“डोडो”
ये एक पक्षी वर्ग का
थलचर जीव है यानि न उड पाने वाला पक्षी, जो कभी हिंद महासागर के छोटे से मॉरिशस द्वीप में पाया जाता
था | ये प्राणी सुस्त शारीर और स्वादिष्ट मांस के कारण १७ वीं शताब्दी के समाप्त
होते होते स्वयं भी समाप्त हो गया | यह कबूतर वर्ग का एक
मीटर ऊँचा और लगभग २० किलो वजन का प्राणी था | द्वीप पर इसका कोई शत्रु भी नहीं था
अत आलसी हो गया और रक्षा क्षमता भी खो बैठा | पैर दुर्बल और पंख कमजोर होते गए अत:
उड़ने और भागने कि क्षमता भी जाती रही | ये इतना काहिल था कि मारने पर भी बचाव नहीं
करता था | डोडो के समाप्ति में मानव के साथ पहुचे उसके पालतू जानवर कुत्ते,
बिल्ली, चूहे, सूअर भी इसके विनाश का कारण बने | अब इसे सिर्फ मारीशस के राष्ट्रिय
चिन्ह में ही देखा जा सकता है | अंतिम बार १६३८ में ब्रिटेन में देख गया था | १५
वीं शताब्दी में पुर्तगाली मारीशस द्वीप पर पहुंचे तो उन्हें ये आसान शिकार मिल गया | तथा १५०
वर्षों में
मारीशस को डोडो विहीन कर दिया | एक सुन्दर प्राणी मानव कि जिह्वा कि भेंट चढ गया |
मारीशस में ही एक
विशाल इमारती वृक्ष हुआ करता था | धीरे – धीरे ये पेड़ भी समाप्त होने लगा | जब ये पेड़
समाप्ति के कगार पर पहुंचा तो वैज्ञानिकों को इसकी चिंता हुई | एक अध्ययन से ज्ञात
हुआ कि पेड़ ने उगना बंद कर दिया है | और कटान तो बदस्तूर जारी था | ऐसे आखिर कब तक
चलता एक दिन तो पेड़ को समाप्त होना ही था | अब वैज्ञानिकों को चिंता शुरू हुई | और
शोध भी कि आखिर नए वृक्ष उग क्यों नहीं पा रहे है | काफी शोध अध्ययन के बाद पता
चला कि इस वृक्ष के बीज आडू कि गुठली जैसे कठोर आवरण में होते है | और सीधे धरती
में डालने पर भी वर्षों वर्ष तक नहीं गलते | इस वृक्ष के बीज को डोडो बड़े चाव से
खाता था या ये कहे कि ये उसका मुख्य आहार था | डोडो के पेट में जाकर एक रसायन के
संपर्क में आकार गुठली का आवरण नरम पड जाता था और डोडो कि शौच में होता हुआ धरती
के संपर्क में आकार कुछ दिन बाद उग आता था | ये उस वृक्ष का जीवन चक्र था | डोडो समाप्त
हुआ तो ये वृक्ष भी समाप्त हो गया | बाद में वैज्ञानिकों ने आधुनिक तकनीकी के
माध्यम से वही प्रक्रिया अपनाई और इस वृक्ष को उगाना शुरू हुआ | ये प्रकृति संतुलन और
पर्यावरण सामंजस्य का कितना सुन्दर उदहारण था |