“अमरनाथ
यात्रा”
हिन्दुओं के पवित्रतम स्थलों में से एक
कश्मीर स्थित बाबा अमरनाथ का धाम है | यहाँ सदियों से श्रावण पूर्णिमा को
प्राकृतिक हिमशिवलिंग के दर्शन मंगलकारी व कल्याणकारी माने गए है | अत: तभी से
ही बर्फानी बाबा के दर्शन हेतु हिन्दुओ की धार्मिक यात्रा का प्रचलन है | मुग़ल और
बिटिश काल में एक आध घटना को छोड़ कर अमरनाथ यात्रा सुचारू रही | लेकिन देश
स्वतन्त्र होने के बाद हिन्दुओ के इतने बड़े आयोजन पर इर्ष्या स्वरूप यात्रा पर
सैकुलर वादियों का काला साया पडने लगा | कई बार मुस्लिम आतंक वादी हमले हुए | और
सरकारी स्तर पर भी यात्रा को निरुत्साहित करने के लिए कोई कसर नहीं छड़ी गई |
२००९ तक ये यात्रा ६० दिन की होती रही है |
यानि ज्येष्ठ पूर्णिमा से श्रावण पूर्णिमा तक | परन्तु २०१० में यात्रा ५ दिन घटा
कर ५५ दिन की कर दी गयी और २०११ में ४५ दिन | केन्द्र सरकार की बेशर्मी की हद तो
तब हो गयी जब २०१२ में यात्रा की अवधि मात्र ३७ दिन कर दी गयी | यानि सरकार इस
वर्ष २ जून २०१२ (ज्येष्ठ पूर्णिमा) के स्थान पर २५ जून २०१२ से २ अगस्त (श्रावण
पूर्णिमा) यात्रा का आयोजन करवा रही है | संत समाज और हिंदू समाज में सरकार के इस
निर्णय से रोष है | इसके चलते विश्व हिंदू परिषद ने अपने बल पर यात्रा २ जून से
यानि ६० दिन की ही यात्रा कराने का संकल्प लिया है |
यात्रा की अवधि के निर्धारण को लेकर १९९६ में जम्मू –
कश्मीर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निवर्तमान जज श्री नितीश सैन गुप्ता की
अध्यक्षता में एक जाँच समिति बनायीं थी | जाँच समिति ने स्पष्ट कहा था कि “यात्रा
कि अवधि तय करने का अधिकार केवल धर्माचार्यो को है सरकार का काम तो उसे सुरक्षा
मुहैय्या कराना भर है |” केन्द्र सरकार ने भी तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल मुखर्जी से
जाँच करायी थी | उन्होंने भी जज सैन गुप्ता कि बात का समर्थन किया था | फिर भी
सरकार २००९ से निरंतर यात्रा अवधि घटाती जा रही है | ये सब कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति चलते कश्मीर घाटी को
हिंदूविहीन करने की गोपनीय साजिश का हिस्सा है |
ऐसे में विहिप श्राइन बोर्ड के पुनर्गठन की ,
वर्तमान अध्यक्ष एन एन वोहरा को हटाने की तथा बोर्ड में नास्तिक लोगों के स्थान पर
धार्मिक लोगों कि नियुक्ति की मांग करता है | वोहरा पर आरोप है की उन्होंने अपने
चहेतों को बर्फानी बाबा के समय पूर्व दर्शन भी करा दिए है |