Wednesday 6 June 2012


“आरक्षण का असली हक़दार कौन”
22 दिसंबर २०११  को उत्तर प्रदेश के चुनाव की घोषणा होते ही कांग्रेस ने मुस्लिम आरक्षण का तुरुप का पत्ता चल दिया | भाजपा को छोड़कर कोई नहीं बोला | सत्ता कि राजनीति की  छलिया कांग्रेस ने ओ बी सी के अलम्बरदार अजीत सिंह से गठबंधन करते ही ओ बी सी पर मजहबी आरक्षण की कुल्हाड़ी चला दी | २७ प्रतिशत ओ बी सी के आरक्षण  में ही ४.५ प्रतिशत आरक्षण मुस्लिमो को मजहब के नाम पर दिया गया है | भला हो सर्वोच्च न्यायलय का कि उसने ५० प्रतिशत आरक्षण  पर डैड लाइन खींच दी | वरना  ये इसी ओपन मेरिट में से कटना तय था , तब पता नहीं सवर्णों का क्या होता ?
   किसी भी स्वतंत्र ,सक्षम और समृद्ध राष्ट्र में आरक्षण नासूर कि तरह है , प्रगति में बाधक है | संविधान निर्माण के समय अनुसूचित जाति को ये मानकर आरक्षण दिया गया था , कि उनका लंबे समय तक शोषण हुआ है | वैसे तो इस प्रकार के जातिगत आरक्षण का शुरू से ही विरोध  भी रहा है | और आर्थिक आरक्षण कि बात उठती रही है जो जायज भी लगती है | इसीलिए १९८९ में ओ बी सी के आरक्षण के समय देश जल उठा था | एक ज्वलंत प्रश्न है कि क्या जिस अनारक्षित वर्ग का हक छीन कर , या ये माने की चार रोटी में से दो रोटी छीन कर आरक्षित वर्ग को दी जा रही है क्या वास्तव में उस वर्ग ने इस आरक्षित वर्ग का शोषण ,दोहन किया है ? जब आरक्षण शुरू हुआ तब दोनों वर्गों (आरक्षित और अनारक्षित ) ने स्वतन्त्र भारत में आँख खोली | फिर किसने किसका कब शोषण कर लिया ? और यदि किया तो संविधान प्रहरी के रूप में खड़ा है | उसने शोषक को दण्डित किया | तमाम तरह के कानून आरक्षित वर्ग को सुरक्षा देने हेतू अलग से भी है | फिर शोषण करने का प्रश्न बेमानी है | और यदि फिर भी ये कहा जाता है कि शोषण हुआ तो संविधान दोषी है या स्वतन्त्रोतर शासक |
       इस प्रश्न पर कहा जाता है कि स्वतंत्रता पूर्व शोषण हुआ | तो १९४७ से पूर्व सवर्णों (अनारक्षित वर्ग ) का नहीं वरन अंग्रेजो का राज था , और उन्होंने सारे भारतीय समाज के साथ शोषण , लूट और अत्याचार किये | जो सम्रद्ध व संपन्न था उस पर ज्यादा अत्याचार हुए | और अंग्रेजो से पहले मुस्लिमो का राज था | वे तो लंबे समय तक शासक रहे है | उन्हें आरक्षण किस बात का ? यदि वे बदहाल है तो उसके लिए सवर्ण नहीं वे स्वयं जिम्मेदार है | मुसलमानों ने तो पहले जमकर लूटा और फिर जो बचा उसे बाँट कर पाकिस्तान व बंगलादेश के रूप में बहुत बड़ी कीमत वसूल भी कर ली | उन्होंने जो छीना सवर्णों से ही तो छीना | अनुसुचित जातियां तो कथित रूप से शोषित व बदहाल थी | जरा विचार करे कि हाथी ,घोडो ,ऊँटो , जहाजों पर लूट कर ले जाया गया मॉल असबाब आखिर किस का था ? दो-दो दीनार में किस की बहन बेटी गजनी की गलियों में नीलाम हुई ? नालंदा विश्वविध्यालय में ६ मास तक किसकी बोद्धिक सम्पदा