Sunday 24 May 2015

“अफजल खांन और शिवाजी”

                 
“अफजल खांन और शिवाजी”
शिवाजी और कुटिल अफजल खान का संघर्ष को सभी जानते है | पर अपने शिवाजी भी शत्रु की कुटिलता पहचानने में आगे थे | शिवाजी ने अफजल को बिना कोई मौका दिए अपना बचाव करते हुए उसे ही मौत के घाट उतार दिया था | पर कांग्रेसी सरकार ने शिवाजी को महत्त्व न देते हुए अफजल को पीर बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी | तथा शुरू में एक कब्र बनवादी और उसको भव्य रूप देने का भी पूरा प्रयत्न किया | पर अफजल की कब्र का एक और पहलू है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा है । स्थानीय सूत्रों के अनुसार मुम्बई के नामचीन गुंडों तथा तस्करों का यहां से सम्पर्क है । पाकिस्तान से भी यहां के सूत्र जुड़े हुए हैं । ट्रस्ट का एक ट्रष्टी गुलाम जैनुल आबेदीन पाकिस्तानी था | 1993 में मुम्बई में हुए भयंकर बम विस्फोट का परीक्षण इसी इलाके में किया गया था । यह घटना कभी महाराष्ट्र के जिले प्रताप गढ़ की थी पर आज प्रताप गढ़ और महाबलेश्वर सतारा जिले का हिस्सा है | १८८५ के गजट के अनुसार तब तक यहाँ कुछ नहीं था | १९२० में अफजल की कब्र (दरगाह) का हल्का सा उल्लेख एक पुस्तक में मिलता है |
   यह पृष्ठभूमि जानने के बावजूद राज्य की कांग्रेस सरकार ने ‘अफजल मेमोरियल सोसायटी’ को वह पूरी जमीन, जिस पर सोसायटी ने अवैध रूप से कब्जा कर रखा था,  दे दी | पर चूंकि यह जमीन केन्द्रीय वन तथा पर्यावरण मंत्रालय की है, इसलिए यह प्रस्ताव केन्द्र सरकार के पास भेजा गया । राजग सरकार के पहले कार्यकाल में मार्च, 2003 में लोकसभा में भाजपा सांसद किरीट सोमैया ने  इस तथ्य पर सवाल पूछा | तत्कालीन पर्यावरण राज्यमंत्री दिलीपसिंह जूदेव ने बताया कि राज्य सरकार के प्रस्ताव को केन्द्र सरकार खारिज नहीं कर सकती । इसके बाद महाराष्ट्र विधानमंडल में डा. अशोकराव मोडक, जो स्वयं इतिहासविद् हैं, ने यह प्रश्न खड़ा किया । सतारा के जिलाधिकारी ने रपट दी कि यह सोसायटी अवैध है  । राज्य सरकार के इस अड़ियल तथा लचर रवैये के विरोध में तब राज्य की सभी हिन्दुत्वनिष्ठ ताकतें एकजुट हुई थी
अंग्रेजों के शासनकाल में ये जो कुछ चल रहा था वह भारत के स्वतंत्र होते ही रुकना चाहिए था। पर ऐसा हुआ नहीं। पहले छोटी-सी जगह पर बना यह स्मारक धीरे-धीरे भव्य रूप ग्रहण करता गया। इस स्मारक का विरोध भी होता रहा। 1959 में मुम्बई के धर्मार्थ मामलों के आयुक्त (चैरिटी कमिश्नर) ने ‘अफजल मेमोरियल तुर्बत ट्रस्ट’ को खारिज कर दिया । पर आयुक्त के इस आदेश का पालन नहीं हुआ। 