शिवाजी
और कुटिल अफजल खान का संघर्ष को सभी जानते है | पर अपने शिवाजी भी शत्रु की
कुटिलता पहचानने में आगे थे | शिवाजी ने अफजल को बिना कोई मौका दिए अपना बचाव करते
हुए उसे ही मौत के घाट उतार दिया था | पर कांग्रेसी सरकार ने शिवाजी को महत्त्व न
देते हुए अफजल को पीर बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी | तथा शुरू में एक कब्र बनवादी
और उसको भव्य रूप देने का भी पूरा प्रयत्न किया | पर अफजल की कब्र का एक और पहलू
है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा
से जुड़ा है । स्थानीय सूत्रों के अनुसार मुम्बई के नामचीन
गुंडों तथा तस्करों का यहां से सम्पर्क है । पाकिस्तान से भी यहां के सूत्र
जुड़े हुए हैं । ट्रस्ट का एक ट्रष्टी गुलाम जैनुल आबेदीन पाकिस्तानी था | 1993
में मुम्बई में हुए भयंकर बम विस्फोट का
परीक्षण इसी इलाके में किया गया था । यह घटना कभी महाराष्ट्र के जिले प्रताप गढ़ की
थी पर आज प्रताप गढ़ और महाबलेश्वर सतारा जिले का हिस्सा है | १८८५ के गजट के
अनुसार तब तक यहाँ कुछ नहीं था | १९२० में अफजल की कब्र (दरगाह) का हल्का सा
उल्लेख एक पुस्तक में मिलता है |
यह पृष्ठभूमि जानने के बावजूद राज्य की
कांग्रेस सरकार ने ‘अफजल मेमोरियल सोसायटी’ को वह पूरी जमीन, जिस पर सोसायटी ने अवैध रूप से कब्जा कर
रखा था, दे दी | पर चूंकि यह जमीन केन्द्रीय वन
तथा पर्यावरण मंत्रालय
की है, इसलिए यह प्रस्ताव
केन्द्र सरकार के पास भेजा गया । राजग सरकार के पहले कार्यकाल
में मार्च, 2003 में
लोकसभा में भाजपा सांसद किरीट सोमैया ने इस
तथ्य पर सवाल पूछा | तत्कालीन पर्यावरण राज्यमंत्री दिलीपसिंह जूदेव ने
बताया कि राज्य सरकार के प्रस्ताव को केन्द्र सरकार खारिज नहीं कर सकती । इसके बाद महाराष्ट्र विधानमंडल में
डा. अशोकराव
मोडक, जो स्वयं इतिहासविद्
हैं, ने यह प्रश्न खड़ा
किया । सतारा के जिलाधिकारी ने रपट दी कि यह सोसायटी
अवैध है ।
राज्य सरकार के इस अड़ियल तथा लचर रवैये के विरोध में तब राज्य की सभी
हिन्दुत्वनिष्ठ ताकतें एकजुट हुई थी ।
अंग्रेजों
के शासनकाल में ये जो कुछ चल रहा था वह भारत के स्वतंत्र होते ही रुकना चाहिए था। पर
ऐसा हुआ नहीं। पहले छोटी-सी जगह पर बना यह स्मारक धीरे-धीरे भव्य रूप ग्रहण करता गया। इस
स्मारक का विरोध भी होता रहा। 1959 में
मुम्बई के धर्मार्थ मामलों के आयुक्त (चैरिटी कमिश्नर) ने ‘अफजल मेमोरियल तुर्बत ट्रस्ट’
को खारिज कर दिया । पर आयुक्त के इस आदेश का पालन नहीं हुआ। 1962 में "अफजल मेमोरियल सोसायटी" की स्थापना
हुई। इस सोसायटी को राज्य की कांग्रेस सरकार ने 13,000 वर्ग फुट जमीन दे दी । उस पर सोसायटी ने
119 कमरे बनवाये, अफजल तथा सैयद बंडा की भव्य कब्रों बनायी
गईं । वहां बिजली-पानी की व्यवस्था की गयी। धीरे-धीरे इस सोसायटी ने आसपास
की 10,000 वर्ग फुट जमीन भी हड़प कर २३००० वर्ग गज कर ली
। एक जमाने में मुम्बई के माफिया सरगनाओं हाजी मस्तान, करीम लाला तथा युसूफ पटेल ने इस सोसायटी की बहुत मदद
की थी । बताया जाता है कि इस स्थान पर ज्यादा से ज्यादा मुसलमान आएं, इसलिए आने वाले को बिरयानी परोसी जाती
थी तथा
बख्शीश के रूप में 50 रुपए
दिए जाते थे । महाबलेश्वर में जो पयर्टक जाते थे, उन्हें वहां का इतिहास बताने वाले
मुसलमान गाइड बताते थे कि अफजल खान एक महान सूफी संत था, वह सज्जन तथा शांतिप्रेमी था । बाद में
अफजल की कब्रा पर हर साल उर्स मनाया जाने लगा । जिस
दिन अफजल का वध हुआ, उस
दिन हर साल मार्गशीर्ष
शुद्ध सप्तमी को इस कब्रा का मुजावर (पुजारी) "दगा, दगा शिवाजी ने दगा किया" इस तरह जोर-जोर से
चिल्लाता और छाती पीटते हुए प्रतापगढ़ से भागता आता था और ऐसा दृश्य उपस्थित करता
था जैसे शिवाजी नाम के एक "अपराधी" ने ‘अफजल खान’ नाम के एक "सूफी
संत" की हत्या की थी । अभी तक यहाँ ४० पुलिसकर्मी रहते है सरकार अब तक इन पर
१.५ करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है | क्या कांग्रेस राष्ट्र को बताने का कष्ट करेगी
की उसने क्षत्रपति शिवाजी के लिए क्या किया ||
(अफजल की पुरानी जर्जर कब्र और वर्तमान में कांग्रेस की मेहरबानी से बनी दरगाह)