Saturday 28 April 2018


             “संस्कृत महान” (किरातारजुनीयम)
 संस्कृत के काव्य सौन्दर्य की जितनी प्रशंसा की जाय कम है | उसकी एक बानगी भर प्रस्तुत कर रहे हैं | जो केवल संस्कृत में संभव है | सातवीं शती के संस्कृत के महाकवि भारवि रचित काव्यरचना किरातार्जुनीयम से ली गई है | किरातार्जुनियम संस्कृत के 6 महाकाव्यों की व्रहत्त्रयी का एक प्रसिद्द महाकाव्य है | (दरसल संस्कृत के 6 महाकाव्य हैं 3 व्रह्त्त्रयी (किरातार्जुनियम – भारवि, शिशुपाल वध – माघ, और नैषधीयचरितम – श्री हर्ष, कहलाते हैं | इसी प्रकार 3 लघुत्रयी कालिदास रचित कुमारसंभव, रघुवंशम, मेघदूतम, कहलाते हैं | किरातार्जुनियम का विषय महाभारत के वनपर्व के 5 अध्यायों से लिया गया है | पांडव द्युतक्रीडा में हारकर वनवास को चले जाते हैं | महाभारत अवशम्भावी लगने लगता है | द्रोपदी तो बार बार युद्ध को तैयार रहने को कहती है | एक बार महऋषि व्यास भी कहते है कि हे पांडूपुत्रो तुम्हे युद्ध के लिए तैयार रहना चाहिए | सो अर्जुन इंद्र से अमोघ दैवीय अस्त्र - शस्त्र लेने को जाते है | वहीं शिवजी से पासुपतास्त्र भी लाना है | शिव किरात युवक बनकर अर्जुन परीक्षा लेते हैं | इनमे युद्ध होता है | यह लघु कथा उपरोक्त महाकाव्य विषय है | जिसे कवि ने अपने काव्य सौन्दर्य से सजा कर एक व्रहद महाकाव्य का रूप दे दिया | इसकी 37 टीकायें मिलती है | जिनमे मल्लिनाथ की टीका प्रसिद्द है | अंग्रेजी में भी 6 अनुवाद पाए जाते हैं | विषय इस प्रकार है कि, शुरू के दौर में अर्जुन वाण-वर्षा से सामने की शिव की गण सेना को तितर-बितर कर देता है | 15वें सर्ग में, जिसमें युद्ध का यह चरण आता है, भारवि ने चित्रकाव्य (अलंकारिक छंद) का प्रयोगकर महाकाव्य के दायरे के भीतर एक नई परम्परा का सूत्रपात किया है | अर्थ-प्रवाह को अक्षुण्ण रखते हुए भाषा के स्तर पर यह एक कठिन काम है | बानगी के तौर पर चित्रकाव्य का एक अपेक्षाकृत सरल उदाहरण प्रस्तुत है :----
एकाक्षर छंद :--
न नोननुन्नो नुन्नोनो नाना नानानना ननु।
नुन्नोsनुन्नो ननुन्नेनो नानेना नुन्ननुन्ननुत्‌॥15:14
अन्वय एवं शब्दार्थ:--
हे नानानना (अनेक मुखोंवाले) ऊननुन्न: (नीच पुरुषों से पराजित) ना न (मनुष्य नहीं है) | नुन्नोन: ना अना (नीच पुरुषों को पराजित करनेवाला मनुष्य नहीं है) | ननुन्नेन: (जिसका स्वामी पराजित न हुआ हो) नुन्न: (पराजित) अनुन्न: (अपराजित) नुन्ननुन्ननुत्‌ =नुन्न+नुन्न+नुत्‌ ( अति पीड़ित को भी पीड़ा पहुँचानेवाला) ना अनेना: न ( मनुष्य निर्दोष नहीं)|
भावार्थ :--- [(अर्जुन से हारकर भागती हुई गण-सेना को संबोधित करते शिवपुत्र कार्तिकेय कहते हैं) हे अनेक मुखोंवाले गण लोग ! जो नीच पुरुषों से पराजित हो जाता है | वह मनुष्य नहीं है, तथा जो नीच पुरुषों को पराजित करता है, वह भी मनुष्य नहीं है | युद्ध में जिसका स्वामी अभी पराजित नहीं हुआ है | वह शिकस्त पाने के बावजूद पराजित नहीं कहा जाता | अति पीड़ित को पीड़ा पहुँचानेवाला मनुष्य निर्दोष नहीं (अपितु नीच) है | ]
किसी भी छंद में कई कई स्वर होते हैं और अनेक व्यंजन होते है | तब जाकर छंद बनता है | परन्तु इस छंद में स्वर और व्यंजन का प्रयोग तो किया गया है | पर स्वर में भी अ आ उ ए और ओ का ही प्रयोग किया गया है | वो भी लघु, आ को छोड़कर दीर्घ का प्रयोग भी नहीं किया गया | तथा व्यंजन में तो मात्र न का ही प्रयोग हुआ है | इसीलिये इसे एकाक्षर छंद कहा गया है | सिर्फ एक व्यंजन से छंद बनाना अपने आप में टेढ़ी खीर है | जिसे भारवि ने किरातार्जुनियम के उपरोक्त छंद में कर दिखाया है |


