३०जनवरी को हुई गाँधी की हत्या एक अबूझ पहेली है | वैसे तो आम धारना है कि भारत विभाजन के बाद पाकिस्तान को ५५ करोड दिलाने के रोष स्वरूप नाथूराम गोडसे ने गाँधी कि हत्या की | क्या एक महान व्यक्ति की हत्या का ये एक कारण काफी था या इसके पीछे कुछ और भी षड्यंत्र था ? क्या ये पूर्व नियोजित थी ? हत्या से किसको लाभ हुआ ? आदि अनेक अनुत्तरित प्रश्न आज भी उत्तर की तलाश में हैं |
*नाथूराम गोडसे गाँधी के साथ थे और “सविनय अवज्ञा आन्दोलन“ में जेल भी गए थे | १२ जनवरी १९४८ को गाँधी जी से हुई भेंट में लार्ड माउन्टबेटन ने साफ कह दिया था कि हमारी सरकार पाकिस्तान को ५५ करोड रु देने कि बात नहीं मान रही है | इस पर गाँधी ने कहा था मै मानता हूँ कि ये गलत , अनैतिक , बेईमानी और अंतर्राष्ट्रीय वादा खिलाफी है पर फिर भी पाकिस्तान को ये धन राशि दी जनि चाहिए | गाँधी ने पाकिस्तान को ५५ करोड रु बिना शर्त अविलम्ब देने कि बात पर अपना उपवास १३ जनवरी को सुबह ११.५५ पर प्रारंभ कर दिया | गाँधी के इस निर्णय से भारत कि जनता में बेहद नाराजगी पैदा हुई | नाथूराम गोडसे तिलमिला उठे “कुछ करना पड़ेगा” ऐसा उनके मन में विचार घर कर गया | नारायण आप्टे , विष्णु करकरे व मदनलाल पाहवा भी इस बात से सहमत थे |
*नेहरू पटेल सहित पूरे मंत्रीमंडल ने गाँधी को समझाया ,पर गाँधी कहा मानने वाले थे ,पक्के हठी और तानाशाह ( बस ये ही एक बात कांग्रेस ने आज तक कायम रखी ) जो ठहरे | उन्हें यहाँ तक कहा गया कि पाकिस्तान इस धनराशी से हथियार खरीदेगा और हम पर ही वार करेगा और कश्मीर समस्या कभी हल नहीं होगी | १८ जनवरी को गांधीजी से कहा गया कि भारत सरकार आपकी शर्त मान गयी है | इस पर गाँधी ने अपना अनशन तोडना स्वीकार कर लिया | पर ७ मांगे भी रख दी | जिनमे एक प्रमुख मांग थी “कुब्बत-उल-इस्लाम”( इस्लाम की शक्ति जो २७ जैन और हिंदू मंदिरों को तोड़कर कुतुबुद्दीन ने दिल्ली में बनाई गई थी | उसकी मृत्यु पर हर वर्ष उर्स मनाया जाता है ) के समारोह , जो २७ जनवरी को हों रहा था , में आने वाले पाकिस्तानियो कि सुरक्षा कि गारंटी | २० जनवरी की सायं को गाँधी की प्रार्थना सभा में मदनलाल पाहवा ने विस्फोट कर दिया और गिरफ्तार हो जेल चला गया | गाँधी ने सभा में मची अफरा तफरी से भयभीत लोगों को शांत किया | साथ ही घोषणा भी कर दी कि मुझे अब पाकिस्तान जाना है | अपनी पाकिस्तान यात्रा कि तैयारी के लिए गाँधी ने जहाँगीर पटेल व सुशीला नैयर को पहले ही वहाँ भेज दिया था | गाँधी की पाकिस्तान यात्रा के संकल्प से माउंटबेटन और नेहरु चिंतित और सतर्क थे | इन्हें ये बूढा गाँधी कांटा नजर आने लगा था | क्योकि गाँधी ना शांत बैठते थे और ना किसी को बैठने देते थे | माउंटबेटन-नेहरु जोड़ी को अपनी योजना विफल होती नजर आ रही थी |