1962 में "अफजल मेमोरियल सोसायटी" की स्थापना हुई। इस सोसायटी को राज्य की कांग्रेस सरकार ने 13,000 वर्ग फुट जमीन दे दी । उस पर सोसायटी ने 119 कमरे बनवाये, अफजल तथा सैयद बंडा की भव्य कब्रों बनायी गईं । वहां बिजली-पानी की व्यवस्था की गयी। धीरे-धीरे इस सोसायटी ने आसपास की 10,000 वर्ग फुट जमीन भी हड़प कर २३००० वर्ग गज कर ली । एक जमाने में मुम्बई के माफिया सरगनाओं हाजी मस्तान, करीम लाला तथा युसूफ पटेल ने इस सोसायटी की बहुत मदद की थी । बताया जाता है कि इस स्थान पर ज्यादा से ज्यादा मुसलमान आएं, इसलिए आने वाले को बिरयानी परोसी जाती थी तथा बख्शीश के रूप में 50 रुपए दिए जाते थे । महाबलेश्वर में जो पयर्टक जाते थे, उन्हें वहां का इतिहास बताने वाले मुसलमान गाइड बताते थे कि अफजल खान एक महान सूफी संत था, वह सज्जन तथा शांतिप्रेमी था । बाद में अफजल की कब्रा  पर हर साल उर्स मनाया जाने लगा । जिस दिन अफजल का वध हुआ, उस दिन हर साल मार्गशीर्ष शुद्ध सप्तमी को इस कब्रा का मुजावर (पुजारी) "दगा, दगा शिवाजी ने दगा किया" इस तरह जोर-जोर से चिल्लाता और छाती पीटते हुए प्रतापगढ़ से भागता आता था और ऐसा दृश्य उपस्थित करता था जैसे शिवाजी नाम के एक "अपराधी" ने ‘अफजल खान’ नाम के एक "सूफी संत" की हत्या की थी । अभी तक यहाँ ४० पुलिसकर्मी रहते है सरकार अब तक इन पर १.५ करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है | क्या कांग्रेस राष्ट्र को बताने का कष्ट करेगी की उसने क्षत्रपति शिवाजी के लिए क्या किया ||
(अफजल की पुरानी जर्जर कब्र और वर्तमान में कांग्रेस की मेहरबानी से बनी दरगाह) 


“कुरुक्षेत्र और ओरंगजेब ---- (ब्रह्म सरोवर, सन्नहित सरोवर, ज्योतिसर)”

       “कुरुक्षेत्र --- (ब्रह्म सरोवर, सन्नहित सरोवर, ज्योतिसर)”
कुरुक्षेत्र महाभारत का पवित्र एवं प्रमुख स्थान है | महाभारत युद्ध में गीता का ज्ञान यहीं भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को दिया था | गीता का प्रथम श्लोक ‘धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे ------‘ से ही प्रारंभ होता है | महाकवि रामधारी सिंह दिनकर का महाकाव्य कुरुक्षेत्र को हिंदी के १०० टॉप काव्यों में ७४ वां  स्थान प्राप्त है | यह तीर्थ ब्रहम सरोवर, सन्निहित सरोवर और ज्योतिसर को मिलकर बना है |
विषय की बात करें तो ओरंगजेब ने अपने शासनकाल में अन्य हिन्दू तीर्थों की तरह कुरुक्षेत्र में कर लगा दिया था जो ४ आना एक लोटा जल और एक रूपया स्नान पर था, और ये कर स्वतंत्र भारत में कांग्रेसराज पर भी चलता रहा | १९६८ में गुलजारीलाल नंदा चुनाव लड़ने के लिए कुरुक्षेत्र पधारे | वहां उन्हें तीर्थ की दुरावस्था के बारे में पता चला | नंदा जी ने कुरुक्षेत्र के जीर्णोद्धार का बीड़ा उठाया | उन्होंने ‘कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड’ की स्थापना की नंदा जी स्वयम उसके चेयरमैंन बने | तीनो सरोवरों (ब्रह्म सरोवर, सन्निहित सरोवर और ज्योतिसर) का कायाकल्प हुआ | ओरंगजेब ने इस तीर्थस्थान का नाम भी परिवर्तित कर मुगलपुरा कर दिया था, जो नंदा जी के प्रयासों से पुराना नाम बदलकर पुरुषोत्तम पूरा कर दिया गया | साथ ही सभी कर भी हटा दिए गए | स्मरण रहे की गुलजारीलाल नंदा तीन बार भारत के प्रधान मंत्री रहे |
