Monday 20 August 2012


                 “ईसाईत ओर महिला”
क्रिश्चियन स्त्रियों में भी आत्मा होती है, यह 17वीं शताब्दी के आरंभ तक चर्च द्वारा मान्य नहीं था स्त्री का स्वतंत्र व्यक्त्तिव तो 20वीं सदी में ही मान्य हुआ। 1929 ई. में इग्लैंड की अदालत ने माना कि स्त्री भी परसनहै। स्त्रियों में आत्मा होती है, यह यूरोप के विभिन्न देशों में 20वीं शताब्दी में ही मान्य हुआ। 20वीं शताब्दी में ही स्त्रियों को वयस्क मताधिकार वहां पहली बार प्राप्त हुआ। 18वीं शताब्दी तक स्त्रियों को बाइबिल पढ़ने का अधिकार तक मान्य नहीं था। स्त्री को डायन कहकर लाखों की संख्या में 14वीं से 18वीं शताब्दी तक जिन्दा जलाया और यातना देकर मारा गया स्पेन, इटली, पुर्तगाल, हालैंड, इंग्लैंड, फांस, जर्मनी, स्विट्जरलैंड आदि देशों में ये कुकृत्य हुए| बाइबिल के अनुसार स्त्री का जन्म एडम की पसली से हुआ। मर्द के फल खाने से मना करने पर उसे स्त्री ने उकसाया इसलिए सेक्स का जन्म हुआ जो पाप है| फिर सब सेक्स या पाप से जन्मे है अत: पापी है| तथा अपने पाप समाप्त करने के लिए ईसा मसीह की शरण में आओ वर्ना जहन्नुम में जाओगे | योरोप के कई युद्धों में आदमी की कमी के चलते स्त्रियों ने भाग लिया तब जाकर उन्हें विश्वास हुआ स्त्री ओर आदमी बराबर है बाईबिल झूठी है| इसीलिए लड़किया चर्च को भेंट कर नन बना दी जाति थी | इन सब भयंकर मान्यताओं के विरोध में यूरोप में नारी मुक्ति आंदोलन चला जिसमें उन्होंने स्वयं को पुरुषों के समतुल्य माना, अपने भीतर वैसी ही आत्मा और बुध्दि मानी और ननबनने से ज्यादा महत्व पत्नी, प्रेमिका और मां बनने को दिया | जब स्त्री को बाइबिल तक नहीं पढ़ने दिया जाता था तो उसके विरोध में जाग्रत स्त्रियां प्रमुख बौध्दिक और विदुषी बन कर उभरीं तथा विद्या के हर क्षेत्र में अग्रणी बनीं। क्रिश्चियन स्त्री को पुरुषों को लुभाने वाली कहा जाता था, इसीलिए नारी मुक्ति का एक महत्वपूर्ण अंग हो गया- श्रंगारहीनता या सज्जाहीनता। काम कोमूल पापमाना जाता था इसलिए उसकी प्रतिक्रिया में काम संबंध को स्वतंत्र व्यक्तित्व का लक्षण माना गया। स्त्रियां स्वयं यह सुख न ले सकें इसके लिए एक विशेष अंगच्छेदन का प्रावधान किया गया था। अत: उसके विरोध में जाग्रत स्त्रियों ने समलिंगी सम्बन्धों की स्वतंत्रता की मांग की। इन सब संदर्भों से अनजान भारतीय लोग, यूरोपीय स्त्री मुक्ति आंदोलन के कतिपय ऊपरी रूपों की नकल करते हैं। यहां उसी क्रिश्चियनिटी का महिमामंडन किया जाता है जिसने यूरोप की स्त्रियों का उत्पीड़न  सैकड़ों सालों तक किया |

Wednesday 15 August 2012


गुरुकुल डोरली
१९२४ में रक्षा बंधन के दिन स्थापित, भारत के स्वतंत्रता समर में गुरुकुल डोरली (मेरठ) का बड़ा महत्वपूर्ण योगदान है इस संस्था ने २५ से भी अधिक स्वतंत्रता सेनानी दिए | एक समय ऐसा भी आया जब छात्र ,प्रबंधक ओर आचार्य सभी क्रन्तिकारी गतिविधियों में संलिप्त हों गए ,संस्था अंग्रेजो ने प्रतिबंधित कर दी | ये संस्था क्षेत्र के लिए ऐतिहासिक ओर सांस्कृतिक धरोहर है | महान क्रांति कारी चन्द्र शेखर आजाद के भी पवित्र चरण  एक रात्रि के लिए यहाँ पड़े |

Saturday 11 August 2012

"काकोरी कांड ९ अगस्त "


               “काकोरी कांड” ९ अगस्त
भारत के इतिहास में काकोरी कांड एक परिवर्तनकारी घटना के रूप में सदा याद किया जाता रहेगा | इसमे क्रांतिकारियों ने दुस्साहसिक ढंग से रेल लूट कर अपने आर्थिक खर्चो को पुरा  करने के लिए सरकारी खजाना लूटा था | इस घटना का एक अविस्मरणीय पक्ष भी है |
लखनऊ – हरदोई रेलवे लाइन के बीच एक छोटा सा अनाम सा स्टेशन है काकोरी, इसी स्टेशन पर क्रांतिकारियो ने ८ डाउन पैसेंजर ट्रेन को ९ अगस्त १९२५ को लूटा था | इस ट्रेन के गार्ड का नाम था जगन्नाथ प्रसाद था | लूट के समय गार्ड को जान से मारने ओर न मारने की बहस के बीच इस शर्त पर छोड़ दिया गया था कि बाद में पकडे जाने की स्थिति में पहचानेगा नहीं | घटना के कुछ समय बाद सभी क्रांतिकारी पकड़ लिए गए ओर सजाएं हुईं | शचीन्द्र बख्शी सबसे बाद में पकडे गए तो उनकी जेल में पहचान परेड कराई गयी | गार्ड ने शचीन्द्र बख्शी को पहचानने से मना कर दिया | जबकि बैटरी ओर गार्ड के डिब्बे की रोशनी में ही खजाने की तिजोरी को तोडते हुए गार्ड ने सबको तसल्ली से देखा था | बख्शी ने ही ईश्वर का वास्ता देकर गार्ड को जिन्दा छोडने की ज्यादा वकालत की थी |
   सन १९३८ यानि १३ वर्ष बाद ७ साल की सजा से छुट कर एक दिन शचीन्द्र बख्शी  रायबरेली स्टेशन पर समाचार पत्र पढ़ रहे थे कि पीछे से किसी ने उनकी पीठ पर हल्का सा हाथ मारते हुए पूछा कि “कहो शचीन्द्र कैसे हो नमस्ते“ शचीन्द्र ने पीछे मुड कर देखा तो काकोरी कांड वाली ट्रेन का गार्ड जगन्नाथ है | देखते ही बख्शी कि आँखे भर आई जेल की पहचान परेड में नहीं पहचानने वाले ने १३ वर्ष बाद पहचान लिया | भारत के स्वतंत्रता समर में काकोरी कांड का ओर काकोरी कांड में गार्ड जगन्नाथ का अपने किस्म का अनुपमेय योगदान सदा याद रहेगा |
 काकोरी कांड में (१) रामप्रसाद बिस्मिल, (२) ठा. रोशनसिंह, (३) अशफ़ाकुल्ला खां को फांसी,  (१) शचीन्द्र सान्याल, (२) शचीन्द्र बख्शी को आजन्म कारावास (काला पानी) तथा मन्मथ नाथ को १४ साल की सजा हुई थी |