Tuesday 1 July 2014



                                        “महाराजा सुहेलदेव पासी”
सन १००१ से १०२५ तक महमूद गजनी ने सोमनाथ सहित पश्चिमी - उत्तर भारत पर १७ आक्रमण किये और जीतता चला गया १०३० में उसकी मृत्यु हो गई | गजनी के बाद इसका भांजा सालार मसूद गाजी उत्तर भारत पर क्रूर - नृशंस आक्रांता बनकर टूट पड़ा | सालार मेरठ, दिल्ली, बदायूं, बुलंदशहर और कन्नोज को रोंदता हुआ कुटिला नदी के तट पर सतरिख (सप्तर्षि तीर्थ) कि और चला जहाँ सूर्यकुंड व तपस्वियों के १०० से ऊपर गुरुकुल और आश्रम थे | इसी अंचल में एक शुद्र शासक पासवान श्रावस्ती (बहराइच) नरेश सुहेलदेव पासी द्वारा चिकित्सालय, गौशालाएं, अन्नक्षेत्र व छात्रावास संचालित थे | ऐसे समृद्ध राज्य पर सालार ने १.५ लाख कि सेना के बल पर कुदृष्टि लगा रखी थी |  सालार गाँव - गाँव और शहर – शहर लूट पाट बलात्कार, धमंतातरण और नरसंहार करता आगे बढ़ रहा था | उधर सुहेलदेव भी अनिश्चित नहीं था अत: अपने साथ अर्जुन, भिखम, कनक, कल्याण, नरुल, जगरूप, कर्ण, बीरबल, अजयपाल, श्रीपाल, हरपाल, जरखू, हरसू, देवनारायण, नरसिंह, उल्लाशंकर, गंग, रामसायते, व भाखामर आदि स्थानीय शासको को अपने पक्ष में कर लिया | सालार ने अपनी सेना फैला कर युद्ध कि रणनीति बनाई तो सुहेदेव ने भी उसी तरह सेना को कई भागों में युद्ध को उतारा | अंतिम युद्ध कुटिला नदी के तट पर हुआ जब सालार चतुराई से विशाल गो झुंडो के बीच हाथी पर चढ कर आया कि हिंदू तो धर्म भीरु है गाय पर हथियार नहीं चला  पा एगा | पर महाराजा सुहेलदेव भी कहाँ झुकने वाले थे उन्होंने चतुराई से गायों को भडका दिया | भड़क कर रणचंडी बनी गाय सालार के सैनिकों को ही मार - काट करती भागने लगी | सालार हतप्रभ रह गया | तभी महाराजा सुहेलदेव ने अपना एक शब्दभेदी  तीखा विष बुझा बाण सालार मसूद को मारा जिससे वह तुरंत वहीँ ढेर हो गया | इस मार - काट में उसकी सारी सेना भी मारी गई | यह घटना १० जून १०३४ कि है | यह इतना बड़ा हिंदू प्रतिकार था कि आने वाले २०० वर्षों तक मुश्लिम आक्रांता कि हिम्मत खैबर दर्रा पार करने कि नहीं हुई | चंद बचे खुचे सलार के सैनिको ने वहीँ सुहेल्देव कि इजाजत से सालार कि कब्र बना दी | १३३५ में फिरोजशाह तुगलक ने सूर्य कुंड को पाटकर बड़ी दरगाह बना दी | मेरठ में नौचंदी में इसी सालार कि उंगली कि मजार बाले मियां के नाम से जानी जाती है | कालांतर में स्थानीय मुसलमानों ने भ्रामक प्रचार कर क्रूर आक्रांता को हीरो बना दिया | आज सुहेलदेव तो शैतान हो गए तथा सालार मसूद गाजी पक्का पीर |
इसका सर्व प्रथम निराकरण या प्रतिकार गोस्वामी तुलसीदास ने यूँ किया –
“लही आँख कब आंधरे बाँझ पूत कब लाय | कब कोढ़ी काया लही जग बहराइच जाय ||”      
“मिली कब किस अंधे को आँख, सपूती हुई कौनसी बाँझ |
जा रहा जग बहराइच मुर्ख, कुटिल कामी  हत्यारा धूर्त ||
पड़ा खाकर सुहेल का बाण, गजनवी का भांजा सालार |
लूटकर सोमनाथ को बना, लुटेरों का नामी सरदार ||
रौंद बरन मुल्तान बदायूं ,पावन सतरिख उतरा |
बलि अली का डेढ़ लाख के,संग कुटिला तट पसरा ||  
पासवान धनुर्धर वीरों कि जात बताने आया |
मैं कबर आशिकों को माशूक की बात बताने आया ||