Monday 22 December 2014



                                 “घर वापसी बनाम धर्मान्तरण”
आज भारत में धर्मांतरण को लेकर बड़ी बहस छिड़ी है मानो देश के सामने इससे बड़ा मुद्दा और कोई नहीं है | भारत का मिडिया और सेकुलर राजनैतिक दल आपा खोये हुए है | ये सब आगरा कि एक घर वापसी के प्रकरण को लेकर है | ये बंधू घर वापसी पर धर्मांतरण को आरोपित करते हुए मोदी सरकार का हाथ पकड़ कर बैठ गए है और कसम खाए है की राज्य सभा में काम नहीं चलने देंगे | क्योकि वो ये भी जानते है की अगले छ माह ही सरकार को नचाया जा सकता है | राज्य सभा में मोदी का बहुमत होते ही तुम कुछ नहीं कर पाओगे |
धर्मांतरण और घर वापसी में वाही अंतर है जो घुसपैठिये और शरणार्थी में | केंद्र सरकार नक्सलियों की घर वापसी करा रही है | डकैतों की घर वापसी कराई गई | अलगाववादियों की घर वापसी की बात की जाती है | पर हिन्दू घर वापस न करे | जो हिन्दू जो भूलसे, छल से,  बल से,  धोखे व लोभ से घर छोड़ गए उनकी वापसी पर इन सेकुलरों को दर्द है | इस बात पर इनका कहना है की एसी बातों से देश की धर्म निरपेक्ष छवि को हानि पहुंचती है | मजे की बात तो ये भी है की ये सेकुलर दल धर्मान्तरण पर कोई केन्द्रीय कानून भी नहीं चाहते | क्योकि घर वापसी से हिन्दू समाज का लाभ हो रहा है और हिन्दुओ के लाभ से इन्हें दुःख होता है | भला घर वापसी से किसे एतराज हो सकता है पर सेकुलरिश्टो के पेट में मरोड़ हो रहा है |
    यहाँ एक दो उदहारण देना चाहूँगा, लोकसभा के चुनाव में मिजोरम की एक सभा में तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गाँधी ने कहा था की ‘यदि मिजोरम में कांग्रेस की सरकार बनी तो यहाँ बाइबिल के अनुसार सरकार चलेगी’ | पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था की ‘देश के संसाधनों पर पहला हक़ अल्पसंख्यकों का है’ | मध्य प्रदेश की पहली रविशंकर शुक्ल की कांग्रेस सरकार ने ईसाईयों के अत्याचारपूर्वक धर्मपरिवर्तन के विरुद्ध ‘नियोगी आयोग’ का गठन किया था जिसमे नियोगी ने मिशनरीज का कच्चा चिटठा खोल कर रख दिया था |    ( इसाई मिशनरीज ने बहुत बड़ी मात्रा में मध्य प्रदेश, उड़ीसा, महाराष्ट्र, आदि के आदिवासी जंगल में धर्मान्तरण का धंधा चला रखा था |) तथा उसी आयोग की रिपोर्ट  के आधार पर मध्यप्रदेश और उड़ीसा में धर्मान्तरण पर रोक लगा दी गई थी | तो इसाई मिशनरीज ने काफी हो हल्ला मचाया था | तिस पर मिशनरीज ये कहते हुए सुप्रीम कोर्ट गए थे कि “धर्मान्तरण पर रोक संविधान की धरा २५ का उलंघन है” | इस पर सुप्रीम कोर्ट ने इनकी याचिका ख़ारिज करते हुए कहा था की ‘धरा २५ धर्म प्रचार की स्वीकृति देती है धर्म परिवर्तन की नहीं’ |  इनका सारा बल तो धर्मान्तरण पर ही था | उड़ीसा में इन्होने हिन्दू संत लक्षमनानंद की हत्या इस लिए करा दी की वो धर्मान्तरण में बहुत बड़े बाधक थे और घर वापसी के समर्थक थे | जब ये सेकुलर व मिशनरीज धर्मान्तरण करे तो ठीक, हिन्दू घर वापसी करे तो गलत | इसी कारण ये लोग धर्मान्तरण पर किसी भी तरह का कानून नहीं बनाने दे रहे | इस सब के पीछे एक बात और है कि ये लोग बहका फुसलाकर तथा लोभ- लालच देकर हिन्दू समाज के अभिन्न अंग दलित समाज से कुछ भाइयों को ये कह कर ले गए की आपको बराबर का सम्मान मिलेगा | पर ये पिडित भाई वहां भी पीड़ित रहे तब इन्होने वापस अपने समाज में लोटना बेहतर समझा | सकुलरों की बदहवासी के पीछे एक कारण ये भी है की विदेसी मिशनरीज से करोडो की संख्या मे आने वाले पेसो में इनका भी बन्दर बाँट है |
                                                       
