Monday 30 January 2012

“ गाँधी हत्या का सच ”


               
३०जनवरी को हुई गाँधी की हत्या एक अबूझ पहेली है | वैसे तो आम धारना है कि भारत विभाजन के बाद पाकिस्तान को ५५ करोड दिलाने के रोष स्वरूप नाथूराम गोडसे ने गाँधी कि हत्या की | क्या एक महान व्यक्ति की हत्या का ये एक कारण काफी था या इसके पीछे कुछ और भी षड्यंत्र था ? क्या ये पूर्व नियोजित थी ? हत्या से किसको लाभ हुआ ? आदि अनेक अनुत्तरित प्रश्न आज भी उत्तर की तलाश में हैं |
   *नाथूराम गोडसे गाँधी के साथ थे और “सविनय अवज्ञा आन्दोलन“ में जेल भी गए थे | १२ जनवरी १९४८ को गाँधी जी से हुई भेंट में लार्ड माउन्टबेटन ने साफ कह दिया था कि हमारी सरकार पाकिस्तान को ५५ करोड रु देने कि बात नहीं मान रही है | इस पर गाँधी ने कहा था मै मानता हूँ कि ये गलत , अनैतिक , बेईमानी और अंतर्राष्ट्रीय वादा खिलाफी है पर फिर भी पाकिस्तान को ये धन राशि दी जनि चाहिए | गाँधी ने पाकिस्तान को ५५ करोड रु बिना शर्त अविलम्ब देने कि बात पर अपना उपवास १३ जनवरी  को सुबह ११.५५ पर प्रारंभ कर दिया | गाँधी के इस निर्णय से भारत कि जनता में बेहद नाराजगी पैदा हुई | नाथूराम गोडसे तिलमिला उठे “कुछ करना पड़ेगा” ऐसा उनके मन में विचार घर कर गया |  नारायण आप्टे , विष्णु करकरे व मदनलाल पाहवा भी इस बात से सहमत थे |
    *नेहरू पटेल सहित पूरे मंत्रीमंडल ने गाँधी को समझाया ,पर गाँधी कहा मानने वाले थे ,पक्के हठी और तानाशाह ( बस ये ही एक बात कांग्रेस ने आज तक कायम रखी ) जो ठहरे | उन्हें यहाँ तक कहा गया कि पाकिस्तान इस धनराशी से हथियार खरीदेगा और हम पर ही वार करेगा और कश्मीर समस्या कभी हल नहीं होगी | १८ जनवरी को गांधीजी से कहा गया कि भारत सरकार आपकी शर्त मान गयी है | इस पर गाँधी ने अपना अनशन तोडना स्वीकार कर लिया | पर ७ मांगे भी रख दी | जिनमे एक प्रमुख मांग थी “कुब्बत-उल-इस्लाम”( इस्लाम की शक्ति जो २७ जैन और हिंदू मंदिरों को तोड़कर कुतुबुद्दीन ने दिल्ली में बनाई गई थी | उसकी मृत्यु पर हर वर्ष उर्स मनाया जाता है ) के समारोह , जो २७ जनवरी को हों रहा था , में आने वाले पाकिस्तानियो कि सुरक्षा कि गारंटी |  २० जनवरी की सायं को गाँधी की प्रार्थना सभा में मदनलाल पाहवा ने विस्फोट कर दिया और गिरफ्तार हो जेल चला गया | गाँधी ने सभा में  मची अफरा तफरी से भयभीत लोगों को शांत किया | साथ ही घोषणा भी कर दी कि मुझे अब पाकिस्तान जाना है | अपनी पाकिस्तान यात्रा कि तैयारी के लिए गाँधी ने जहाँगीर पटेल व सुशीला नैयर को पहले ही वहाँ भेज दिया था | गाँधी की पाकिस्तान यात्रा के संकल्प से माउंटबेटन और नेहरु चिंतित और सतर्क थे | इन्हें ये बूढा गाँधी कांटा नजर आने लगा था | क्योकि गाँधी ना शांत बैठते थे और ना किसी को बैठने देते थे | माउंटबेटन-नेहरु जोड़ी को अपनी योजना विफल होती नजर आ रही थी |
