Monday 11 June 2018


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Bottom of Formनौचंदी मेला मेरठ” 
 चंडी या नवचंडी मंदिर :- नौचंदी मेले का सारा इतिहास, आकर्षण और रौनक चंडी मंदिर के ही आस पास है | पश्चिमोत्तर भारत के प्रसिद्द मेलों में से एक मेरठ का प्रसिद्ध मेला नौचंदी भी है | नौचंदी के दो प्रमुख भाग है | चंडी या नवचंडी मंदिर का पूजन और बाले मियां की मजार का उर्स | होली के बाद ऋतू परिवर्तन की बेला में शरत और बसंत ऋतू के संधि अवसर पर बासंतिक नवरात्रों पर चैत्र मॉस में होली के बाद दुसरे रविवार से लगने वाला मेला कभी नवचंडी देवी के पूजन - अर्चन के एक दिवसीय अनुष्ठान तक ही सीमित था | कहते है की माता सती के अरु भाग के यहाँ गिरने पर चंडी मंदिर बनाया गया | दिल्ली के पास होने के कारण मेरठ भी निरंतर युद्धों, हमलो, आक्रमण और लूटों का शिकार होता रहा | मंदिर भी इतिहास के साथ साथ लुटता, बनता, बिगड़ता रहा | चंडी मंदिर टूटकर जब दोबारा बना होगा तो नवचंडी कहलाया होगा | और फिर नवचंडी से ही अपभ्रंश होकर नौचंदी हो गया होगा | इंदोर की महारानी अहिल्याबाई द्वारा भी मंदिर बनाये जाने के प्रमाण हैं | ये हिन्दुओं की आस्था का बड़ा केंद्र था|
बाले मियां की मजार :- सालार मसूद गाजी ये महमूद गजनी का भांजा था | ये भी गौरी, गजनी, अब्दाली की तरह क्रूर आक्रान्ता था | 1030 ई. में गजनी की मृत्यु के बाद ये भी लाखों की सेना लेकर भारत को लूटने आया | दिल्ली, मेरठ, बुलंदशहर, कन्नोज को रोंदता हुआ श्रावस्ती - बहराईच के शुद्र शासक महाराजा सुहेलदेव पासी से जा भिड़ा | और सेना सहित मारा गया | बहराइच में इस क्रूर आक्रान्ता की बड़ी मजार है, जिसे हिन्दू बड़ी संख्या में पूजते है | मेरठ पर हमले के समय चंडी मंदिर के पुजारी की बेटी ने इसकी चार अंगुलियां काट दी थी | जिसकी मजार ये बाले मियां की माजर है | इसका मुसलमान बड़ी श्रद्धा से उर्श मानते है |
दोनों पूजा स्थल साथ साथ है, इसलिए ये हिन्दू मुस्लिमो के सम्मिलित विश्वासों का प्रतीक बन एकता और सद्भाव की मिसाल बन गया | एक मान्यता के अनुसार 17 वीं शताब्दी 1672 ई. में मेले का शुभारम्भ हुआ | 1857 की क्रांति तक मेला एक दिवसीय ही था | भारी संख्या में हिन्दू सिद्धि दायिनी माँ चंडीदेवी के दर्शन, पूजन, मन्नत को आते थे | रात्रि हो जाने के कारण उन्हें यहीं रुकना पड़ता था | कालांतर में बाले मियां की माजर पर भी उर्श होने लगा | १८८० ई, तक मेला 2 दिवसीय छोटा स्वरूप लिए रहा | धीरे धीरे मेले का स्वरूप धार्मिक से सामाजिक भी होने लगा | आमोद प्रमोद के साथ साथ घरेलु जीवन की आवश्यक वस्तुओं के मिलने का स्थान भी मेला बन गया | 1884 ई. में घोड़ों की प्रदर्शनी भी लगने लगी | पहले मेले का प्रबंध क्षेत्र के बड़े रईस जमींदार और नवाब करते थे | 1884 ई. से ही मेला सरकारी प्रबंधन में चला गया |


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तब मेले में नवाबों, रईसों और जमींदारों के आलिशान डेरे लगा करते थे | मेला सात दिन का हो
गया था | नाच और राग रंग की महफिलें सजती थीं | विख्यात नाटक कम्पनियाँ एल्फ्रेड,
शालिवाहन, न्यू एल्फ्रेड मेले में आती थीं | नर्तकी मुन्नीबाई का रुतबा लम्बे समय तक चला | मेले में बाजार लगने लगे | सर्कस काफी पहले से मेले की रौनक हैं | अब मेला लगभग एक माह का हो गया | हलवा, परांठा, खजला और नानखटाई मेले की प्रसिद्द सौगात है | मेले में कुछ प्रसिद्द द्वार है तो कुछ प्रसिद्द स्थल भी हैं | ,,,,,,,,,,,,,