*महत्त्व पूर्ण बात ये है कि हत्या से ६ दिन पूर्व यानि २४ जनवरी को विस्फोट में गिरफ्तार मदनलाल ने पुलिस की पूछताछ में गाँधी जी कि हत्या के षड्यंत्र के बारे में साफ - साफ बता दिया था | ऐसा कहा जाता है कि करकरे और आप्टे के तो फोटो भी पुलिस को मिल गए थे | उधर गाँधी मुंगेरीलाल का एक हसीन सपना और देखने में व्यस्त थे | जो उन्होंने एक पाकिस्तानी से यों व्यक्त किया | “मै एक पचास मील लंबा कारवां देखना चाहता हूँ जिसमे हिंदू और सिख हों जिसकी मैं अगवाई कर पाकिस्तान ले जाऊँ वापसी में ऐसा ही कारवां मुस्लिमो का भारत लेकर आऊ” इससे गाँधी क्या चाहते थे भगवान जाने |
* इस तरह गाँधी हत्या के ४ प्रमुख कारण बनते है | (१) भारत विभाजन - जिस पर गाँधी कहा करते थे कि पाकिस्तान का निर्माण मेरी लाश पर होगा | (२) भारत सरकार को ५५ करोड दिलाने के लिए बाध्य करना (३) हिंदू मंदिरों को तोड़ कर बनाई गई मस्जिद पर उर्स में आने वाले पाकिस्तानियो कि सुरक्षा और स्वागत | (४) विभाजन से इधर उधर हुए हिंदू मुसलमानों को पुनः भारत व पाकिस्तान ले जाकर बसाना | महत्त्व पूर्ण प्रश्न ये है कि जब मदनलाल ने ६ दिन पूर्व ५४ पृष्ठों की अपनी रिपोर्ट में गाँधी हत्या के षड्यंत्र का खुलासा कर दिया था , यानि सुरक्षा तंत्र को पूरी जानकारी थी | तो सरकार क्या कर रही थी ? क्या कोई गाँधी को मरने देना चाहता था ? क्या गाँधी की हत्या से किसी को लाभ होने वाला था ? सभा के गेट पर गोडसे की तलासी क्यों नहीं हुई जबकि वहाँ सुरक्षा कर्मी की डयूटी थी |
* दरसल मिशन भारत –विभाजन को परवान चढाने में माउंटबेटन को तीन काम करने थे | (१) भारत विभाजन यानि पाकिस्तान निर्माण | (२) भारत को डोमिनियन स्टेट का दर्जा देना , यानि पूर्ण स्वराज नहीं देना | (३) इंग्लैंड भक्त जवाहरलाल नेहरू को निष्कंटक सत्ता सोंपना | माउन्ट बेटन के इस तीन सूत्री मिशन में तीन ही बाधाए थी | (१) गाँधी (२) पटेल और (३) आर एसएस | माउंटबेटन विफलता का सेहरा बांधे इंग्लैंड नहीं लोटना चाहते थे | अब माउंटबेटन को अपने सामने गाँधी , और नेहरु के सामने पटेल सबसे बड़ी बाधा नजर आने लगे | हिंदू शक्ति (आरएसएस) भी उनकी चिंता का एक कारण थी |
गाँधी की हत्या से माउंटबेटन – नेहरु की जोड़ी के तीनों काम पूर्ण हों गए | (१) गाँधी रास्ते से हट गए (२) आरएसएस पर प्रतिबंध लगाने का मोका मिल गया (३) सरदार पटेल को दिल का दौरा पड गया और इस प्रकार माउंटबेटन का काम पूरा हों गया |
( सन्दर्भ पुस्तक - आधी रात की आजादी, लेखक - Dominique lapierre and Larry Collins)