“संस्कृत महान” (किरातारजुनीयम)
संस्कृत के काव्य सौन्दर्य की जितनी प्रशंसा की
जाय कम है | उसकी एक बानगी भर प्रस्तुत कर रहे हैं | जो केवल संस्कृत में संभव है
| सातवीं शती के संस्कृत के महाकवि भारवि रचित काव्यरचना किरातार्जुनीयम से ली गई
है | किरातार्जुनियम संस्कृत के 6 महाकाव्यों की व्रहत्त्रयी का एक प्रसिद्द महाकाव्य
है | (दरसल संस्कृत के 6 महाकाव्य हैं 3 व्रह्त्त्रयी (किरातार्जुनियम – भारवि,
शिशुपाल वध – माघ, और नैषधीयचरितम – श्री हर्ष, कहलाते हैं | इसी प्रकार 3
लघुत्रयी कालिदास रचित कुमारसंभव, रघुवंशम, मेघदूतम, कहलाते हैं | किरातार्जुनियम
का विषय महाभारत के वनपर्व के 5 अध्यायों से लिया गया है | पांडव द्युतक्रीडा में
हारकर वनवास को चले जाते हैं | महाभारत अवशम्भावी लगने लगता है | द्रोपदी तो बार
बार युद्ध को तैयार रहने को कहती है | एक बार महऋषि व्यास भी कहते है कि हे
पांडूपुत्रो तुम्हे युद्ध के लिए तैयार रहना चाहिए | सो अर्जुन इंद्र से अमोघ
दैवीय अस्त्र - शस्त्र लेने को जाते है | वहीं शिवजी से पासुपतास्त्र भी लाना है |
शिव किरात युवक बनकर अर्जुन परीक्षा लेते हैं | इनमे युद्ध होता है | यह लघु कथा
उपरोक्त महाकाव्य विषय है | जिसे कवि ने अपने काव्य सौन्दर्य से सजा कर एक व्रहद
महाकाव्य का रूप दे दिया | इसकी 37 टीकायें मिलती है | जिनमे मल्लिनाथ की टीका
प्रसिद्द है | अंग्रेजी में भी 6 अनुवाद पाए जाते हैं | विषय इस प्रकार है कि, शुरू
के दौर में अर्जुन वाण-वर्षा से सामने की शिव की गण सेना को तितर-बितर कर देता है
| 15वें सर्ग में, जिसमें युद्ध का यह चरण आता है, भारवि
ने चित्रकाव्य (अलंकारिक छंद) का प्रयोगकर महाकाव्य के दायरे के भीतर एक नई
परम्परा का सूत्रपात किया है | अर्थ-प्रवाह को अक्षुण्ण रखते हुए भाषा के स्तर पर
यह एक कठिन काम है | बानगी के तौर पर चित्रकाव्य का एक अपेक्षाकृत सरल उदाहरण
प्रस्तुत है :----
एकाक्षर छंद
:--
न नोननुन्नो नुन्नोनो नाना नानानना
ननु।
नुन्नोsनुन्नो ननुन्नेनो नानेना नुन्ननुन्ननुत्॥15:14॥
नुन्नोsनुन्नो ननुन्नेनो नानेना नुन्ननुन्ननुत्॥15:14॥
अन्वय एवं शब्दार्थ:--
हे नानानना (अनेक मुखोंवाले)
ऊननुन्न: (नीच पुरुषों से पराजित) ना न (मनुष्य नहीं है) | नुन्नोन: ना अना (नीच
पुरुषों को पराजित करनेवाला मनुष्य नहीं है) | ननुन्नेन: (जिसका स्वामी पराजित न
हुआ हो) नुन्न: (पराजित) अनुन्न: (अपराजित) नुन्ननुन्ननुत् =नुन्न+नुन्न+नुत् (
अति पीड़ित को भी पीड़ा पहुँचानेवाला) ना अनेना: न ( मनुष्य निर्दोष नहीं)|
भावार्थ :--- [(अर्जुन
से हारकर भागती हुई गण-सेना को संबोधित करते शिवपुत्र कार्तिकेय कहते हैं) हे अनेक मुखोंवाले गण लोग ! जो नीच पुरुषों से पराजित हो जाता है | वह
मनुष्य नहीं है, तथा जो नीच पुरुषों को पराजित करता है,
वह भी मनुष्य नहीं है | युद्ध में जिसका स्वामी अभी पराजित नहीं हुआ
है | वह शिकस्त पाने के बावजूद पराजित नहीं कहा जाता | अति पीड़ित को पीड़ा
पहुँचानेवाला मनुष्य निर्दोष नहीं (अपितु नीच) है | ]
किसी भी छंद में कई कई स्वर होते
हैं और अनेक व्यंजन होते है | तब जाकर छंद बनता है | परन्तु इस छंद में स्वर और
व्यंजन का प्रयोग तो किया गया है | पर स्वर में भी अ आ उ ए और ओ का ही प्रयोग किया
गया है | वो भी लघु, आ को छोड़कर दीर्घ का प्रयोग भी नहीं किया गया | तथा व्यंजन
में तो मात्र न का ही प्रयोग हुआ है | इसीलिये इसे एकाक्षर छंद कहा गया है | सिर्फ
एक व्यंजन से छंद बनाना अपने आप में टेढ़ी खीर है | जिसे भारवि ने किरातार्जुनियम
के उपरोक्त छंद में कर दिखाया है |