कुरुक्षेत्र पर लिखी गई दिनकर की काव्यपंक्ति हिंदी साहित्य की अनमोल कृति है जो अक्सर काव्य प्रेमी गुनगुनाते है ----- क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो,
                   उसको क्या जो दंतहीन, विषहीन, विनीत सरल हो ||
छठी शताब्दी के भारत के प्रसिद्ध न्यायप्रिय राजा हर्ष की राजधानी थानेश्वर ( स्थानेश्वर) भी समीप है | सन्निहित सरोवर में पिंडदान का बड़ा महत्त्व है | कहते है की पौराणिक नदी सरस्वती भी यहीं  से प्रवाहित होती थी | ये बड़ा ही पुनीत स्थल है इसकी ८४ कोस की पौराणिक सीमा है | यहाँ की धूल भी प्राणी को पाप मुक्त करने की क्षमता रखती है | इसे बसाया भी महाराजा कुरु ने ही था इसी लिए इसका नाम कुरुक्षेत्र पड़ा | पुन्य स्थल होने के कारण ही यहाँ महाभारत लड़ा गया | यहाँ मरने वाला सीधा स्वर्ग जाता है | धन्य हैं गुलजारीलाल नंदा जिन्होंने इसका जीर्णोद्धार किया | सोमनाथ कुरुक्षेत्र का तो जीर्णोद्धार हो गया अयोध्या काशी मथुरा की बारी है |         
                                                                                                                                               






                                      "जाट आरक्षण और भाजपा"
चुनावी लाभ लेने के लिए २०१४ के लोकसभा चुनाव से एकदम पहले कांग्रेस ने जाट आरक्षण का कार्ड चला था | जिसे माननीय सर्वोच्च न्यायलय ने ये कहते हुए कि जाति के आलावा शैक्षिक और आर्थिक आधार का भी ध्यान रखना चाहिए था मार्च १५ में अमान्य कर दिया | पहले से ही भाजपा से नाराज चल रहे जाटो को एक और भाजपा के विरुद्ध मुद्दा मिल गया | भाजपा ने आश्वासन दिया है साथ ही भाजपा के सांसदों मंत्रियों को जाटों को मनाने के लिए लगाया गया है | पर यहाँ ये विचार स्मरणीय है की भाजपा सुप्रीम कोर्ट के विरुद्ध कैसे जाएगी | भारत की राजनीति में एक शाहबानो प्रकरण हुआ था | जिसमे कांग्रेस ने संसद में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को पलट दिया | तब भाजपा ने इसे न्यायालय का अपमान कह कर कांग्रेस की  खिचाई की थी | और भाजपा आज भी उस मुद्दे को भूली नहीं है | अब भाजपा सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के विरुद्ध किस मुंह  से जाएगी |
          क्या था शाहबानो प्रकरण --- एक ६२ वर्षीय मुस्लिम महिला शाहबानो को उसके पति ने १९७८ में तलाक दे दिया था | शरियत में तलाक आम बात है | पर शाहबानो भरण पोषण के लिए अदालत चली गई, और ये मुक़दमा ७ साल तक चलकर नीचली अदालत से सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच गया | १२५ की दंड प्रक्रिया संहिता में "हर किसी को गुजरा भत्ता पाने का अधिकार है" ऐसा कह सुप्रीम कोर्ट ने शाहबानो के पति को गुजरा भत्ता देने का आदेश दिया | कट्टर पंथी मुसलमानों ने इस निर्णय को शरियत के खिलाफ माना और विरोध किया | १९८६ में दो तिहाई बहुमत वाली राजीव गाँधी की सरकार थी आखिर उसे भी झुकना पड़ा और सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को