जलती रही ? पानीपत और तराईन के मैदानों में किसकी लाशे गिरी ? अंतिम संस्कार भी नसीब नहीं हुआ और लाशो को चील कोए खाते रहे | जो गया, लुटा बर्बाद हुआ सबसे ज्यादा सवर्णों का था |  लूटेरे कौन थे ? मुसलमान और अंग्रेज | ब्राह्मणों का ज्ञान छिना ,वैश्य का धन छिना , क्षत्रियों का मान और धन तो छिना ही साथ ही जनहानि भी सबसे ज्यादा हुई | तो फिर असली आरक्षण के हक़दार तो सवर्ण हुए ना |
      जब आज मुस्लिमो को आरक्षण दिया जा रहा है तो ये कह कर दिया जा रहा है कि ये उन मुसलमानों से सम्बंधित नहीं है जिन्होंने एक संपन्न भारत (हिंदू-राष्ट्र) को जमकर लूटा | आरक्षण के हामी ये तर्क दे रहे है की लूट करने वाला मुसलमानों में एक विशिष्ट शासक वर्ग था जिसकी लूट से आम मुसलमान का कोई लेना देना नहीं था | तब इस तर्क कि तराजू पर  इतिहास कि अन्य घटनाओ (अनुसूचित जाति,जनजाति के आरक्षण ) को क्यों नहीं तोला जा रहा ? 
    जब आरक्षण के हिमायती सवर्णों द्वारा अनुसूचित जाति के शोषण, लूट और अत्याचार की बात करते है तो ध्यान देने योग्य बात ये है की ये सब करने वाला  भी आम सवर्ण नहीं बल्कि सवर्णों में भी एक विशिष्ट शासक वर्ग था | जिसने मुस्लिम शासन काल में बादशाहों के सामने सजदा कर के अपनी ताकते और रुतबा बनाये रखा , और ब्रिटिश शासन काल में वायसराय के सामने अपने भत्ते बचाए रखने हेतू दुम हिलाई | आज़ादी के बाद सवर्णों के इसी विशिष्ट वर्ग ने अलग अलग पार्टियो में पैठ बना कर सत्ता में बने रहने का तरीका खोज लिया | और अब ये ही वर्ग भारत सत्ता पर मुस्तैदी से काबिज है | इस वर्ग की कारगुजारियो का खामियाजा समस्त स्वर्ण समाज आरक्षण की चक्की में पिसकर क्यों झेले ? इस तरह आरक्षण पर  दो समाजो के लिए अलग -अलग तर्क क्यो ??      
      इस आरक्षण नामक कोढ़ से देश को बहुत बडी हानि भी हो रही है पर सत्ता पर बैठे हुक्मरान जानपूछ कर आखें बंद किये है | क्योकि आरक्षण के चलते देश की बोद्धिक सम्पदा का विदेश को पलायन हो रहा है | और उसका लाभ विदेशो को हो रहा है और देश को नुकसान | पर सत्ताधीशो की बला से | देखने वाली बात ये भी है की ये आरक्षण के हिमायती लालू ,मुलायम ,मायावती ,अजीतसिंह सरीखे जब तक अपने वकील, डाक्टर और  सलाहकार  सवर्ण समाज से चुनते रहेगे तब तक आरक्षित वर्ग के भले की बात बेमानी है | बाबासाहेब अबेडकर भी इस तरह के आरक्षण के विरोधी थे | उनका तो स्पष्ट कहना था “आरक्षण के सहारे कौम चल तो सकती है भाग नहीं सकती | कौम प्रतिस्पर्धा से ही आगे बढ़ सकती है |” फिर मजहब के आधार पर आरक्षण कांग्रेस के सैकुलर चहरे को बेनकाब भी करता है |  
“जो मुस्लिम समाज सदा शोषक रहा उसे भी मजहब के नाम पर आरक्षण ? ” आखिर क्यों ?
वैसे भी १० प्रतिशत से कम जनसँख्या वाली आबादी ही किसी देश में अल्पसंख्यक हो सकती | मुस्लमान तो २० प्रतिशत को पार कर रहे है |