ मिला | ग्वालियर का एक दरबारी पाडोन का राजा मानसिंह भी इनके साथ हो लिया | ये सब १३ जनवरी १८५९ को इंद्रगढ़ पहुंचे १६ जनवरी को अंग्रेज सेना ने इन्हें चारों ओर से घेर लिया | तात्या पकड़ में नहीं आये और २१ जनवरी को अलवर के पास सिखार में पुन: प्रकट हुए | तात्या कुछ दिन विश्राम करने और अंग्रेजों से लोहा लेने की आगे की योजना और रणनीति बनाने की मंशा से सेना छोड़ मित्र मानसिंह के यहाँ पाड़ोंन पहुंचे | परन्तु नियति ने कुछ और ही सोच रखा था इस मित्रघाती गद्दार मानसिंह ने अंग्रेजों से घूस लेकर ७ अप्रेल १८५९ में तात्या को गिरफ्तार करा दिया | और अंग्रेजों ने न्याय का नाटक करके १८ अप्रेल १८५९ को भारत माता के वीर सपूत और क्रांति के महा नायक तात्या टोपे को फांसी पर लटका दिया ||

                                      लेखक :-    

                                                                    शीलेन्द्र कुमार चौहान

 

Wednesday 26 April 2023

 

                  “संस्कृत का अद्भुत चमत्कार”

मित्रों बचपन में हाई स्कूल इंटर में जब हम पढ़ते थे तो हमें बताया जाता था । कि एक ही अंग्रेजी वाक्य मे अंग्रेजी वर्णमाला के 26 के 26 अक्षर है । निसंदेह यह विषय आपके संज्ञान में भी आया होगा अतः आपके लिए भी यह जानना जरूरी है | अगर आपको अपनी अस्मिता और पुरातन संस्कृति पर गर्व है तो । वो अंग्रेजी वाक्य कुछ इस प्रकार से है :- “द क्विक ब्राउन फॉक्स जम्प्स ओवर द लेजी डॉग” । साथ में यह भी कहा जाता था, कि हिन्दी वर्णमाला इतनी कठिन और दुरुह है कि इसे एक श्लोक या कवितापंक्ति में संकलित नहीं किया जा सकता । लेकिन मित्रो हजारों वर्ष पूर्व धारा नगरी के न्यायप्रिय और कलाप्रेमी राजा भोजदेव ने इसे अपने एक संस्कृत ग्रन्थ के एक छंद में कर दिखाया है | जिसे हमें नहीं बताया गया | जो उनके संस्कृत ग्रन्थ "सरस्वती कंठाभरणम्" में उल्लेखित है | जिसमे संस्कृत, हिंदी भाषा के सभी 33 अक्षरों का प्रयोग है । इसमें खोजने से भी किसी अक्षर की पुनरावृत्ति नहीं मिलेगी । इसमें पूरे के पूरे 33 अक्षर हिंदी वर्णमाला के बिना दोहराए हैं । जबकि अंग्रेजी वाले वाक्य में दो तीन अक्षरों को दोहराया गया है । मुझे गर्व है अपने संस्कृति पर अपने पुरातन वांगमय पर ।संस्कृत की अद्भुत छमता, भाषा विस्तार एवं चमत्कारी रचनाएँ जो संस्कृत को विश्व की अन्य सभी भाषाओं से उत्कृष्ठ बनाती है । इसे कभी मैकाले वादियों ने पटल पर नहीं आने दिया |

वर्ण चित्र:

वर्णों के एक अद्भुत क्रम में लिख कर एक चित्र बनाना इस विधा की खूबी है, आईये देखते हैं एक उदाहरण, निम्न श्लोक में सभी 33 व्यंजन को उनके नियत प्राकृतिक क्रम में रख कर केवल कुछ स्वर परिवर्तित कर यह श्लोक बनाया है, क ख ग घ .....ऐसे लिखते हुए ह तक का प्रयोग है । चमत्कार देखिये। 

 कः खगौघांचिच्छौजा झांञग्योsटौठीडडंढण:।

तथोदधिन पफबार्भीर्मयोsरिल्वाशिषां सह: ।

"वह कौन है, पक्षी प्रेमी, कुशाग्रता में शुद्ध, दूसरों की शक्ति को चुरा लेने में माहिर, दुश्मनों के बल को नाश करने वालों में अग्रणी, अति तीव्र निर्भय, वह कौन है जो सागर को भी भर दे ? वह माया का सम्राट आशीर्वाद का संग्रहालय और दुश्मनों का नाशक है ।"

है न यह कलाकारी क्या यह कलाकारी कहीं अन्य किसी भाषा में हो सकती है। नमन हमारी संस्कृति नमन हमारी संस्कृत नमन हमारे पौराणिक आचार्य नमन।

 शीलेन्द्र चौहान । विहिप मेरठ प्रान्त, मेरठ ।