Thursday 27 December 2018


                   “सम्राट खारवेल”
मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद चेदी राजवंश का उदय हुआ, जिसकी शाखा से खारवेल 200 ईसा पूर्व महामेघवाहन वंश से तीसरे शक्तिशाली चक्रवर्ती सम्राट हुए | भारत के बहुत बड़े भूभाग को इन्होंने अपने बाहूबल से विजित किया | यह जैन मतावलंबी थे | पर इन्होने हिन्दू मंदिरों का भी निर्माण और जीर्णोद्धार कराया | उदय गिरी की पर्वत श्रंखला की हाथीगुफा में मिले एक शिलालेख में इनकी प्रशस्ती मिलती हैं | 24 वर्ष की आयु में इनका राज्याभिषेक हुआ | खारवेल ने मगध, मथुरा, सातकरणी, विदर्भ, पाण्ड्य, उत्तरापथ, राष्ट्रिकों, और भोजकों पर भी आधिपत्य स्थापित कर उत्तर, दक्षिण और पशचिम में अपना राज्य विस्तार किया | शताब्दियों तक फिर कभी कलिंग को ऐसा योग्य और शक्तिशाली शासक नसीब नहीं हुआ | खारवेलचेदीवंश और कलिंग के इतिहास के ही नहीं, सम्पूर्ण प्राचीन भारतीय इतिहास के प्रमुख शासकों में से है | हाथीगुंफा के अभिलेख से स्पष्ट है कि खारवेल असाधारण योग्यता का सेनानायक था, और उसने कलिंग की जैसी प्रतिष्ठा बना दी वैसी बाद की कई शताब्दियों संभव नहीं हुई |
    भारत में अपने समय के दो बड़े साम्राज्य मगध और कलिंग रहे है | खारवेल से पहले एक बार मगध ताकतवर हुआ तो कलिंग पर चढ़ाई कर उसे हरा कलिंग की प्रसिद्द जैन संत शीतलनाथ की बड़ी स्वर्ण मूर्ति भी उठा लाया | लम्बे समय तक कलिंग को यह अपमान सालता रहा | कलिंग में खारवेल का युग आया | खारवेल ने मौका देखते ही मगध पर हमले की योजना बनानी शुरू कर दी | तब मगध पर ब्रहस्पतिमित्र का शासन था | तभी एक यवन डेमेट्रियस ने भी मगध पर हमले की योजना बना ली, और खारवेल पर सूचना भेजी की ‘यही अच्छा मौका है तुम पूरब से हमला कर मगध से अपना बदला लो और मैं पश्चिम से हमला कर दोनों मगध का अस्तित्व मिटा देते हैं’ | खारवेल को क्रोध आ गया और डेमेट्रियस को कहला भेजा की ‘तूने ये कैसे सोच लिया की मैं मगध के विरुद्ध तेरा साथ दे दूंगा ये हमारा आपसी मामला है | और तू भारत की सीमा में आया ही कैसे मैं पहले तुझे देखता हूँ’ |  खारवेल मगध को छोड़ यवन के पीछे भागा और यवन को सुदूर पश्चिम भारत की सीमा से बाहर खदेड़कर आया | इन दोनों के हमले की तैय्यारी से मगध के होस उड़ रहे थे | पर ये नया नजारा देख मगध के कुछ जान में जान आई | वापसी में मगध खारवेल के स्वागत को खड़ा था | उसने ग्लानि भरे मन से अपना राजमुकुट खारवेल के चरणों में रख दिया | ये स्थति देख खारवेल भी भावाभिभूत हो गया | और मगध को क्षमा कर दिया | कई दिनों तक मगध की मेहमान नवाजी स्वीकार की | चलते समय मगध ने बहुत सा नजराना और साथ में कलिंग से लाई गई जैन संत शीतलनाथ की मूर्ति भी ससम्मान वापस की | इसके बाद दोनों साम्राज्यों की मित्रता और वैभव पुनः लौट आया | 

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