Wednesday 18 April 2018


                                       
          मेरा भारत महान :--
मेरा भारत यूँ ही महान नहीं है इसमे लाखों सालों की त्याग बलिदान और ऋषि मुनि व संतों की तपस्या का परिणाम है | मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम को राज्याभिषेक होने वाला था | २ वचन लेकर बीच में कैकेयी आ जाती है | महाराजा दशरथ विवश हो जाते हैं | राम को पता चलता है स्वयम पिता दशरथ की विवशता देख राम निस्पृह भाव से वन गमन का वरन करते है | जबकि सब कोई बीच का रास्ता तलाश रहे थे | भरत वापस आते है | भारत को राजसिंहासन देने की बात होती है | लेकिन भरत ने भी एक पल के लिए भी राज्य स्वीकार नहीं किया | तभी तो राम हनुमान से कहते है == ‘तुम मम प्रिय भरत सम भाई’ | लक्षमण ने १४ साल वन में साथ गुजारे पर भरत सम भाई | कैसा निस्प्रह भाव था | राम ने युद्ध जीतकर लंका लक्षमण को भेजा की अपनी भाभी सीता को ले आओ और विभीषण का राज्याभिषेक कर आओ तथा रावण से कुछ ज्ञान की बातें भी पूछ लेना | लक्ष्मण कहता है की ‘भैया देखो वो सोने की लंका’ राम उत्तर देते हैं कि == ‘अपि स्वर्ण मई लंका न मे रोचते लक्ष्मण, जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ ‘लक्षमण यद्यपि ये सोने की लंका है पर मुझे नहीं रोचती मेरे लिए तो जननी और जन्म भूमि ही स्वर्ग से भी बढकर है’ | राम ने लंका की ओर कोई बुरी दृष्टि नहीं डाली | जबकि राम का पूरा अधिकार था उस पर शासन करने का | बाली वध पर कुछ मुर्ख राम पर बाली का धोखे से वध का आरोप लगते है | उन्हें ये नहीं पता की युद्ध में सब उचित ही होता है | फिर बाली को वरदान प्राप्त था, कि युद्ध करते समय सामने वाले का आधा बल बाली में आ जायेगा | फिर तो बाली मरना ही असंभव था | लेकिन बाली पापी था अन्यायी था तो उसका मरना आवशक था | बाली को मारकर राम ने सुग्रीव को स्वतंत्र शासक बनाया | साथ ही बाली की पत्नी तारा पटरानी बनाई और बलि पुत्र अंगद को सेनापति बनाया | उस राज्य को छुआ भी नहीं | सारा राजपाट सुग्रीव को दे दिया | द्वापर में कृष्ण ने कंस को मारकर मथुरा का शासन बार बार मना करने पर भी स्वयं न लेकर कंस के वृद्ध पिता महाराजा उग्रसेन को ही दे दिया था | मगध के शक्तिशाली नरेश जरासंध को मारकर उसके पुत्र सहदेव को मगध का शासक बनाया | एक दिन इसी जरासंध के कारण कृष्ण को मथुरा छोड़ना पड़ा था और रणछोड़जी कहलाये | फिर कृष्ण और भीम और अर्जुन जरासंध को उसके के घर मगध पर ही जाकर उसको द्वंद युद्ध में मारकर आये थे |
शिशुपाल ने भरी सभा में सभी का अपमान किया था | भीष्म, कुंती से लेकर युधिष्ठिर तक किसी को नहि छोड़ा था | बलराम को भी क्रोध आ गया था | पर कृष्ण ने कुछ नहीं कहा था | क्योंकि कृष्ण ने शिशुपाल की माँ जो कृष्ण की बुआ और कुंती की बहन श्रुतिश्रवा थी, को शिशुपाल के सौ अपराध क्षमा करने का वचन दे रखा था | १०१ वी गाली पर कृष्ण का सुदर्शन चल गया और शिशुपाल का सर धड से अलग हो गया | यहाँ भी उसका राज्य किसी ने छुआ नहीं | उसी सभा में जो महाराजा युधिष्ठिर के राज्याभिषेक के लिए आहूत थी | उस में उपस्थित शिशुपाल के पुत्र महिपाल का राज्याभिषेक कर दिया गया | ऐसी महान गरिमामई परम्परा थी अपनी |