    *महत्त्व पूर्ण बात ये है कि हत्या से ६ दिन पूर्व यानि २४ जनवरी को विस्फोट में गिरफ्तार मदनलाल ने पुलिस की पूछताछ में गाँधी जी कि हत्या के षड्यंत्र के बारे में साफ - साफ बता दिया था | ऐसा कहा जाता है कि करकरे और आप्टे के तो फोटो भी पुलिस को मिल गए थे | उधर गाँधी मुंगेरीलाल का एक हसीन सपना और देखने में व्यस्त थे | जो उन्होंने एक पाकिस्तानी से यों व्यक्त किया | “मै एक पचास मील लंबा कारवां देखना चाहता हूँ जिसमे हिंदू और सिख हों जिसकी मैं अगवाई कर पाकिस्तान ले जाऊँ वापसी में ऐसा ही कारवां मुस्लिमो का भारत लेकर आऊ” इससे गाँधी क्या चाहते थे भगवान जाने |
   * इस तरह गाँधी हत्या के ४ प्रमुख कारण बनते है | (१) भारत विभाजन - जिस पर गाँधी कहा करते थे कि पाकिस्तान का निर्माण मेरी लाश पर होगा | (२) भारत सरकार को ५५ करोड दिलाने के लिए बाध्य करना (३) हिंदू मंदिरों को तोड़ कर बनाई गई मस्जिद पर उर्स में आने वाले पाकिस्तानियो कि सुरक्षा और स्वागत | (४) विभाजन से इधर उधर हुए हिंदू मुसलमानों को पुनः भारत व पाकिस्तान ले जाकर बसाना | महत्त्व पूर्ण प्रश्न ये है कि जब मदनलाल ने ६ दिन पूर्व ५४ पृष्ठों की अपनी रिपोर्ट में गाँधी हत्या के षड्यंत्र का खुलासा कर दिया था , यानि सुरक्षा तंत्र को पूरी जानकारी थी | तो सरकार क्या कर रही थी ? क्या कोई गाँधी को मरने देना चाहता था ? क्या गाँधी की हत्या से किसी को लाभ होने वाला था ? सभा के गेट पर गोडसे की तलासी क्यों नहीं हुई जबकि वहाँ सुरक्षा कर्मी की डयूटी थी |
    * दरसल मिशन भारत –विभाजन को परवान चढाने में माउंटबेटन को तीन काम करने थे | (१) भारत विभाजन यानि पाकिस्तान निर्माण | (२) भारत को डोमिनियन स्टेट का दर्जा देना , यानि पूर्ण स्वराज नहीं देना | (३) इंग्लैंड भक्त जवाहरलाल नेहरू को निष्कंटक सत्ता सोंपना | माउन्ट बेटन के इस तीन सूत्री मिशन में तीन ही बाधाए थी | (१) गाँधी (२) पटेल और (३) आर एसएस | माउंटबेटन विफलता का सेहरा बांधे इंग्लैंड नहीं लोटना चाहते थे | अब माउंटबेटन को  अपने सामने गाँधी , और नेहरु के सामने पटेल सबसे बड़ी बाधा नजर आने लगे | हिंदू शक्ति (आरएसएस) भी उनकी चिंता का एक कारण थी |
गाँधी की हत्या से माउंटबेटन – नेहरु की जोड़ी के तीनों काम पूर्ण हों गए | (१) गाँधी रास्ते से हट गए (२) आरएसएस पर प्रतिबंध लगाने का मोका मिल गया (३) सरदार पटेल को दिल का दौरा पड गया और इस प्रकार माउंटबेटन का काम पूरा हों गया |