उलटते हुए "मुस्लिम महिला तलाक संरक्षण कानून १९८६" पास कर दिया | अब तलाक शुदा मुस्लिम महिला को गुजरा भत्ता नहीं  मिलेगा | तब से लेकर आज तक भाजपा इसे सुप्रीम कोर्ट का अपमान और कट्टर पंथियों के सामने कांग्रेस का झुकाना बताती है | अब ये ही काम भाजपा सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ जा कर कैसे कर सकती है | वैसे भी जाट २ से २`५ प्रतिशत है और १२ से १५ प्रतिशत संसाधनों का लाभ ले रहे है | दूसरी बात ये भी है की ओबीसी के  २७ % में ३ जातियां जाट, गुर्जर और यादव ही हावी है | शेष ओबीसी जातियां घाटे में है ऐसा इन जातियों का आरोप है |
यहाँ एक बात और स्मरणीय है की राजनाथ सिंह ने अपने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्रित्व काल में ओबीसी के अंतिम पायदान की जातियों को लाभ देने के लिए ओबीसी के ३ टुकडे किये थे और आरक्षण को २७ से २८ % किया था  जिसमे ओबीसी की ८० जातियों का बंटवारा इस प्रकार किया था - (१) - पिछड़ा २ जातियां (५%), () - अति पिछड़ा ८ जातियां (९%) तथा (३) - अत्यंत पिछड़ा ७० जातियां १४% | राजनाथ सिंह ने अनुसूचित जातियों के अंतिम पायदान की जातियों को भी लाभ देने के लिए अ.जा. आरक्षण का भी विभाजन  किया था | जो इस प्रकार था अ.जा. की कुल जातियां ६८ | (१) - दलित ३ जातियां (१० %), () - अति दलित ६५ जातियां (११%) | ये एक सुन्दर व्यवस्था थी लेकिन चल नहीं पाई क्योंकि बाद की सरकार ने इस व्यवस्था को समाप्त कर दिया और राजनाथ सिंह का दोनों वर्गों के आरक्षण में अंतिम पायदान की जातियों को मिलने वाला लाभ नहीं मिल पाया साथ ही राजनाथ सिंह को भी राजनैतिक लाभ नहीं मिला |(जातियों के आंकड़े सन २००० के है ) |
पुन: जाट आरक्षण पर आते है | जाट सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को भाजपा की लचर पैरवी मान रहे है | परन्तु सच्चाई ये है की ये आरक्षण सु. को. के दरवाजे से बहार आना ही नहीं था ये तभी से प्रबुद्ध लोग और प्रबुद्ध जाट भी कह कर चल रहे थे | हर बुद्धिजीवी व स्वयं सुप्रीम कोर्ट भी कह रहा है की आरक्षण जातिगत नहीं आर्थिक आधार पर होना चाहिए पर राजनैतिक दलों के लिए वोटो का लालच ऐसा नहीं होने देता | जाटों का भाजपा से नाराजगी के अन्य कारन भी है, एक लोकदल का सत्ता शून्य होना और दूसरा जाट भवन खाली कराना | इस नाराजगी को लेकर जाट मोदी को माफ़ करने के मूड में नहीं दिखते | अत: जाट कोई भी मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहते | वैसे भी जाट आरक्षण  का लाभ किसी को नहीं मिला | भाजपा को इस समस्या का स्थाई, सर्वमान्य और सम्मानजनक हल खोजना होगा | साथ ही जाटों को सीमा से बाहर जाकर मनाना अन्य जातियों की नाराजगी का कारण न बन जाये भाजपा को इस बात को भी ध्यान में रख कर चलना होगा | मोर्य, शाक्य, कुशवाह आदि जातियां ने तो जाट आरक्षण का विरोध शुरू भी कर दिया है | ये गंभीर समस्या भाजपा के गले की हड्डी न बन जाये |||