Thursday 31 May 2012


                  “अमरनाथ यात्रा”
     हिन्दुओं के पवित्रतम स्थलों में से एक कश्मीर स्थित बाबा अमरनाथ का धाम है | यहाँ सदियों से श्रावण पूर्णिमा को प्राकृतिक हिमशिवलिंग के दर्शन मंगलकारी व कल्याणकारी माने गए है | अत:  तभी से ही बर्फानी बाबा के दर्शन हेतु हिन्दुओ की धार्मिक यात्रा का प्रचलन है | मुग़ल और बिटिश काल में एक आध घटना को छोड़ कर अमरनाथ यात्रा सुचारू रही | लेकिन देश स्वतन्त्र होने के बाद हिन्दुओ के इतने बड़े आयोजन पर इर्ष्या स्वरूप यात्रा पर सैकुलर वादियों का काला साया पडने लगा | कई बार मुस्लिम आतंक वादी हमले हुए | और सरकारी स्तर पर भी यात्रा को निरुत्साहित करने के लिए कोई कसर नहीं छड़ी गई |
     २००९ तक ये यात्रा ६० दिन की होती रही है | यानि ज्येष्ठ पूर्णिमा से श्रावण पूर्णिमा तक | परन्तु २०१० में यात्रा ५ दिन घटा कर ५५ दिन की कर दी गयी और २०११ में ४५ दिन | केन्द्र सरकार की बेशर्मी की हद तो तब हो गयी जब २०१२ में यात्रा की अवधि मात्र ३७ दिन कर दी गयी | यानि सरकार इस वर्ष २ जून २०१२ (ज्येष्ठ पूर्णिमा) के स्थान पर २५ जून २०१२ से २ अगस्त (श्रावण पूर्णिमा) यात्रा का आयोजन करवा रही है | संत समाज और हिंदू समाज में सरकार के इस निर्णय से रोष है | इसके चलते विश्व हिंदू परिषद ने अपने बल पर यात्रा २ जून से यानि ६० दिन की ही यात्रा कराने का संकल्प लिया है |                                       
       यात्रा  की अवधि के निर्धारण को लेकर १९९६ में जम्मू – कश्मीर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निवर्तमान जज श्री नितीश सैन गुप्ता की अध्यक्षता में एक जाँच समिति बनायीं थी | जाँच समिति ने स्पष्ट कहा था कि “यात्रा कि अवधि तय करने का अधिकार केवल धर्माचार्यो को है सरकार का काम तो उसे सुरक्षा मुहैय्या कराना भर है |” केन्द्र सरकार ने भी तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल मुखर्जी से जाँच करायी थी | उन्होंने भी जज सैन गुप्ता कि बात का समर्थन किया था | फिर भी सरकार २००९ से निरंतर यात्रा अवधि घटाती जा रही है | ये सब कांग्रेस की  मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति चलते कश्मीर घाटी को हिंदूविहीन करने की गोपनीय साजिश का हिस्सा है |
      ऐसे में विहिप श्राइन बोर्ड के पुनर्गठन की , वर्तमान अध्यक्ष एन एन वोहरा को हटाने की  तथा बोर्ड में नास्तिक लोगों के स्थान पर धार्मिक लोगों कि नियुक्ति की मांग करता है | वोहरा पर आरोप है की उन्होंने अपने चहेतों को बर्फानी बाबा के समय पूर्व दर्शन भी करा दिए है | 


    
    

Thursday 3 May 2012


       “कलियुग का भागीरथ –- दशरथ मांझी”
     अपने पुरखों , राजा सगर के ६० हजार भस्मीभूत पुत्रो की तृप्ति हेतु सतयुग में राजा भगीरथ पृथ्वी पर गंगा को लाए थे | लेकिन कलयुग में भी कोई भगीरथ ऐसा दुरूह कार्य कर सकता है ? इसकी मिसाल है दशरथ मांझी | जिसने ३० फुट ऊँचा पर्वत कट कर मार्ग बनाया |
     दशरथ मांझी का जन्म १९३४ में एक गरीबतम दलित परिवार में बिहार के गया जिले के गहलोर गांव में हुआ था | इस गांव में पीने का पानी उपलब्ध न होने के कारण गहलोर पर्वत पार कर पानी लाना पडता था | एक दिन पानी लाते समय दशरथ की पत्नी फगुनी गिर पड़ी और घायल हो गयी तथा घड़ा भी फूट गया | यहीं से दशरथ के मन में कुछ अद्भुत करने का भूत सवार हो गया | और १९६६ की एक सुबह छेनी हथोड़ा लेकर गहलोर पहाड पर चढ गया दशरथ | किसी ने पागल कहा ,किसी ने सनकी पर इन सब बातों से बेपरवाह ये मजबूत इरादों का धनी लगा रहा अपने ध्येय को प्राप्त करने को ये पागल | भाग्य की विडम्बना भी देखिये इस बीच धन के आभाव में बीमारी के चलते इनकी पत्नी की मोत हो जाती है , बेटा भगीरथ विकलांग होता है  , पुत्रवधू बसंती भी विकलांग आती है | सन १९८८ बाइस वर्ष बाद दुनिया ने पहाड को अदने से आदमी के आगे झुकता देखा | दशरथ ने अकेले अपने दम पर ३० फूट ऊँचा ,२५ फूट चोडा ,३६० फूट लंबा मार्ग गह्लोर पर्वत के आर पार बना दिया | यह कार्य सरकारी तरीके से ५ वर्षों में २५ लाख रुपये से ज्यादा में होता | ये मार्ग बनने से वजीरगंज और अतरी प्रखंडो के बीच  की दूरी ८० किलोमीटर से १३ किलोमीटर हो गयी है |
       सवाल ये है कि दशरथ को तो इस सब के बदले बहुत कुछ मिला होगा – इंदिरा आवास नहीं , वृधा पेंशन नहीं , विकलांग पेंशन नहीं , कोई शील्ड , तमगा , प्रशस्ति पत्र नहीं | स्वास्थ्य , शिक्षा , पेयजल , नरेगा कुछ नहीं | और तो और उस मार्ग को सरकार ने पक्का करने कि भी जरूरत नहीं समझी | तो फिर सरकार ने क्या दिया त्रासदी , एक जमीन का टुकड़ा जिस पर मरते दम तक मुक़दमा लडने के बाद भी कब्ज़ा नहीं मिला | इसके लिए दशरथ ने गया से दिल्ली तक रेल कि पटरी के सहारे पैदल यात्रा भी कि और जगजीवन राम व  प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी से मिले | हाँ नितीश ने उन्हें एक दिन मु०मंत्री कि कुर्सी पर बिठाया , और मरने पर राज्य शोक का सम्मान दिया | इस प्रकार कलियुग का भगीरथ गुमनामी के अँधेरे में खो गया | ये बेचारा कोई सचिन , अमिताभ जैसा स्टार या कसाब , अफजल जैसा आतंकवादी  थोड़े था जो साकार उसे न्यामते बख्शती |


“कौन कहता है कि आसमान में छेद नही हो सकता ,                    तबियत से एक पत्थर तो उछालो यारो ||”
“उड़ान पंखो से नहीं होंसलो से होती है “