Sunday 22 February 2015

                                                               “हिन्दू कौन ?”
हिन्दू कौन है ये बड़ा ज्वलंत प्रश्न है ? हिन्दू नाम शताब्दियों से सम्पूर्ण भारतीय समाज अपने लिए जातीय, संस्कृतिक, राष्ट्रिय, एवं धार्मिक समुदाय के संबोधन के रूप में प्रयोग करता आ रहा है | हिन्दू शब्द को लेकर एक प्रबल दुष्प्रचार है कि खैबर दर्रे और सिन्धु के उस पार से आने वाले आक्रान्ताओं ने हिन्दू नाम दिया | इसके पीछे का एक तर्क ये भी दिया गया  कि फारसी लोग स  को ह  प्रयोग करते है इसी कारण सिन्धु, सिन्धु पार का क्षेत्र और क्षेत्रवासी हिन्दू नाम से उच्चारे गये | यह बात हिन्दू समाज को तर्क सम्मत लगी अत: स्वीकार भी कर ली | परन्तु फारसी भाषा में हिन्दू का अर्थ निक्रस्ट शब्दों (गद्दार, मक्कार, चोर आदि) में किया गया है हिन्दू समाज ने ये बात भी बिना बुद्धि पर जोर लगाये स्वीकार करली | एक दुष्प्रचार ये भी चल रहा है की मुस्लिम आक्रमण से पहले हिन्दू प्रयोग नहीं होता था | मुस्लिम आक्रमणों  के बाद ही हिन्दू शब्द लोकप्रिय हुआ |
    अब थोडा इस बात का अध्ययन करे की उपरोक्त तर्कों  में कितनी शक्ति है | जहाँ तक फारसी भाषा की बात है तो भारत के बहार हिन्दू शब्द का प्रयोग फारसी आदि धर्म ग्रन्थ “जेंदा वेस्ता”  और “शातीर” में पाया गया जो आर्य व हिन्दू और हिन्दू भूमि के रूप में है | एक बात और वहां यह शब्द सम्मानित शब्दों में है | अरबी में भारत को अल हिन्द  कहते है बता दें की अरबी में आदरणीय शब्द के लिए अल  का प्रयोग करते है |
एक अरबी कवि “लबि”  ने लिखा है---“ओ धन्य हिन्दू भूमि तू निश्चय ही हमारे सम्मान के योग्य है,
                                                      जिसमे परमेश्वर ने सच्चा ज्ञान वेद प्रकाशित किया है”  || 
हिन्दू इस्लाम के प्रचार के बाद काफ़िर हुआ | फारस से ही अरब गया परन्तु हिन्दू शब्द घ्रणित अर्थों में नहीं था | वस्तु स्थिति ये है की हिन्दू शब्द भारतीय परंपरा और मिटटी का ही शब्द है | असल तो यह मूलत: संस्कृत शब्द के सिन्धु से बना है | और फारस के आलावा भी असमी और गुजराती में भी स  को ह  ही बोला जाता है | यथा सन्देश – हन्देश, संपादक – हम्पादक, असोम – अहोम आदि | ६०६ ई. में हर्षवर्धन के राज्याभिषेक के समय भारत, आर्यवर्त से हिंदुस्तान प्रचारित हुआ | दरअसल भारत में सिन्धु दो नदियां हैं और सिन्धु देश भी दो है एक पूर्व में (पूर्व की सिन्धु ब्रहमपुत्र है) दूसरी पश्चिम में | संस्कृत में सिन्धु देश के वासीयों के लिए सैन्धव शब्द का अनेक बार प्रयोग हुआ है | महाभारत में तो पूर्व के सिन्धु देश और वहां के निवासियों का सैन्धव के रूप में प्रयोग बहुतायत से हुआ है | यहाँ एक बात और ध्यातव्य है कि अंको (१ से १० तक ) की विश्व को अमूल्य देन हिन्दुओं की है और जब ज्ञान की ये धरोहर फारस होते हुए अरब देसों मे पहुंची तो वहां इन अंको को हिन्द से आने के कारण  'हिन्दसा' कहा गया और जब ये हिन्दसा वहां से आगे पश्चिम देशों में गए तो अरब देशों से आने के कारण इन्हें 'अरेबिक न्यूमरल' कहा गया |   
ये हिन्दू की पहचान है -“आ सिन्धु सिन्धु पर्यन्ता यस्य भारत भूमिका, पित्रभु: पुन्यभूश्चैव सवै हिन्दू रितिस्म्रत:” 
वीर सावरकर, स्वामी दयानंद, स्वामी विवेकानंद, स्वामी श्रधानंद, तुलसीदास,संत तुकाराम आदि राष्ट्र मनीषियों ने गर्व से हिन्दू शब्द का प्रयोग किया | हिन्दू शब्दों का अनेक बार प्रयोग महाकवि  चंदरबरदाई  ने प्रथ्वीराज रासो  में -- ( जब हिन्दुदल जोर हुए छुटी मीरधर भ्रम ) में किया है तब तो मुसलमान ने भारत भूमि पर कदम भी नहीं रखा था | इसी तरह –वृद्ध स्मृति, कलिका पुराण, बार्हस्पत्य पुराण, शारंगधर पध्यति, रामकोष, मेदिनीकोष, जैन आगम आदि अनेक आदि हिन्दू ग्रंथो मे हिन्दू शब्द सम्मान के प्रति प्रयोग हुआ है | ये सभी ग्रन्थ भारत में मुस्लिम आगमन से बहुत पहले के है | एक परिभाषा और हिन्दू शब्द की सगर्व दी जाती है  -- हीनं दुषयति इति हिन्दू जाति विशेष: --शब्दकल्पद्रुम: | इनके बाद भी महाराणा प्रताप, गुरुतेगबहादुर, संत कबीर, पाल कवि, कवि भूषण, कवि सुजान, महाकवि वेन  आदि ने भी हिन्दू शब्द का सगर्व प्रयोग किया |  अत: हिन्दू शब्द पूर्णत: भारत की मिटटी का बना और सम्मानित ही नहीं गौरवान्वित करने वाला है | अब तो अंत में यही कहना पड़ेगा कि --
                                                                  "कहो गर्व से हम हिन्दू है हिंदुस्तान हमारा है"