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Wednesday 3 December 2014



                             कैकेयी - नायिका या खलनायिका
कैकेयी रामायण का एक महत्व पूर्ण पात्र है | इधर तो रामायण के अनुसार राम के राज्याभिषेक की तैय्यारी चल रही थी उधर कैकेयी ने पुत्रमोह के वशीभूत हो अपने पुत्र भरत के लिए राजगद्दी और राम के लिए वनवास मांग लिया | ये पुत्र मोह उसे खलनायिका बनाता है | परन्तु ये घटना काव्यगत नाटकीय अंदाज की दृष्टि ये रोचक हो सकता है | पर आज से लाखो साल पूर्व राम जैसे महापुरुष के सम्मुख ये घटना राम और कैकेयी का अवमूल्यन करती प्रतीत नहीं होती है क्या ?
कैकेय देश की राजकुमारी अश्वपति की पुत्री कैकेयी इक्ष्वाकु कुल के महाराजा दशरथ की मंझली पत्नी थी | अयोध्यापति रघुवंशी महाराजा दसरथ को जीवन के अंतिम पड़ाव में संतान प्राप्ति के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ करना पड़ा | यज्ञ के नैवेध से दशरथ को चार पुत्र रत्न प्राप्त हुए | नैवेध के \ भाग खाने से कौशल्या को राम, \ भाग से खाने से कैकेयी को भरत, तथा \ \ दो भाग खाने से लक्ष्मण और शत्रुघ्न सुमित्रा को उत्पन्न हुए |  क्योकिं कैकेयी ने अपने हिस्से के \ से आधा यानि \ प्रेमवश सुमित्रा को दे दिया था इस प्रकार \ \ दो भाग सुमित्रा को मिले जिस कारण उस को दो पुत्र प्राप्त हुए |
ये कैकेयी ही थी जो देवासुर संग्राम में महाराजा दशरथ के साथ युद्धरत थी | देवो का साथ देने के लिए या ये कहे अधर्म पर धर्म की जय के लिए एक स्थान पर दशरथ घायल और उनका रथ क्षत विक्षत हो जाता है रथ के पहिये की कील निकल जाती है वहाँ कैकेयी अपने प्रयास से रथ को सुचारू रखती है | और दशरथ निर्बाध युद्धरत रहते हुए असुरों का संहार कर विजयश्री प्राप्त करते है | यहीं पर दशरथ कैकेयी को दो वर देते है | यहाँ पर प्रश्न ये उठता है की युद्ध में महिला नहीं जाती ना ही वो पर्यटक स्थल था फिर कैकेयी वहाँ क्या कर रही थी ? युद्ध में तो युद्ध निष्णात लोग ही जाते है कैकेयी भी वहाँ इसी नाते उपस्थित थी | और दशरथ की विजय श्री में में बराबर की भागीदार बनी | कैकेयी रणनीति निपुण थी | पहले शादियाँ भी इसी दृष्टि से की जाती थी |
 अब विचार करें अयोद्धया का तो ताड़का, मारीच, श्रुपनखा, खर - दूषण, सुबाहु, त्रिशिरा, विराध, कबंध जैसे निशाचरों के माध्यम से आसुरी शक्तियां अयोध्या के दरवाजे पर दस्तक दे रही थी | श्रीलंका में बैठा रावण भारत तक अपनी शक्तियां बढा रहा था | दैत्यों के चलते वन प्रान्तरो में ऋषि मुनियों का तप करना दूभर हो गया था | शिक्षा को गुरु विश्वामित्र के साथ जाते मार्ग में पड़े मानव अस्थियों के ढेर को देखकर राम ने पूछा था की ये मानव अस्थियाँ यहाँ कैसे तो गुरू विश्वामित्र ने बताया था की ये राक्षसों द्वारा मरे गए ऋषियों मुनियों की अस्थियाँ है, तभी राम ने भुजा उठाकर प्राण किया था की "निशिचर हीन करेहूँ महि......."|
अयोध्या के दरवाजे पर दस्तक दे रहे रावण को रोकना आवश्यक था ये अयोध्या से सेना ले जाकर संभव नहीं था | अयोध्या के आस पास निशाचरों की उपस्थिति अयोध्या के रणनीतिकारो के लिए गहन चिंता का कारण बनता जा रहा था | अत: राम को चुप चाप अयोध्या से बहार निकालना था जिसे महाराजा दसरथ कभी भी स्वीकृति देने वाले नहीं थे | ये कार्य जो कैकेई के माध्यम से अपनाया गया उसके सिवा कोई चारा नहीं था | साथ ही देव गण भी चाहते थे की राम राजतिलक के बजाय वन को जाय | “रामायण” के अयोध्या कांड में राम के राजतिलक की बेला में देवता माता सरस्वती के निहोरे कर कहते है कि हमारी विपत्ति की बेला में राम को वन भेजने का जतन करे | काफी प्रयास के बाद सरस्वती भूलोक पर आई और मंथरा की जिहवा पर बैठ उसकी मति फेर दी | आखिर क्या था देव कार्य ? उधर राम के वनगमन में राम या कौशल्या कही भी कैकेयी को दोष देते भी नहीं दिखते | राम को वनवास अयोध्या के हित में गहन मंत्रणा कक्ष में लिया गया | चूँकि कैकेई भी रणनीति निपुण थी अत: वह भी सभा में उपस्थित थी | और राम को अयोध्या से बहार निकलने का महती कार्य कैकेई को ही दिया गया | कैकेई ने इस कार्य हेतु पूर्व में महाराजा दशरथ पर किये उपकार के बदले मिले वचनों  का सहारा लिया | आज जो सब हम रामायण देखते सुनते हैं असुरों का संहार धर्म और मर्यादा की स्थापना, सब के पीछे कैकेयी का भी बहुत बड़ा योगदान है | अत: कैकेयी धन्यवाद और सराहना की पात्र है, प्रसंशनीया और वन्दनीया हैं | प्ररन्तु कथा को अतिरंजित कर कैकेई को खलनायिका बना दिया |