( सन्दर्भ पुस्तक - आधी रात की आजादी, लेखक - Dominique lapierre and Larry Collins)

Sunday 29 January 2012

बसंत पंचमी . हकीकत और भोजशाला


                  “बसंत पंचमी”
माघ शुक्ल पंचमी ,यानि बसंत पंचमी का हिंदू दर्शन में महत्वपर्ण स्थान है | ऐसी मान्यता है कि आज के दिन ज्ञान , विद्या और कला की देवी वीणावदनी माँ सरस्वती का प्राकट्य हुआ | इससे पूर्व प्रकृति निश्तब्ध , निस्तेज , मोन , अवाक और अव्यक्त थी | और प्रकृति वाणीमय हुई , तथा साथ ही शब्द , वाणी व अक्षर प्रकट हुए |  इसीलिए आज के दिन ही सरस्वती पूजा का प्रचलन हुआ | आम धारना है की ये बसंत पंचमी की शुरुआत है परन्तु वास्तव में तो बसंत पंचमी ४० दिन बाद चैत्र मास से शुरू होती है | चूँकि बसंत ऋतुराज है अत; उसके आगमन की पूर्व सूचना का पर्व बसंत पंचमी है | एक अनोखी बात ये भी है प्रक्रति कि चितेरे कवि “सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला “का जन्म भी आज के दिन २८ फरवरी १८९९ को हुआ | काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना भी १९१६ में मालवीय जी ने बसंत पंचमी के दिन ही की थी | गीता में श्री कृष्ण ने कहा है की ऋतूओ में मै बसंत हूँ | आज ही के दिन पृथ्वी राज चौहान और गोरी का अंतिम युद्ध हुआ और चौहान कैद कर कंधार (अफगानिस्थान) ले जाये गए |
     आज ही के दिन को धर्मवीर हकीकत राय ने १७३४ में अपने बलिदान से अभीसिंचित कर और प्रेरणादायी बना दिया | उस अमर बलिदानी के स्मरण के बिना ये बसंत पंचमी अधूरी लगेगी | धर्मवीर हकीकत राय का जन्म १७१९ में स्यालकोट वर्तमान पकिस्तान में पिता भागमल खत्री और माँ कोरां के घर इकलोती संतान के रूप में हुआ था | तब दिल्ली पर शाह  आलम का शासन था | बालक हकीकत बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि का होने के कारण उर्दू , फारसी और संस्कृत को शीघ्र सीख गया | इससे मदरसे के मुस्लिम बच्चे चिढ़ते थे | और एक दिन योजना बनाकर फातिमा के बहाने हकीकत को फंसा दिया और स्थिति  हकीकत की फांसी तक पहुचं गयी | फांसी के बचाव के सारे उपाय बेकार गए और हकीकत के सामने इस्लाम कबूल या फांसी में से एक को चुनने को कहा गया | तब उस १५ साल के बालक हकीकत ने कहा कि “ यदि इस्लाम कबूल करने के बाद भी मोत निश्चित है तो अपने हिंदू धर्म में ही क्यों ना मरू “ | और इस प्रकार स्यालकोट के काजी ने फांसी की सजा सुना दी | अपील करने पर लाहोर के क्रूर काजी जकरिया खान ने सजा बहाल ही रखी | और १७३४ में धर्माभिमानी वीर बालक हकीकत माँ का दिया पीला कपड़ा सर पर बांध कर हँसते – हँसते फांसी चढ़ गया | इसी  पीले कपडे की प्रेरणा से भगत सिंह आदि क्रांतिकारी “ मेरा रंग दे बसंती चोला “ गा कर फांसी चढ़ गए | इस बलिदान पर किसी कवि ने कहा था “ सर फराने वतन तुझको वतन पर नाज़ है |हकीकत का दाहसंस्कार लाहोर में होने के कारण एक समाधी लाहोर मे तथा कुछ अस्थियां लाकर दूसरी समाधी स्यालकोट में बनाई गयी | १९४७ में स्वतंत्रता के बाद स्यालकोट से मिट्टी लाकर हकीकत की ससुराल बटाला ( पंजाब भारत ) में तीसरी समाधी बनाई गयी , इस प्रकार उस अमर बलिदानी की तीन समाधी में से एक बटाला में ही श्रधा सुमन फूल चदते है | इस बालक को कोटि कोटि नमन | भारत का सबसे पहला अवज्ञा आंदोलन चलाने वाले रामसिंह कूका का जन्म भी बसंत पंचमी को हुआ था |   
                       “भोजशाला“
    बसंत पञ्चमी पर “भोजशाला” की चर्चा करना भी अनिवार्य है | क्योकि इसके बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है | हजारवीं शताब्दी में मध्य भारत के कलाप्रिय और प्रतापी राजा ,राजा भोज ने अपनी राजधानी धारा नगरी में माँ सरस्वती की पूजा अर्चना हेतू सन १०३४ में एक विशाल “भोजशाला” का निर्माण कराया था | ये विद्या ,ज्ञान और कला का विश्व विख्यात  केन्द्र २७० वर्षों तक अबाध अपनी कीर्ति की पताका फहराता रहा | लेकिन अयोध्या , काशी , मथुरा आदि की तरह “भोजशाला” भी मुस्लिम आक्रान्ताओ का शिकार बनी | कालांतर में लंबे बलिदान और संघर्ष के बाद हिन्दुओ को एक दिन का ही बसंत पञ्चमी की पूजा का अधिकार मिल सका | इसमें भी २००२ में मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्य मंत्री दिग्विजय सिंह ने हिन्दुओ को आधे दिन की ही पूजा की अनुमति दी | आधे दिन के लिए मुसलमानों को भोजशाला में मोलाना कमाल का उर्स मनाने की अनुमति दे दी | और इस पर संघर्ष हो गया | एक वर्ष तक जागरण , आंदोलन और संघर्ष चलता रहा | अगली २००३ की बसंत पञ्चमी (६ फरवरी ) पर हिन्दु पूजा के लिए अड् गए | १९ फ़रवरी को सरकार ने गोली चला दी | २ भक्तो की मोत , ३९ घायल ,१४०० पर मुकदमा , १२ पर रासुका | स्वत्रंत भारत के इतिहास में अभूतपूर्व ढंग से ३०० लोगों पर एक करोड १६ लाख रु० का जुरमाना भी हुआ | ज्यों -ज्यों सरकार का दमन बढता गया हिन्दुओ का आन्दोलन भी उग्र से उग्रतर होता गया और  हिन्दुओ ने हार नहीं मानी | आखिर सरकार झुकी और ८ अप्रैल २००३ को ६९८ वर्षों का कलंक हटाकर विधि विधान से माँ सरस्वती की पूजा अर्चना बहाल हुई |

