Friday 23 October 2020

“आर्य हीभारत के मूलनिवासी हैं विदेशी नहीं''

 

           “आर्य हीभारत के मूलनिवासी हैं विदेशी नहीं”

अंग्रेजों द्वारा अपनी सत्ता स्थाई और अपना भारत में ओचित्य सिद्ध करने के लिए सिन्धुघाटी की सभ्यता की खुदाई से ये बात विश्व में फैलाई की आर्य बहार से आये थे और आक्रान्ता थे | आर्यों ने भारत के मूलनिवासीयों को मार कर दक्षिण में धकेल दिए | इसमे अंग्रेज सफल भी हुए और भारत में लूटने का और फूट डालने का काम किया | इससे वे ये भी भारतीय जनमानस में बैठाने में सफल हुए की आर्य भी बाहरी और आक्रान्ता थे, हम भी बाहरी और आक्रान्ता है तो दोनों में अंतर क्या है ? हमें भी आर्यों की तरह स्वीकार कर लो | इस थ्योरी से अंग्रेज भारत के आपसी वर्गों में ही एक दुसरे के प्रति घ्रणा फ़ैलाने में सफल रहे | परन्तु अब भारत ने बहुत प्रगति कर ली है | साथ ही विज्ञानं भी प्रगति कर बहुत आगे बढ़ गया | हांल ही में कुछ नई  शोधों ने अंग्रेजों के इस छल को बिलकुल झुठला दिया है | हाल ही में हरियाणा के जिले हिसार स्थित राखीगढ़ी में खुदाई में दो अवशेष एक महिला एक पुरुष के मिले थे | इनकी DNA जाँच कराई गई | आर्कियोलोजिकल व जेनेटिक डाटा के विश्लेषण से वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे की आर्य और द्रविड़ तो एक ही माता पिता की संतान हैं | राखीगढ़ी हड़प्पा सभ्यता का वर्तमान मे सबसे बड़ा केंद्र है | राखीगढ़ी शोध टीम के सदस्य व पुणे स्थित डेक्कन कालेज डीम्ड वि. वि. के पूर्व वाइस चांसलर प्रो. वसंद शिंदे तथा जेनेटिक वैज्ञानिक डा. नीरज राय ने ये जानकारी दी | ये बातें प्रतिष्ठित जर्नल ‘सेल’ में प्रकाशित हो चुकी है | इसका मतलब है इस तथ्य को  वैश्विक मान्यता भी मिल चुकी है | राखीगढ़ी की हड़प्पा कालीन सभ्यता की खुदाई में मिले 5 हजार साल पुराने अवशेषो से जुटाए अध्ययन से पता चलता है, की अफगानिस्तान से लेकर अंडमान तक के निवासियों का जीन एक ही है | बिना किसी बड़े बदलाव के | 12 हजार साल से पूर्व सम्पूर्ण दक्षिण एशिया का जीन एक ही था | माने आर्य - द्रविड़ सबके पूर्वज एक ही थे | इस सबसे आर्यों के बहारी होने की थ्योरी पूर्णतया फेल हो जाती है | प्रो. शिंदे ने तो सरकार को लिखा है की ये सब बातें अब इतिहास की पुस्तकों में पढाई जाएँ | डा. नीरज ने पुरातात्विक शोधों के आधार पर कहा की भारत में बड़ी संख्या में बाहरी लोगों के प्रवेश के साक्षय नहीं मिलते | डा. नीरज ने  बताया की यदि आर्य बहार से आते तो बड़ी संख्या में नरसंहार करते और अपनी बाहरी संस्कृति लाते और स्थानीय संस्कृति को नष्ट कर देते | पर ऐसा कहीं सिद्ध नहीं हो पाया | ऐसा इसलिए है की मानव कंकालों पर कहीं भी घाव या कटे टूटे हिस्से नहीं पाए गए हैं | भारत में व्यापर करने, समय - समय पर विदेशी आते रहे थे | और वे भरता में बसते भी गए | इससे थोड़ी बहुत मामूली सी जीन में मिलावट मिलती है | सो भारतीय भी व्यापर करने विदेश जाते थे | राखी गढ़ी में नदी किनारे अलग अलग आकर और आकृति के हवंनकुंड भी मिले हैं | कोयले और सरस्वती पूजा के अवशेष भी मिले है | जिससे वैदिक सभ्यता की पुष्टि होती है | या ये कहे की हड़प्पा सभ्यता ही वैदिक सभ्यता थी | कृषि, बागबानी, मत्स्यपालन भी भारत से शुरू हुआ |