Friday 13 January 2012


              “स्वामी विवेकानंद”
जब भारत पर अंधकार का घना कुहासा छाया था | अध्यात्म और ज्ञान के बल पर विश्व का मार्ग दर्शन करने वाली माँ भारती परतंत्रता की बेडियो में जकड़ी थी | प्रकाश की किरण दिखाई नहीं देती थी | तब सोमवार १२ जनवरी १८६३ को कलकत्ता में स्वामी विवेकानंद (नरेंद्र) को वीर  प्रसूता भारत माँ ने एक ऐसे लाल को जन्म दिया ,जिसने विश्व को बता दिया की कोई शक्ति भले ही कुछ समय के लिए हथियारों ,कुटिल चालो और के बल पर गुलाम बना ले पर ज्ञान और आध्यात्म के मामले में दुनिया माँ भारती से बोनी ही रहेगी | उनका आभारी भारत १२ जनवरी को “युवा राष्ट्र दिवस “ के रूप में मनाता है | उनके बारे में बहुत सारी बाते है पर मैं एक ही प्रसंग का जिक्र करूगां | स्वामीजी का “११ सितम्बर १८९३ शिकागो” का वेदांत दर्शन पर विश्व प्रसिद्ध भाषण कोन नहीं जानता ,जिसके द्वारा उन्होंने बता दिया की दुनिया वालो तुम भारत को भोतिक गुलाम तो बना सकते हो पर आध्यत्मिक गुलाम तुम्ही भारत के रहोगे | वहाँ स्वामी जी ने कहा था की  “आध्यत्म ज्ञान और भारत दर्शन के बिना विश्व अनाथ है” | ये भारत दर्शन का “आध्यत्मिक विस्फोट” था जिसने विश्व को भारत का गुलाम बना दिया |  ११ सितम्बर की इस घटना के ठीक १०८ वर्ष बाद ११ सितम्बर २००१ को  मुश्लिम दर्शन का विस्फोट “विश्व व्यापर केन्द्र “ पर हुआ | और विश्व को इस्लाम का दुश्मन बना दिया | ये दो सभ्यताओ का अपने –अपने दर्शन का प्रदर्शन था | इसके बारे में दो काव्य पंक्तिया सटीक बैठती है -
      “ कीचड़ इसके पास था उसके पास गुलाल ,
        जिसके जो भी पास था उसने दिया उछाल “
   
  || ऐसे महापुरुष को उनकी जयंती पर कोटि कोटि नमन ||